सद्गुरु स्वामी आनंद जी एक आधुनिक सन्यासी हैं, जो पाखंड के धुरविरोधी हैं और संपूर्ण विश्व में भारतीय आध्यात्म व दर्शन के तार्किक तथा वैज्ञानिक पक्ष को उजागर कर रहे हैं. सद्गुरुश्री के नाम से प्रख्यात कार्पोरेट सेक्टर से अध्यात्म में क़दम रखने वाले यह आध्यात्मिक गुरु नक्षत्रीय गणनाओं तथा गूढ़ विधाओं में पारंगत हैं तथा मनुष्य के आध्यात्मिक, सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक व्यवहार की गहरी पकड़ रखते हैं. आप भी इनसे अपनी समस्याओं को लेकर सवाल पूछ सकते हैं. इसके लिए आप इन समस्याओं के संबंध में लोगों के द्वारा किये गये सवाल के अंत में पता देख सकते हैं….
सवाल- किस पूजा पाठ या उपाय से पैसों की कमी दूर होगी.
-रजनीश पाण्डेय
जवाब- सदगुरुश्री कहते हैं कि अपनी योग्यता का विस्तार करते हुए पूर्ण निष्ठा से अनवरत सटीक कर्म धन की कमी दूर करने का सबसे बड़ा उपाय है. संदर्भ के लिए ज्योतिष में लग्नेश, धनेश, भाग्येश और कर्मेश की उपासना को धनार्जन और धन प्रबंधन के लिए श्रेष्ठ माना गया है. तंत्र शास्त्र में यक्ष और यक्षिणी की साधना, सूर्यास्त के दो घंटे पश्चात घर को धूप, अगरबत्ती या किसी भी पदार्थ से सुगंधित कर देना धनार्जन के लिए श्रेष्ठ कर्म कहा गया है. लाल किताब में बंदरों को केले खिलाना, चींटियों को शक्कर मिश्रित मेवे खिलाना, मिष्ठान का वितरण करना, जेब में चाँदी का ठोस हाथी रखना धन की कमी को नष्ट करने वाला उत्तम प्रयोग माना गया है.
सवाल- पिताजी का जुलाई में निधन हो गया. मैं ससुराल में रहती हूं. मेरे पति को लगता है कि मेरी मां का कहीं संबंध है. बहुत तनाव में हूं. कोई उपाय बताइए जिससे उनका संबंध ख़त्म हो जाए.
मां की जन्म तिथि- 28.02.1971, जन्म समय-19.21, स्थान-कोलकाता
-रीमा उपाध्याय
जवाब- सदगुरुश्री कहते हैं कि आपकी माताश्री की राशि मेष और लग्न कन्या है. लाभेश चंद्रमा की अष्टम भाव में मौजूदगी आपकी मां के स्वभाव को भावुकता प्रदान कर रही है, वहीं प्रेम भाव के स्वामी शनि की अष्टम में शत्रु मंगल की मौजूदगी प्रेम के क्षय की कथा कह रही है. उनकी कुंडली में मुझे वर्तमान में प्रत्यक्ष रूप से किसी संबंध के सूत्र नज़र नही आ रहे हैं. पर मेरे विचार से यदि मात्र 48 वर्ष की आयु में प्राप्त उनके इस ज़ख़्म पर मरहम लगाने के लिए कोई आ भी जाए, तो यह तनाव की नहीं, प्रसन्नता की बात है। मैं आपको अपने विचारों को रूपांतरित करने की सलाह देता हूं.
सवाल- मेरी मां मेरे पति और मेरी सास को मेरे ही ख़िलाफ़ भड़काती है. कहीं मेरा दांपत्य जीवन न बिखर जाए? इसे ठीक करने का कोई उपाय बतायें.
जन्मतिथि: 17.09.1996, समय: 22.37 बजे, स्थान-हाजीपुर
-अपर्णा मिश्रा
जवाब- सदगुरुश्री कहते हैं कि आपकी राशि मेष और लग्न मिथुन है. आपके मातृ भाव में सूर्य अपने शत्रु राहू के साथ बुध की राशि कन्या में आसीन है. सूर्य जहां बैठते हैं, वहां के सुख में कमी के लिए जाने और माने जाते हैं. यह योग मां से संबंध को प्रभावित करके उन्हें अत्यधिक संवेदनशील बनाता है. संभव है कि वो अपने जीवन के कटु अनुभवों से प्रभावित हों. आप चिंता न करें. आपके ग्रह योग पुष्टि करते हैं कि आपकी मां की नकारात्मक सोच का असर आपके दांपत्य जीवन पर नहीं पड़ेगा. रविवार को नमक के त्याग और गुड़ व गेहूं के दान के साथ मस्तक, नाभि और ललाट पर केसर मिश्रित जल का प्रयोग लाभ प्रदानों करेगा, ऐसा मैं नहीं ज्योतिष की मान्यतायें कहती हैं.
सवाल: मेरे पापा हमेशा डांटते रहते हैं. मेरे मन में बार बार घर छोड़ने का विचार आता है।। क्या करूं?
