#Mahalaya : आज भी कायम है महिषासुर मर्दिनी का ‘क्रेज’

-अभिजीत राय- आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की समाप्ति पर पड़ने वाली अमावस्या के दिन हिंदू धर्मावलंबी युगों से चली आ रही परंपरा के अनुसार जब अपने पितरों (पूर्वजों) की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध-तर्पण के उद्देश्य से ब्रšह्म मुहूर्त में उठकर तैयारी करते हैं, ठीक उसी समय मुहल्ले में रहने वाले बंगलाभाषी समुदाय […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 8, 2018 11:53 AM


-अभिजीत राय-

आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की समाप्ति पर पड़ने वाली अमावस्या के दिन हिंदू धर्मावलंबी युगों से चली आ रही परंपरा के अनुसार जब अपने पितरों (पूर्वजों) की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध-तर्पण के उद्देश्य से ब्रšह्म मुहूर्त में उठकर तैयारी करते हैं, ठीक उसी समय मुहल्ले में रहने वाले बंगलाभाषी समुदाय के घरों के रेडियो से आकाशवाणी के कोलकाता केंद्र द्वारा प्रस्तुत शारदीय नवरात्र के आ”ह्वाहन स्वरूप महालया पर विशेष प्रसारण ‘महिषासुर मर्दिनी’ की आवाज सुनाई देती है.

यह कार्यक्रम 1932 में आकाशवाणी से पहली बार प्रसारित हुआ था. इस कार्यक्रम की लोकप्रियता आज भी वैसी ही है, जैसी दशकों पहले हुआ करती थी. हालांकि इस बीच टेलीविजन पर सेटेलाइट चैनलों की बढ़ती भीड़ की वजह से लोग अब रेडियो से अधिक टीवी के प्रति आकर्षित हो गए हैं.फिर भी ऑल इंडिया रेडियो के इस कार्यक्रम की लोकप्रियता को किसी भी चैनेलों पर प्रसारित होने वाले (विशेषकर बंगला भाषा में संचालित होने वाले चैनेलों) महिषासुर मर्दिनी कार्यक्रम का आज तक कोई विकल्प नहीं बन पाया है. माना जाता है कि बंगाली परिवारों में आम तौर पर सुबह देर से उठने वाले लोग भी इस दिन अहले सुबह चार बजे बिस्तर छोड़ देते है जिसके लिए घड़ी में बकायदा चार बजे का अलार्म तक लगा दिया जाता है.

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1932 में हुआ पहला लाइव प्रसारण

‘महिषासुर मर्दिनी’ का पहला प्रसारण 1932 में पितृ पक्ष पखवारा के अंतिम दिन अर्थात अमावस्या के दिन ब्रšह्म मुहूर्त में किया गया था. मूलत: दो घंटे के इस कार्यक्रम को दुर्गा सप्तशती के आधार पर तैयार किये गए चंडीपाठ के साथ नए अंदाज में लिखे गये भक्ति गीतों को एक कोलाज के तौर पर प्रस्तुत किया गया, जिसमें संस्कृत के स़्त्रोतों के साथ-साथ आम बोलचाल की भाषा में पूरी कहानी गढ़ी गयी है. मजे की बात यह है कि वर्षों से पंडालों में भी दुर्गा पूजा के दौरान चंडीपाठ के तौर पर इसके रिकार्ड बजाये जाते हैं. कार्यक्रम को अखिल भारतीय स्तर पर प्रसारण करने के उद्देश्य से देश की दूसरी भाषाओं में भी अनुदित किया गया लेकिन उसके गीतों को मूल बंगला में ही रहने दिया गया. मुमकिन है कि ऐसा दूसरी भाषाओं में अनुवाद करने से उसकी मधुरता क्षीण होने की संभावना रहने की वजह से किया गया. एचएमवी-सारेगामा ने इस कार्यक्रम के अधिकार ऑल इंडिया रेडियो से खरीदकर 80 के दशक में इसका कैसेट निकाला तथा 2001 में सीडी/डिवीडी वर्जन तैयार कर बाजार में उतारा. इसके बावजूद आकाशवाणी पर सुनने की लोगों की चाहत में कोई कमी नहीं आयी है.

