रामनवमी तब और अब

प्रो सुभाषचंद्र मिश्रा : देखा जाये तो किसी भी पर्व व त्योहार के दो पहलू होते हैं. एक जानना और दूसरा समझना. इस दृष्टिकोण से यदि बात रामनवमी की जाये, तो पहले की तुलना में इस पर्व को मनाने में भव्यता आयी है. उमंग भी देखा जाता है. लेकिन सादगी और श्रद्धा के साथ पर्व […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 13, 2019 2:07 AM

प्रो सुभाषचंद्र मिश्रा : देखा जाये तो किसी भी पर्व व त्योहार के दो पहलू होते हैं. एक जानना और दूसरा समझना. इस दृष्टिकोण से यदि बात रामनवमी की जाये, तो पहले की तुलना में इस पर्व को मनाने में भव्यता आयी है. उमंग भी देखा जाता है. लेकिन सादगी और श्रद्धा के साथ पर्व मनाये जाने का जो उत्साह था, वह भव्यता व उमंग में कम पड़ रहा है.

बात मेदिनीनगर (तब डालटनगंज) की हो तो यहां रामनवमी मनाने की परंपरा काफी पुरानी है. हालांकि वक्त के साथ इसमें बदलाव भी आये हैं. पहले झंडे कम रखे जाते थे. लेकिन समय के साथ झंडे पताके बढ़े. पहले गांवों में एक ही जगह पर पर्व मनाये जाते थे.
लेकिन अब एक ही गांवों में कई जगहों पर पूजा होने लगी. अलग-अलग मुहल्लों में झांकी बनने लगी. एक दूसरे से प्रतिस्पर्द्धा की भावना भी बढ़ गयी है. ऐसे में धर्म के मर्म को समझने की जरूरत है. पर्व को जानना भी होगा और समझना भी होगा कि यह रामनवमी आखिर क्यों मनायी जाती है. जब वे लोग सेवा में थे तो उन दिनों क्या टीचर, क्या प्रोफेसर सभी जुलूस में शिरकत करते थे.
नाम याद नहीं आ रहा है लेकिन उस दौर में गणेश लाल अग्रवाल उच्च विद्यालय के भी एक शिक्षक थे जो गदका खेलने के लिए मशहूर थे. रामनवमी का इंतजार रहता था. ताकि गदका का खेल देखा जा सके.
प्रो. डीएन लाल गदका खेलने में माहिर थे. कहने का तात्पर्य यह है कि भव्यता के साथ पर्व मनाया जाना चाहिए. पर इसके साथ हम सभी को पुरानी चीजों को ढूंढ कर लाना होगा. डीजे की शोर में जो अच्छे लोग पर्व के दौरान घर में दुबक रहे हैं उन्हें भी अपने साथ जोड़ना होगा.
हर एक की भागीदारी से रामनवमी और भव्य होगा. क्योंकि मेदिनीनगर का जो इतिहास रहा है उसके मुताबिक यहा सांप्रदायिक एकता की जड़ मजबूत है. हिंदु-मुस्लिम सबकी भागीदारी होती है.
सभी गले मिल कर पर्व मनाते हैं. ऐसा दूसरे जगहों के लिए भी अनुकरणीय है. भव्यता के साथ-साथ भय न हो इसका भी ख्याल रखा जाये. पर्व की शुद्धता पर भी ध्यान देना चाहिए. यदि हम प्रभु श्री राम के आदर्शों को मानते हैं, तो जुलूस के दौरान भी वह आदर्श दिखना चाहिए.
पहले खर्च कम थे. आज जैसे साधन-संसाधन भी नहीं थे. लेकिन सादगी व समर्पण का जो भाव था वह देखने को मिलता था. लोगों को इंतजार रहता था कि पर्व आने वाला है. पर आज कहीं न कहीं लोगों के मन में यह बात जरूर रहती है कि पर्व आ रहा है, बिजली गुल रहेगी.
शोर-शराबे होंगे. उमंग व भव्यता का विरोध नहीं,इसका विस्तार होना चाहिए पर पर्व किसी दूसरे का कष्ट का कारण न बने इसका भी ख्याल रखा चाहिए.पलामू की जो परंपरा रही है उसे मजबूत कर इसे सादगी के साथ भव्यता मिले ऐसी रामनवमी पलामू की मिसाल है.

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