मकर संक्रांति: तीन साल बाद लगा है सर्वार्थ सिद्धि योग, इस बार 15 को मनेगा त्योहार

पटना : इस बार मकर संक्रांति का पर्व 15 जनवरी दिन मंगलवार को अश्विनी नक्षत्र और सर्वार्थ सिद्धि योग में मनाया जायेगा. इस दिन गंगा स्नान और दान पुण्य का विशेष महत्व है. पंडित राकेश झा ने बताया कि 14 जनवरी दिन सोमवार की मध्य रात्रि में सूर्य का मकर राशि में प्रवेश हो जायेगा. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 9, 2019 1:32 PM

पटना : इस बार मकर संक्रांति का पर्व 15 जनवरी दिन मंगलवार को अश्विनी नक्षत्र और सर्वार्थ सिद्धि योग में मनाया जायेगा. इस दिन गंगा स्नान और दान पुण्य का विशेष महत्व है. पंडित राकेश झा ने बताया कि 14 जनवरी दिन सोमवार की मध्य रात्रि में सूर्य का मकर राशि में प्रवेश हो जायेगा. इसके साथ ही मंगलवार 15 जनवरी को दोपहर 12 बजे तक पुण्यकाल में मकर संक्राति का पर्व मना सकेंगे.

सूर्यास्त से पहले सूर्य का संक्रमण हो तो उसी तिथि व दिन में मकर संक्रांति मनाना शास्त्र सम्मत है. बनारसी पंचांग के अनुसार 14 जनवरी की रात मध्य रात्रि 02 :19 बजे के बाद सूर्य का संक्रमण होने से मंगलवार को ही मकर संक्रांति मनाया जायेगा.

इस दिन स्नान-दान, तिल ग्रहण करने व कंबल दान करना शुभ माना गया है. सूर्य के उत्तरायण होने से मनुष्य की कार्यक्षमता में वृद्धि होती है. उदयकालीन तिथि के अनुसार 15 जनवरी को ही सूर्योदय काल से दोपहर 11.28 बजे तक मकर संक्रांति के पुण्य काल में स्नान-दान किया जायेगा. इसके साथ ही सूर्य दक्षिणायण से उत्तरायण हो जाएंगे और खरमास समाप्ति हो जायेगी.

प्रयाग में कल्पवास भी मकर संक्रांति से शुरू होगी. इस दिन को सुख और समृद्धि का दिन माना जाता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार तिल से बनी सामग्री ग्रहण करने से कष्ट दायक ग्रहों से छुटकारा मिल जाता है. वहीं, परिवार में सुख और शांति बनी रहती है. इसके साथ ही मंगलवार को ही भगवान भास्कर का राशि परिवर्तन होगा. भगवान सूर्यदेव धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश कर जायेंगे. शास्त्रों में उत्तरायण की अवधि को देवताओं का दिन और दक्षिणायन को देवताओं की रात के तौर पर माना जाता है.

सूर्य मकर से मिथुन राशि तक उत्तरायण में और कर्क से धनु राशि तक दक्षिणायण में रहते हैं. शास्त्रों में उत्तरायण को देवताओं का दिन और दक्षिणायण को देवताओं का रात्रि कहा जाता है. यह भी मान्यता है कि दिवगंत आत्माएं भी उत्तर दिशा में हो जाती हैं, जिससे उन्हें देवताओं का सान्निध्य मिलता है. भीष्म ने भी अपने प्राण त्यागने के लिए सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा की थी.

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