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ज्योतिषीय समाधान: पति को वश में करने का क्या है उपाय ? जानें क्या कहते हैं सद्‌गुरु स्वामी आनंद जी

सद्‌गुरु स्वामी आनंद जी एक आधुनिक सन्यासी हैं, जो पाखंड के धुरविरोधी हैं और संपूर्ण विश्व में भारतीय आध्यात्म व दर्शन के तार्किक तथा वैज्ञानिक पक्ष को उजागर कर रहे हैं. सद्‌गुरुश्री के नाम से प्रख्यात कार्पोरेट सेक्टर से अध्यात्म में क़दम रखने वाले यह आध्यात्मिक गुरु नक्षत्रीय गणनाओं तथा गूढ़ विधाओं में पारंगत हैं […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 24, 2019 7:36 AM

सद्‌गुरु स्वामी आनंद जी एक आधुनिक सन्यासी हैं, जो पाखंड के धुरविरोधी हैं और संपूर्ण विश्व में भारतीय आध्यात्म व दर्शन के तार्किक तथा वैज्ञानिक पक्ष को उजागर कर रहे हैं. सद्‌गुरुश्री के नाम से प्रख्यात कार्पोरेट सेक्टर से अध्यात्म में क़दम रखने वाले यह आध्यात्मिक गुरु नक्षत्रीय गणनाओं तथा गूढ़ विधाओं में पारंगत हैं तथा मनुष्य के आध्यात्मिक, सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक व्यवहार की गहरी पकड़ रखते हैं. आप भी इनसे अपनी समस्याओं को लेकर सवाल पूछ सकते हैं. इसके लिए आप इन समस्याओं के संबंध में लोगों के द्वारा किये गये सवाल के अंत में पता देख सकते हैं….

सवाल- ज्योतिष में कोई कुंडली मानता है, कोई राशि, तो कोई नक्षत्र. इसमें इतना कंफ्यूजन क्यों है? मुझे तो ज्योतिष एक काल्पनिक विधा लगती है, जो प्राथमिक रूप से सच्चाई परे नज़र आती है.
-सरला माहेश्वरी

जवाब- कुछ भी मानने से पहले उस विधा या विषय का ज्ञान आवश्यक है।महज़ किसी विषय को न जानना प्रश्नचिन्ह का कारक नहीं हो सकता. ज्योतिष एक काल्पनिक विधा नहीं, तर्क और गणित का विज्ञान है. सदगुरु श्री कहते हैं कि कुंडली, नक्षत्र और राशियां कल्पना नहीं यथार्थ है. आप उसे उपकरणों की सहायता से देख भी सकती हैं. हमारी पृथ्वी सौर मंडल का हिस्सा हैं. इसके समस्त ग्रह सूर्य से टूट कर बने हैं जो, गैस और धातुओं के ग़ुबार हैं. जिनकी अलग अलग रेडीओ ऐक्टिविटी है और वो सृष्टि पर अपना असर डालती हैं. हमारे सौर मंडल के चारों ओर सितारों के ढेरों समूह हैं. इन्हीं चार चार समूहों को एक नक्षत्र और नौ समूहों यानि सवा दो नक्षत्रों को एक राशि कहा गया है. कुल 28 नक्षत्र हैं. अविजित नक्षत्र को राशि चक्र से पृथक रखा गया है. सत्ताईस नक्षत्रों को ही नक्षत्र माना जाता है. जन्म के समय चंद्रमा जिस नक्षत्र में हो उसे हमारा नक्षत्र, और वो नक्षत्र जिस राशि का हिस्सा हो वो हमारी राशि कहलाती है. रही बात कुंडली की तो जन्म के बाद ग्रहों की जो आकाश में होती है, काग़ज़ पर वही स्थिति कुंडली कहलाती है।इसमें आपको कंफ्यूजन कहाँ नज़र आता है.