जन्मतिथि- 23.08.2000, समय-12.17, स्थान-आरा.
-प्रज्ञा सक्सेना
जवाब- सदगुरुश्री कहते हैं कि ज्योतिष में पिता का भाव और करियर का स्थान एक ही है, और उसमें पिता से मतभेद उज्जवल करियर के लिए सोपान की मानिंद है. आपकी राशि वृष और लग्न वृश्चिक है। आपके पिता भाव का स्वामी सूर्य स्वघर में आसीन होकर जहां पिता से मनभेद नहीं, कुछ वैचारिक भिन्नता की भूमिका तैयार कर रहे हैं, वही आपको क्षणिक रूप से असहज बना रहे हैं. पर ध्यान रहे कि यही योग आपको कुल दीपिका योग भी प्रदान कर रहा है. ध्यान रहे, विकास सदैव विपरीत परिस्थितियों के दामन में ही जन्म लेता है. आप और अपने पिता का DNA एक ही है. वो आपका वर्तमान हैं, और आप उनका भविष्य। पिता आपके रचयिता हैं. मैं पिता के निर्देशों या आलोचनाओं को अपमान समझने की आपकी अवधारणा से सहमत नहीं हूं. कुम्हार घड़े को आकार देने के लिए जब बाहर से थपकी लगाता है, तब उसका दूसरा हाथ अंदर रहकर समस्त झटकों को अपने ही ऊपर ले रहा होता है. अतः घर त्यागने जैसी मूर्खता को ज़ेहन से निकाल दें.
सवाल- किसकी उपासना लॉटरी में सफलता के लिए बेहतर है.
– राघव बहल
जवाब- सदगुरुश्री कहते हैं कि पूर्ण योग्यता का प्रदर्शन करते हुए सही दिशा में अनवरत यथोचित श्रम ही बड़ी सफलता की कुंजी है. कोई लॉटरी का नंबर आपकी तकदीर बदल देगा, ये विचार काल्पनिक है. स्वप्नलोक से बाहर आकर देखें, प्रत्येक सफल व्यक्ति किसी न किसी उद्यम में क्रियाशील और व्यस्त है. सिर्फ़ संदर्भ के लिए, ग्रंथों में मणिभद्र, अपराजिता के साथ यक्ष यक्षिणी की साधना आकस्मिक लाभ के लिए उत्तम मानी जाती है. ज्योतिष में धनेश, लाभेश और भाग्येश की उपासना भी धन प्रदान करती है। गणपति को जीरे और काली मिर्च की आहुति, देवी को कमलगट्टे, बिल्वपत्र, बिल्वफल औऱ दुग्ध सिक्त कमल की आहुति धनकारक होती है, ऐसा प्राचीन ग्रंथ कहते हैं। पर सनद रहे कि कर्म का कोई विकल्प नहीं है. निर्बल की सहायता बुजुर्गों का आशीर्वाद और अपने अंतर्मन में विराजमान ईश्वर से प्रार्थना सुख शांति में इजाफा कर सकती है.
सवाल- मेरा बॉय फ्रेंड अब मुझसे शादी से मना कर रहा है. कोई उपाय बताइए जिससे वो फिर से मान जाए.
जन्म तिथि- 1.051998, जन्म समय- 18.03, जन्म स्थान- धनबाद.
– प्रेरणा रस्तोगी
जवाब- सदगुरुश्री कहते हैं कि आपकी राशि मिथुन और लग्न तुला है. मंगल जहां आपकी कुंडली के अष्टम भाव में बैठकर आपको मांगलिक बना रहा है वहीं साथ में सूर्य व शनि की उपस्थिति आपके विचित्र परिस्थिति और किसी ग़लत निर्णय का साक्षी बन रही हैं. षष्ठ भाव में शुक्र की मौजूदगी एक से अधिक संबंधों की संभावनाओं को बल प्रदान कर रही हैं. यदि कोई आपकी भावनाओं का सम्मान नही कर रहा है तो फिर ऐसे संबंधों का क्या मोल. सिर्फ़ हम जो चाहते हैं वो हो जाए, ये मनोवृत्ति उचित नही है. मैं आपको एक तरफ़ा प्रेम से बाहर आने और परिवार को भी अपनी इच्छा में शरीक करने का परामर्श देता हूं.
सवाल- होली के पर्व पर होलिका दहन के दूसरे दिन रंग खेलने का क्या कोई आधार है या ये सिर्फ़ कोई नवीन सामाजिक उत्सव मात्र है.
