अमरता का पात्र

एक बार धर्मशास्त्रों की शिक्षा देने वाला एक विद्वान ईसा मसीह के पास आया. उसने ईसा से पूछा- अमरता की प्राप्ति के लिए क्या करना होगा? ईसा मसीह बोले- इस पर धर्मशास्त्र क्या कहते हैं? व्यक्ति बोला- वे कहते हैं कि हमें ईश्वर को संपूर्ण हृदय से प्रेम करना चाहिए. अपने पड़ोसी और इष्ट मित्रों […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 22, 2018 12:57 AM
एक बार धर्मशास्त्रों की शिक्षा देने वाला एक विद्वान ईसा मसीह के पास आया. उसने ईसा से पूछा- अमरता की प्राप्ति के लिए क्या करना होगा? ईसा मसीह बोले- इस पर धर्मशास्त्र क्या कहते हैं? व्यक्ति बोला- वे कहते हैं कि हमें ईश्वर को संपूर्ण हृदय से प्रेम करना चाहिए. अपने पड़ोसी और इष्ट मित्रों को भी ईश्वर से जोड़ देना चाहिए. ईसा ने कहा- बिल्कुल ठीक.
तुम इसी पर अमल करते रहो. विद्वान ने तब जिज्ञासा व्यक्त की- किंतु मेरा पड़ोसी कौन है? ईसा मसीह बोले-सुनो, यरूशलम का एक व्यक्ति कहीं दूर यात्रा पर जा रहा था. रास्ते में उसे कुछ चोर मिल गये. उन्होंने उसे मारा-पीटा और अधमरा करके चले गये. संयोगवश उधर से एक पादरी आया. उसने उस व्यक्ति को वहां पड़े देखा, पर चला गया.
फिर एक छोटा पादरी आया और वह भी उसे देखकर चलता बना. कुछ देर बाद एक यात्री वहां से निकला. उसने घायल की मरहम-पट्टी की. उसे कंधे पर उठाकर एक धर्मशाला पहुंचाया और उसकी सेवा की. दूसरे दिन धर्मशाला वालों से उस व्यक्ति का समुचित ध्यान रखने की बात कहकर चला गया.
अब कहो, इन तीनों में से उस घायल का सच्चा पड़ोसी कौन हुआ? विद्वान बोला- वह अंजान यात्री, जिसने उस पर दया दिखाई. तब ईसा ने कहा- तो बस तुम भी ऐसा ही आचरण करो, वैसे ही बनो. सभी के प्रति प्रेम, दया व सहयोग भाव रखना मानवता की पहचान है. ऐसा करनेवाला ही सच्चे अर्थों में अमरता का पात्र बनता है.

Next Article

Exit mobile version