भगवान विश्वकर्मा को हिंदू धर्म में सृजन और निर्माण (शिल्प शास्त्र) का देवता माना जाता है. हर साल विश्वकर्मा पूजा और विश्वकर्मा जयंती कन्या संक्रांति के दिन मनायी जाती है.
कुछ ज्योतिषाचार्यो के अनुसार भगवान विश्वकर्मा का जन्म आश्विन कृष्णपक्ष का प्रतिपदा तिथि को हुआ था, वहीं कुछ का मनाना है कि भाद्रपद की अंतिम तिथि विश्वकर्मा की पूजा के लिए सर्वश्रेष्ठ होती है. वैसे विश्वकर्मा पूजा सूर्य के पारगमन के आधार पर तय किया जाता है. यह तिथि हर साल 17 सितंबर को आती है. इस दिन लोग विश्वकर्मा देवता की पूजा करते है, कल-कारखानों, मशीनों व अपने औजारों की साफ-सफाई करते हैं. बड़े उल्लास से प्रसाद बांटते हैं.
ऐसा माना जाता है की सोने की लंका, स्वर्ग में इंद्र का आसन, पांडवों की राजधानी को भगवान विश्वकर्मा ने ही बनाया था. पुराणों के मुताबिक आदिकाल में सिर्फ 3 प्रमुख देवता थे- ब्रम्हा, विष्णु, महेश. ब्रह्मा जी के पुत्र का नाम ‘धर्म’ था, जिनका विवाह ‘वस्तु’ नामक कन्या से हुआ. उसके बाद धर्म को एक पुत्र की प्राप्ति हुई, जिसका नाम ‘विश्वकर्मा’ रखा गया.
पूजन विधि : इस दिन सुबह नहा-धोकर भगवान विश्वकर्मा की प्रतिमा या फोटो रख कर पूजन करें. उस पर माला चढ़ाएं, धूप और दीपक जलाएं. उन्हें प्रसाद का भोग लगाएं. हाथ में फूल और अक्षत लेकर विश्वकर्मा देवता का ध्यान करें, ‘ओम आधार शक्तपे नम:, ओम् कूमयि नम:, ओम अनन्तम नम:, पृथिव्यै नम:’ मंत्र का जाप कर हवन करें. फिरभगवान विश्वकर्मा की आरती पढ़ें. भगवान विश्वकर्मा की कृपा से व्यापार में तरक्की होती है. मशीनरी काम-काज से अवरोध दूर रहते हैं.