रोगों के शमन में भी लाभप्रद होते हैं रत्न
पीएन चौबे, ज्योतिषविद् चिकित्सा शास्त्र व्यक्ति को रोग होने के पश्चात रोग के प्रकार का आभास देता है, किंतु ज्योतिषशास्त्र के तहत कुंडली में अनिष्ट ग्रहों पर विचार कर विभिन्न रत्नों के उपयोग से उपचार किया जाता है. दरअसल, ज्योतिष के अनुसार व्यक्ति की जन्म कुंडली जन्म के समय बह्मांड में स्थित ग्रह-नक्षत्रों का मानचित्र […]
पीएन चौबे, ज्योतिषविद्
चिकित्सा शास्त्र व्यक्ति को रोग होने के पश्चात रोग के प्रकार का आभास देता है, किंतु ज्योतिषशास्त्र के तहत कुंडली में अनिष्ट ग्रहों पर विचार कर विभिन्न रत्नों के उपयोग से उपचार किया जाता है. दरअसल, ज्योतिष के अनुसार व्यक्ति की जन्म कुंडली जन्म के समय बह्मांड में स्थित ग्रह-नक्षत्रों का मानचित्र होती है, जिसका अध्ययन कर यह भी जाना जा सकता है कि व्यक्ति को उसके जीवनकाल में कौन-कौन से रोग होंगे.
जन्म कुंडली में छठा भाव बीमारी और अष्टम भाव मृत्यु और उसके कारणों पर प्रकाश डालते हैं. बीमारी पर विचार जन्म कुंडली के द्वादष भाव से किया जाता है. इन भावों पर दृष्टि डालनेवाले अनिष्ट ग्रहों के निवारण के लिए पूजा-पाठ, जाप, यंत्र धारण, दान एवं रत्न धारण आदि साधन ज्योतिष में उल्लेखित हैं.
ज्योतिष का एक समान्य नियम है कि जन्म के समय ग्रहों से निकलने वाली किरणें जीवनपर्यंत प्रभाव डालती हैं. सूर्य से निकलनेवाली किरणें सात रंगों से बनी हैं.
इनमें किसी भी रंग का अवशोषण विभिन्न रोगों के रूप में परिलक्षित होता है, जैसे- लाल रंग की कमी से रक्त अल्पता, बुखार आदि हो सकता है. रत्नशास्त्र के अनुसार विशेष रंगों के रत्न विभिन्न रोगों को दूर करने में प्रभावी होते हैं.
रक्तचाप : जन्म कुंडली में शनि व मंगल की युति हो अथवा एक-दूसरे की परस्पर दृष्टि हो तथा छठे, आठवें और बारहवें भाव में चंद्र का स्थित होकर पापग्रहों से दृष्ट होना रक्तचाप देता है. चिंता और श्रम के कारण होने पर सफेद मोती, मधुमेह व मोटापे के कारण होने पर पुखराज एवं शनि की साढ़े साती में रक्तचाप प्रारंभ होने के कारण काला अकीक अथवा गोमेद रत्न अंगूठी में धारण करें.
हृदय रोग : जन्म कुंडली के चतुर्थ, पंचम और छठे भावों में पापग्रह स्थित हों और उन पर शुभ ग्रहों की दृष्टि नहीं हो, तो हृदय रोग की शिकायत होती है.
कुंभ राशि स्थित सूर्य पंचम भाव में और छठे भाव में अथवा इन भावों में केतु स्थित हो और चंद्रमा पापग्रहों से देखा जाता हो, तो हृदय संबंधी रोग होते हैं. सूर्य यदि कारण बनें तो माणिक, चंद्र का कारण हो, तो मोती पहनना लाभदायी है.
मधुमेह : यह रोग चंद्रमा के पापग्रहों के साथ युति होने पर, शुक्र ग्रह की गुरु के साथ या सूर्य के साथ युति होने पर अथवा शुक्र ग्रह पापग्रहों से प्रभावित होने पर होता है. सफेद मूंगा रत्न अंगूठी में धारण करने से लाभ होता है.
अन्य रोगों में उपयुक्त रत्न
कमर एवं पैर दर्द : पीला पुखराज धारण करें. यह लिवर एवं जॉन्डिस में भी प्रभावी है.
वात रोग : नीलम या नीली पहनें.
अस्थमा, टीबी रोग : सफेद मोती पहनें. अनिद्रा में भी लाभ पहुंचाती है.
ह्रदय रोग : रूबी, पन्ना या हीरा, मोती अपनी जन्म पत्री के अनुसार पहनें.
किडनी या पेट संबंधित रोग : पन्ना, जेड या रॉक क्रिस्टल पहनें. यह सिर दर्द में भी लाभकारी है.
दांत रोग : लाल मूंगा या लापिस लजौली पहनें.
कान, नाक, गला रोग : पीला पुखराज या सफेद मूंगा श्रेष्ठ है.
मूत्राशय संबंधी : मोती, हीरा, लाल मूंगा या पीला पुखराज अपनी कुंडली के अनुसार पहनें.
रक्त संबंधी रोग : नीलम, पन्ना या रूबी कुंडली के अनुसार पहनें.
फेफड़ा एवं नर्वस सिस्टम : मैलाकाइट, जेड, पेरिडॉट या पन्ना पहनना लाभप्रद है.
चर्म रोग : इसमें गोमेद चमत्कारिक लाभ पहुंचाता है.
गर्भपात : लाल मूंगा या मैलाकाइट पहनना लाभप्रद है.
अपच रोग : लाल मूंगा पहनना चमत्कारिक प्रभाव डालता है.