सभी तीर्थ से बढ़कर कन्या पूजा

ज ब तक नवमी तभी तक हवन- ‘यावन्न नवमी तावत हवनं’, इसलिए हवन के पूर्व ही कुमारी पूजन शास्त्र विहित है, जो गुरुवार, 18 अक्तूबर को है. नवरात्र व्रत के संदर्भ में देवी भागवत में कहा गया है कि ऐसा कोई दान और व्रत नहीं है, जिसकी तुलना इससे की जा सके. यह धन, धान्य, […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 13, 2018 1:58 AM
ज ब तक नवमी तभी तक हवन- ‘यावन्न नवमी तावत हवनं’, इसलिए हवन के पूर्व ही कुमारी पूजन शास्त्र विहित है, जो गुरुवार, 18 अक्तूबर को है. नवरात्र व्रत के संदर्भ में देवी भागवत में कहा गया है कि ऐसा कोई दान और व्रत नहीं है, जिसकी तुलना इससे की जा सके. यह धन, धान्य, सुख, संतान, उन्नति, आयु, आरोग्य, शत्रु निवारण, भोग, स्वर्ग, मोक्ष सब कुछ देनेवाला है.
यह पूर्वजन्म के दोषों को भी दूर करनेवाला है. केवल नवरात्र ही नहीं, भगवती से संबंधित सभी तरह के अनुष्ठानों में देवीरूपा बच्चियों की पूजा का बड़ा महत्व है, क्योंकि-‘स्त्रियः समस्ताः सकला जगत्सु’(समस्त संसार की सभी स्त्रियां भगवती के ही विभिन्न रूप हैं).
हमारे ऋषि-मुनियों ने किशोरावस्था से पूर्व, अर्थात् दो वर्ष से दस वर्ष तक की बच्चियों में देवी के नौ रूपों को, क्रमशः कुमारी, त्रिमूर्ति, कल्याणी, रोहिणी, कालिका, चंडिका, शांभवी, दुर्गा तथा सुभद्रा- इन नौ नामों से प्रतिष्ठा दी है. उन्होंने कुमारी-पूजन को सभी तीर्थों और करोड़ों यज्ञों का फल देनेवाला बताया है. हां, तंत्र शास्त्रों में (रुद्रयामल एवं बृहद्नील) में एकवर्षीया से षोडश वर्षीया तक देवियों का उल्लेख है, पर प्रचलित एवं प्रशस्त परंपरा द्विवर्षीया से दशवर्षीया कुमारियों की पूजा की ही है.
नवरात्र में हो सके तो प्रतिदिन एक, नौ या वृद्धिक्रम (1,2,3,..) से या, दुगुनी (2,4,6,..) या तिगुनी (3,6,9) कुमारियों को साक्षात् मां का स्वरूप मानकर सादर, सप्रेम आमंत्रित करें तथा उनके पांव पखारकर विधिवत् पूजा कर सुस्वादु भोजन कराएं. दक्षिणा देकर और उनकी परिक्रमा कर ससम्मान विदा देनी चाहिए.
इन नाम-मंत्रों से ही सविधि अर्चना की जा सकती है
1. ऊँ कुमार्यै नमः 2. ऊँ त्रिमूर्त्यै नमः 3. ऊँ कल्याण्यै नमः 4. ऊँ रोहिण्यै नमः 5. ऊँ कालिकायै नमः 6. ऊँ चण्डिकायै नमः 7. ऊँ शाम्भव्यै नमः 8. ऊँ दुर्गायै नमः 9. ऊँ सुभद्रायै नमः।

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