सवाल-करियर से संतुष्ट नहीं हूं. बदलना चाहता हूं. आप किस क्षेत्र में जाने की अनुशंसा करते हैं. जन्मतिथि-04.06.1987, जन्म समय- 6.19 प्रातःबजे प्रातः, जन्म स्थान- मुज़फ़्फ़रपुर
– अनुज सिंह

जवाब- सदगुरुश्री कहते हैं कि आपकी राशि सिंह और लग्न मिथुन है. लग्न का स्वग्रही बुध जहां आपको अपार बौद्धिक क्षमता से नवाज़ रहा है, वहीं, लग्न में ही बैठा मंगल आपको ऊर्जा से सराबोर कर रहा है. पर व्यय का सूर्य और शुक्र आपको आपके हिस्से के सम्मान से वंचित करके, आपको आलस्य प्रदान कर रहा है. हां, आप अपने करियर में बदलाव कर सकते हैं. मैं आपको अपने पूर्व अनुभव के क्षेत्र को ही आज़माने का मशवरा देता हूं. यदि आप चाहें तो शिक्षा, लेखन, पत्रकारिता, और सूचना-प्रौद्योगिकी आपको उत्तम फल प्रदान कर सकता है। सकारात्मक चिंतन, योग और वर्ज़िश से लाभ होगा.

सवाल- मुझे ह्रदय रोग है. कृपया स्वस्थ रहने के लिए कोई शक्तिशाली उपाय बताइए. जन्म तिथि- 04.05.1981, जन्म समय-7.41 प्रातः, जन्म स्थान-सासाराम.
-रोहित वर्मा

जवाब-सदगुरुश्री कहते हैं कि आपकी राशि मीन और लग्न वृष है। आपकी कुंडली में सूर्य और शुक्र एक साथ द्वादश भाव में विराज कर आपके ह्रदय रोग की पटकथा लिख रहा है. पर साथ में स्वघर का मंगल आपको सुरक्षा कवच भी प्रदान कर रहा है. खाने-पीने और भावनाओं पर नियंत्रण रखें. क्रोध और आवेश से दूर रहें. नित्य सूर्य को अर्ध्य, रविवार को नमक का त्याग व गुड़ और गेहूँ का दान से लाभ होगा, ऐसा मैं नहीं, पारंपरिक अवधारणायें कहती हैं.

सवाल- पति सारे संसार की बात मानते हैं, बस मेरी ही नहीं सुनते. उनको वश में करने के लिए कोई उपाय बताइये. जन्म तिथि- 30.05.1992, जन्म समय- 18.09, जन्म स्थान- छपरा.
-कविता प्रकाश

जवाब- सदगुरु श्री कहते हैं कि आपकी राशि मेष और लग्न वृश्चिक है. आपके दाम्पत्य भाव में सूर्य बैठ कर आपके वैवाहिक जीवन के लिये उलझन का सूत्रपात कर रहा है वहीं, आपके छठे भाव में चंद्रमा विराज कर जहां आपके स्वभाव को भावुक, संवेदनशील और नाटकीय बना रहा है. यह दोनों योग आपके पारिवारिक जीवन में तनाव को जन्म दे रहा है. पर वहीं पति भाव का स्वामी शुक्र सप्तम भाव में ही बैठकर आपके दांपत्य जीवन के लिए संजीवनी भी सिद्ध हो रहा है. किसी अपने वश में करने का भाव या प्रयास सदैव कष्ट ही देता है। दाम्पत्य जीवन किसी चाबुक से नहीं, प्यार और प्रेम पूर्ण आचरण से ही विकसित होता है. केवल वैवाहिक जीवन के लिए ही नहीं किसी भी साझेदारी की सफलता के लिये लचीला रवैया अनिवार्य शर्त है. 43 दिनों तक गुड़ का जल प्रवाह, रविवार को नमक का त्याग और हरी सब्ज़ियों का सेवन लाभकारी सिद्ध होगा, ऐसा मैं नहीं ज्योतिष की पारम्परिक मान्यतायें कहती हैं। सनद रहे, कि किसी से भी अपेक्षा अंत में कष्ट ही देती है.

