हमारी संकल्पनाओं से ही संचालित हैं तन, मन और धन

कुमार राधारमण नीति आयोग, दिल्ली में कार्यरत (ओशोधारा से संबद्ध) kumarradharaman@gmail.com धर्म के जितने भी गहन प्रयोग हैं, वे सब उत्तम स्वास्थ्य की मांग करते हैं. जैसे समय के साथ कई कठिन आसनों के आसान विकल्प आ गये हैं, ऐसे ही आध्यात्मिक प्रयोगों की दिशा में भी काफी प्रगति हुई है. अब साधक बहुत कम […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 6, 2018 10:15 AM

कुमार राधारमण

नीति आयोग, दिल्ली में कार्यरत (ओशोधारा से संबद्ध)
kumarradharaman@gmail.com
धर्म के जितने भी गहन प्रयोग हैं, वे सब उत्तम स्वास्थ्य की मांग करते हैं. जैसे समय के साथ कई कठिन आसनों के आसान विकल्प आ गये हैं, ऐसे ही आध्यात्मिक प्रयोगों की दिशा में भी काफी प्रगति हुई है. अब साधक बहुत कम समय में उसका अनुभव कर सकता है. लेकिन यह भी तभी संभव है जब आपका शरीर इसके लिए तैयार हो. अगर आपके हृदय में ब्लॉकेज हों, आप बीमार हैं, तो आप मन और हृदय के पार जा ही नहीं पायेंगे. चेतना का अनुभव तो दूर की बात. अगर जोड़ों के दर्द से परेशान हों, तो रीढ़ सीधी करके पद्मासन में बैठना संभव नहीं होगा. इसलिए, आश्चर्य नहीं कि सभी धार्मिक संस्थाओं में जितने भी चरणों से गुजरना अनिवार्य होता है, उसका कम-से-कम पचास फीसदी हिस्सा शारीरिक स्वास्थ्य से जुड़ा होता है. हम जो कुछ भी हैं, वह हमारी संकल्पना का ही परिणाम है.

हम बचपन से ही पढ़ते आये हैं कि स्वास्थ्य ही धन है, लेकिन इसके प्रति बहुत-सी नकारात्मक धारणाएं जाने-अनजाने हमारे अवचेतन का हिस्सा हो गयी हैं और प्रकृति का यह नियम है कि जो भी चीज अवचेतन में बैठ जाती है, फिर वैसा घटित होना शुरू हो जाता है. इस पैमाने पर आप अपने स्वास्थ्य पर विचार करेंगे, तो हैरानी होगी. अनेक प्रकार की नकारात्मकताओं ने हमें घेर रखा है. मसलन, आजकल तो दवाई खाकर भी चलते रहें तो गनीमत समझो, चालीस के बाद तो आंख पर चश्मा चढ़ना ही है. शरीर में अब वैसी एनर्जी नहीं रही, चाय पिये बिना तो मैं बिस्तर से उठ भी नहीं सकता, आजकल बीपी-शूगर तो आम बात है, आदि-आदि.

एक बार मन में ये बातें बैठ जाएं तो प्रकृति को संकेत जाने लगता है कि आपको इन चीजों की जरूरत है और धीरे-धीरे रोग आपको घेरने लगते हैं. अगर इनकी बजाय आप सकारात्मक संकल्पनाओं से भरें, तो आप मौजूदा रोगों से आश्चर्यजनक तरीके से मुक्त हो सकते हैं. जैसे, कल्पना करें कि आप स्वस्थ और बलवान हैं, आपकी ऊर्जा और जीवन-शक्ति रोज बढ़ रही है, आपका अवचेतन मन आपको स्वस्थ होने के उचित साधनों की ओर ले जा रहा है. अगर स्वास्थ्य चाहिए तो आपको यह बात मन में बिठानी होगी कि अच्छा स्वास्थ्य और कुशलता आपका जन्मसिद्ध अधिकार है. प्रभु को इस बात के लिए धन्यवाद दें कि उसने आपको बल, स्वास्थ्य और जीवनी-शक्ति प्रदान की है. कई बीमारियां मन में जन्म लेती हैं और फिर शरीर में प्रकट होती हैं. इसलिए, थोड़े अस्वस्थ हों, तो भी सोचें कि आपके शरीर का हर अंग ठीक से काम कर रहा है और आपके शरीर में स्वास्थ्य और हार्मनी का सामंजस्य फिर से बनने लगा है. महसूस करें कि आपके डॉक्टर आपका इलाज़ बिल्कुल ठीक तरीके से कर रहे हैं. इस विश्वास को दृढ़ करें कि आपके अवचेतन में खुद का उपचार करने की पूरी ताकत है और पूरा ब्रह्मांड इसमें आपकी सहायता करने को तैयार है.

ऐसे ही, हमारी कमजोर आर्थिक स्थिति भी अपनी नकारात्मक संकल्पनाओं का ही परिणाम है. हम सब आर्थिक संपन्नता तो चाहते हैं, लेकिन उसके लिए जो मनोदशा चाहिए, वह हमारे पास नहीं. आर्थिक समृद्धि के प्रति हमारे अवचेतन की प्रोग्रामिंग बहुत नकारात्मक है, जैसे- मैं बस इतना ही कमा सकता हूं, हम मध्य या निम्नवर्गीय लोग हैं, ठीक-ठाक गुजारा होता रहे, बस इतना ही काफी है, ज्यादा पैसा दिमाग खराब कर देता है, मैं जितना भी कमाऊं, बस गुज़ारा ही होता है, इस मामले में मेरी किस्मत बड़ी खराब है, आजकल महंगाई ने तो हद कर रखी है, वगैरह-वगैरह.

धन के प्रति इसी नकारात्मकता को खत्म करने की जरूरत है. ऐसी सोच अमीरों के प्रति ईर्ष्या भरती है और व्यक्ति की अपनी संभावनाएं दमित रह जाती हैं. इनकी बजाय, अगर हम सकारात्मक संकल्पनाओं से भरें, तो हमारी आर्थिक खिलावट के अनंत द्वार खुल सकते हैं. मसलन, अपने भीतर दृढ़ विश्वास जगाएं कि अमीरी आपका हक है और इसे प्राप्त करना बिल्कुल आपके वश में है. भाव करें कि आप कर्ज से मुक्त हो रहे हैं. सोने से पहले, कल्पना करें कि आपकी आर्थिक संपन्नता के दिन अब दूर नहीं है. भाव करें कि ईश्वर ने आपको इतना कुछ दिया है कि आपकी अपनी जरूरतें तो पूरी हो ही रही हैं, आप दूसरों की मदद भी कर पा रहे हैं. इन संकल्पनाओं के साथ ईश्वर को इस बात के लिए धन्यवाद देना भी न भूलें कि वही आपकी समृद्धि की स्रोत रहा है, उसी की कृपा से आप पर धन-वर्षा हो रही है और आप न सिर्फ अपने परिवार का अच्छी तरह भरण-पोषण कर पा रहे हैं, बल्कि आवश्यक होने पर अन्य की भी थोड़ी-बहुत मदद करने की स्थिति में हैं. आप देखेंगे कि जैसे ही आप सकारात्मकता से भरेंगे, आप बेहतर महसूस करने लगेंगे और आपका शरीर साधना के अनुकूल होने लगेगा. स्वस्थ शरीर की संकल्पना को ही व्यवहार रूप दे पाना अधिक आसान होता है.
आनेवाला शारदीय नवरात्र खुद को सकारात्मक संकल्पनाओं से भरने और अपनी मनोकामनाओं की सिद्धि का एक सुंदर अवसर है.

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