-सरोज अग्रवाल
जवाब-सदगुरुश्री कहते हैं कि होली उत्सव नहीं पर्व है. पर्व दरअसल आंतरिक शक्ति में इज़ाफ़ा का काल होता है, जिसके द्वारा हम सकारात्मक कर्मों द्वारा अपना भाग्य बदल सकते हैं. ये बेला आत्मिक और मानसिक क्षमता के विकास के लिए बेहद मुफ़ीद मानी गयी है. मेरी दृष्टि से होलिका दहन और जलीय रंग ऋतु परिवर्तन के मध्य सामंजस्य की क्रियायें हैं. रंग क्रीड़ा और उसके दरमियान मुख हर्ष पूर्ण कोलाहल की ध्वनि नकारात्मक ऊर्जा के उन्मूलन के लिए कारगर मानी गयी है. ये महज़ सामाजिक उत्सव मात्र नहीं है. ना ही ये कोई नया चलन है. इसके सूत्र हमारी जड़ों में बहुत गहरे तक मिलते हैं. इसका ज़िक्र कलयुग से पहले द्वापर युग में भी मिलता है.
सवाल- सूर्य को अर्ध्य देने का समय और प्रक्रिया क्या है. क्या इसे ख़ाली पेट देना आवश्यक है?
-राधिका ओझा
जवाब- सदगुरुश्री कहते हैं कि उगते हुए सूर्य को गिरते हुए जल से देखने को अर्ध्य अर्पित करना कहा जाता है. यह प्रक्रिया उगते हुए रक्त वर्ण के सूर्य के समक्ष की जाती है. इसके लिए ख़ाली या भरे पेट का यूं तो कोई घोषित नियम नहीं है. पर विशेष परिस्थितियों के अलावा सूर्योदय से पूर्व भोजन सामान्य रूप से प्रचलित नहीं है. अतएव लोग सामान्य रूप से इसे किसी भी आहार से पूर्व संपादित करते हैं.
सवाल- नए घर में उदर कष्ट शुरू हो गयी हैं. जबकि पुराने घर में ऐसी कोई बात नहीं थी. क्या इसका संबंध वास्तु से हो सकता है?
-नीता शुक्ला
जवाब- अवश्य…इसके लिए घर की दिशाओं पर विचार की आवश्यकता है और आपने अपने घर की दिशाओं का कोई विवरण साझा नहीं किया है. सदगुरुश्री कहते हैं कि वास्तु के नियमानुसार, यदि सोते समय हमारा सर उत्तर दिशा की तरफ़ हो, तो पाचन शक्ति पर बुरा प्रभाव पड़ता है. जिससे उदर विकार घेर लेता हैं और शनै: शनै: यह आपके पूरे शरीर को रुग्ण बना देता है. यदि शयन के समय सर पश्चिम दिशा में हो तो यह गैस और एसिडीटी की समस्या प्रदान करके आपकी देह को नाना प्रकार के दैहिक कष्टों की झड़ी लगा सकती है.
सवाल- मेरी कुंडली में ग्रहण योग सूर्य से ग्रसित है। ये क्या होता है. इसका असर अच्छा होता है या बुरा.
जन्म तिथि-25.02.1991, जन्म समय-17.43, जन्म स्थान- मुंगेर
-रानी पाठक
जवाब- सदगुरु श्री कहते हैं कि कुंडली में यदि चंद्रमा के साथ राहु या केतु में से कोई भी ग्रह आसीन हो तो यह योग ग्रहण योग कहलाता है. यह स्थिति चित्त को अस्थिर करके, व्यक्तित्व को नाटकीय बनाती है. इनका मन सदैव बेचैन रहता है. ये लोग अनावश्यक चक्रमण करते हैं. इनमें एकाग्रता का अभाव होता है. जिससे शिक्षा पर बहुत नकारात्मक असर पड़ता है. ये अपना करियर बार बार परिवर्तित करते रहते हैं. इनके मस्तिष्क में अनावश्यक संदेह घर कर लेता है. उलटी सीधी बातों पर ये लोग तर्क नहीं, कुतर्क करते हैं. अगर इनके साथ सूर्यदेव भी बैठ जायें तब मानसिक विकार से कष्ट प्राप्ति का योग निर्मित होता है. क्रूर ग्रहों की दृष्टि पड़ने से मानसिक विक्षिप्तता की स्थिति उत्पन्न हो सकती है. आपकी राशि मिथुन और लग्न सिंह है. मिथुन राशि का चंद्रमा आपके एकादश भाव में तनहा बैठा हुआ है. राहु षष्ठ भाव में,केतु द्वादश भाव में और सूर्य सप्तम भाव में मित्र बुध के साथ आसीन हैं। लिहाज़ा आपकी कुंडली में ग्रहण योग है ही नहीं. अतः वहम का त्याग करें.
( अगर आपके पास भी कोई ऐसी समस्या हो, जिसका आप तार्किक और वैज्ञानिक समाधान चाहते हों, तो कृपया प्रभात खबर के माध्यम से सद्गुरु स्वामी आनंद जी से सवाल पूछ सकते हैं. इसके लिए आपको बस इतना ही करना है कि आप अपने सवाल उन्हें सीधे saddgurushri@gmail.com पर भेज सकते हैं. चुनिंदा प्रश्नों के उत्तर प्रकाशित किये जायेंगे. मेल में Subject में प्रभात ख़बर अवश्य लिखें. )