चार महारथियों की दिमागी उपज है महिषासुर मर्दिनी

शारदीय नवरात्र प्रारंभ होने से एक दिन पहले प्रसारित होने वाले इस कार्यक्रम का विचार सबसे पहले आकाशवाणी के कोलकाता केंद्र के तत्कालीन केंद्र निदेशक प्रेमांकुर अतोर्थी को आया. उन्होंने एक शाम अपने तीन अभिन्न मित्र :- नृपेंद्र कृष्ण मुखोपाध्याय, संगीतकार रायचंद बोड़ाल (लोकप्रिय पार्श्वगायक व भाजपा सांसद बाबुल सुप्रियो के रिश्ते में दादाजी) और वीरेंद्र कृष्ण भद्र को इस विषय में बताया. तीनों को यह योजना बेहद पसंद आयी और सब मिलकर इसे साकार करने मे लग गये. इन लोगों के एक अन्य मित्र बैद्यनाथ भ˜ट्टाचार्य, जो कोलकाता स्थित संस्कृत कालेज में प्राध्यापक थे तथा वाणी कुमार के छद्म नाम से आकाशवाणी में नाटक आदि करते थे, को कार्यक्रम का स्क्रिप्ट तैयार करने की जिम्मेदारी दी गयी. वाणी कुमार ने मुंडक उपनिषद् का संपूर्ण अध्ययन कर इस रूपक का पूरा आलेख तैयार किया. पौराणिक गाथाओं को श्रोताओं के बीच आकर्षक बनाने के उद्देश्य से इसमें कई गीत भी लिखे गए जिसका संगीत तब के लोकप्रिय संगीत निर्देशक पंकज कुमार मल्लिक ने तैयार किया़ जानकारों को मालूम होगा कि पंकज मल्लिक का संगीत करियर रायचंद बोड़ाल के सहायक के तौर पर शुरु हुआ था़ इस पूरे पाठ को वीरेंद्र कृष्ण भद्र ने अपनी ओजस्वी आवाज से सजाया, जो उस समय आकाशवाणी कोलकाता में कार्यरत थे. श्री भद्र ने आकाशवाणी के लिए बंगला भाषा के प्रसिद्घ कवि तथा नोबल पुरस्कार विजयी रवींद्रनाथ टैगोर की अंतिम यात्रा का संपूर्ण विवरण सीधा प्रसारण के माध्यम से लोगों तक पहुंचाया था.

स्नान एवं नये वस्त्र धारण कर आते थे कलाकार

महिषासुर मर्दिनी का 1932 से लेकर 1961 तक आकाशवाणी पर लाइव प्रसारण होता था. कहा जाता है कि कार्यक्रम से एक दिन पहले शाम को सारे कलाकार एवं साजिंदे नहा-धोकर, नये वस्त्र धारण कर रेडियो स्टेशन पर आ जाते थे तथा रात को वहीं ठहरते थे जिससे प्रात: चार बजे प्रारंभ होने वाले कार्यक्रम में कोई बाधा न पहुंचे़ यह नियम सब पर लागू होता था. संगीतकार पंकज मल्लिक का एक तबला वादक उस्ताद करामतुल्ला खान मुसलमान होने के बावजूद पूरे नियम का निष्ठापूर्वक अनुपालन करते थे. इस तरह एक हिंदू महापर्व के प्राक्काल में प्रसारित होने वाले कार्यक्रम में एक मुसलमान कलाकार का योगदान कालजयी बन गया. 1961 में कार्यक्रम की रिकॉर्डिंग करायी गयी और इस तरह महिषासुर मर्दिनी का सीधा प्रसारण हमेशा के लिए समाप्त हो गया. धीरे-धीरे समय की मांग को ध्यान में रखते हुए पूरे कार्यक्रम को संपादित डेढ़ घंटे का कर दिया गया़ इस तरह मूल कार्यक्रम से कई अविस्मरणीय गीतों को हमेशा के लिए हटा दिया गया जिसका टेप आज आकाशवाणी के पास भी नहीं है.

बांगला फिल्मों के सुपरस्टार उत्तम कुमार की महिषासुर मर्दिनी

1976 में आकाशवाणी के कोलकाता केंद्र कुछ नया करने के उद्देश्य से अपने परंपरागत प्रसारण के स्थान पर एक नया महिषासुर मर्दिनी देवी दुगर्तिनाशिणिम् का प्रसारण किया जिसे बंगला फिल्मों के पहला सुपरस्टार उत्तम कुमार ने प्रस्तुत किया. इस नये रुपक का आलेख डॉ गोविंद गोपाल मुखोपाध्याय ने तैयार किया, जो पश्चिम बंगाल के वर्द्घमान विश्वविद्यालय में संस्कृत के विभागाध्यक्ष थे तथा संगीत निर्देशन हेमंत कुमार मखर्जी ने किया. यह कार्यक्रम पूरी तरह फ्लाप रहा. कहा जाता है कि कई लोगों ने अखबारों में पत्र लिखकर विरोध करने के साथ-साथ आकाशवाणी केंद्र में जाकर तोड़-फोड़कर अपना विरोध जताया. श्रोताओं की मांग को ध्यान में रखते हुए आकाशवाणी प्रशासन द्वारा उस वर्ष षष्ठी के दिन उस परंपरागत महिषासुर मर्दिनी का प्रसारण किया गया. इसके बाद फिर कभी महिषासुर मर्दिनी के मूल कथानक से छेड़छाड़ नहीं किया गया.

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