सवाल- किताब रखने की सही दिशा क्या है.
– शेखर पाण्डेय

जवाब- सदगुरु श्री कहते कि अगर यदि आप स्वयं के बहुमंज़िला मकान में रहते हैं, तो वहां ऊपर की मंज़िल में पूर्व, उत्तर-पूर्व और पश्चिम दिशा के कक्ष की दक्षिण- पश्चिम दिशा में पुस्तकों का भंडारण करना चाहिए. पर यदि आप अपार्टमेंट्स यानि महानगरों के फ़्लैट्स में रहते हैं तो वहां किताबों के संग्रह की सही दिशा इशान्य कोण के कक्ष का दक्षिण पश्चिम कोना है. अगर इशान्य कोण यानि उत्तर-पूर्व में स्थान उपलब्ध न हो तो किसी भी कक्ष के दक्षिण-पश्चिम कोने पर पुस्तकों के रखने की व्यवस्था की जा सकती है. पर पुस्तकों की संख्या यदि ज़्यादा हो तो इसका विस्तार १५० अंश से ३०० अंश तक किया जा सकता है. किसी भी सूरत में पुस्तकों का भंडारण शून्य से ९० अंश के मध्य नहीं होना चाहिए. अंश यानि डिग्रियों की स्थिति की जानकारी किसी भी कम्पास यानि क़ुतुबनुमा से प्राप्त हो सकती है। ऐसा मैं नहीं, वास्तु के नियम कहते हैं.

सवाल- मल-मूत्र का अशुभ स्वप्न बार बार आ रहा है। मन विचलित हो गया है। इसके अशुभ फल से कैसे मुक्ति मिलेगी ?
– लालजी शर्मा

जवाब- सदगुरु श्री कहते हैं कि स्वप्न शास्त्र के अनुसार सूर्योदय से सिर्फ़ ९२ मिनट पहले के ही स्वप्न को भविष्य के संकेत के रूप में देखा जा सकता है. हालांकि विज्ञान इसे स्वीकार नहीं करता. जहां तक मल-मूत्र के स्वप्नों का सम्बंध है, स्वपन शास्त्र इसे बेहद शुभ और आनन्द प्राप्ति से जोड़ कर देखता है. यह अशुभ नहीं, लाभ प्राप्ति का संकेत है. मान्यताओं के अनुसार इस प्रकार के स्वप्न आने वाले दिनों में धन और संपत्ति प्राप्ति की ओर इशारा करते हैं। यद्यपि इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है.

सवाल- क्या संगमरमर की फ़्लोरिंग केवल मंदिर में ही शुभ फल देती है? घर में यह नहीं होनी चाहिए ?
– आनंद शंकर

जवाब- सदगुरु श्री कहते हैं कि वास्तु के नियम ऐसी कोई ताक़ीद नहीं करते है. किसी भी फ़र्श का चुनाव उपलब्धता, उपयोगिता, रख-रखाव सहित व्यक्तिगत दायरों के तहत होता है. वास्तु के सिद्धांत उत्तर-पूर्व में चमकीली फ़र्श और दक्षिण-पूर्व में चमक रहित गहरे रंग के फ़र्श की अनुशंसा करते हैं। संगमरमर के सिर्फ़ मंदिर में प्रयोग की बात पूर्णतया असत्य, अपरिपक्व, अतार्किक और अवैज्ञानिक है। आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि ठंडे स्थानों में मंदिरों में लकड़ी की फ़र्श का इस्तेमाल होता है.

(अगर आपके पास भी कोई ऐसी समस्या हो, जिसका आप तार्किक और वैज्ञानिक समाधान चाहते हों, तो कृपया प्रभात खबर के माध्यम से सद्‌गुरु स्वामी आनंद जी से सवाल पूछ सकते हैं. इसके लिए आपको बस इतना ही करना है कि आप अपने सवाल उन्हें सीधे saddgurushri@gmail.com पर भेज सकते हैं. चुनिंदा प्रश्नों के उत्तर प्रकाशित किये जायेंगे. मेल में Subject में प्रभात ख़बर अवश्य लिखें. )

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