ज्योतिषीय समाधान: साढ़ेसाती क्या कोई बुरा योग है? जानें क्या कहते हैं सद्गुरु स्वामी आनंद जी
सद्गुरु स्वामी आनंद जी एक आधुनिक सन्यासी हैं, जो पाखंड के धुरविरोधी हैं और संपूर्ण विश्व में भारतीय आध्यात्म व दर्शन के तार्किक तथा वैज्ञानिक पक्ष को उजागर कर रहे हैं. सद्गुरुश्री के नाम से प्रख्यात कार्पोरेट सेक्टर से अध्यात्म में क़दम रखने वाले यह आध्यात्मिक गुरु नक्षत्रीय गणनाओं तथा गूढ़ विधाओं में पारंगत हैं […]
सद्गुरु स्वामी आनंद जी एक आधुनिक सन्यासी हैं, जो पाखंड के धुरविरोधी हैं और संपूर्ण विश्व में भारतीय आध्यात्म व दर्शन के तार्किक तथा वैज्ञानिक पक्ष को उजागर कर रहे हैं. सद्गुरुश्री के नाम से प्रख्यात कार्पोरेट सेक्टर से अध्यात्म में क़दम रखने वाले यह आध्यात्मिक गुरु नक्षत्रीय गणनाओं तथा गूढ़ विधाओं में पारंगत हैं तथा मनुष्य के आध्यात्मिक, सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक व्यवहार की गहरी पकड़ रखते हैं. आप भी इनसे अपनी समस्याओं को लेकर सवाल पूछ सकते हैं. इसके लिए आप इन समस्याओं के संबंध में लोगों के द्वारा किये गये सवाल के अंत में पता देख सकते हैं…
सवाल- साढ़ेसाती क्या कोई बुरा योग है? इससे क्या आशय है?
-वीरेन्द्र सेठ
जवाब- सदगुरुश्री कहते हैं कि साढ़ेसाती शब्द शनि के लिए इस्तेमाल किया जाता है. सौरमंडल में समस्त ग्रह गतिशील हैं. सबकी गति अलग अलग है। पर एक राशि में सबसे ज़्यादा दिन तक रहने वाले शनि इकलौते ग्रह हैं, जो 62 चन्द्रमाओं के साथ चलते हैं. शनिदेव को एक राशि के नौ हिस्सों, नक्षत्रों के नौ चरण यानि सवा दो नक्षत्रों को पार करने में लगभग ढाई वर्ष लगता है. अर्थात वह एक राशि में तक़रीबन ढाई साल रहते हैं. पर उनका तीव्र वेग आगे और पीछे की भी एक एक राशियों पर पूरा असर डालता है. यही स्थिति साढ़ेसाती कहलाती है. यह स्थिति प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में लगभग हर तीस साल के बाद आती है. इस काल में यदि शनि शुभ हों तो बेहद शुभ और अशुभ होने पर अशुभ फल प्रदान करते हैं.
सवाल- शत्रुओं को पराजित करने का कोई उपाय बताइए.
जन्म तिथि- 08.04.1978, जन्म समय- 06.16, जन्म स्थान- पटना.
– आशीष शाही
जवाब- सदगुरुश्री कहते हैं कि नकारात्मक सोच हमारे जीवन की हर समस्या का मूल है. हम जिन्हें शत्रु समझते हैं, दरअसल वो व्यायामशाला के वो भार हैं, जो हमारे शरीर सौष्ठव को निखारने में मुख्य भूमिका का निर्वहन करते हैं. शत्रुविहीन व्यक्ति कभी आसमान नहीं छू सकता. सकारात्मक सोच के सहारे आप बड़े से बड़े अवरोधों का सामना सुगमता से कर सकते हैं. आपकी राशि कुंभ और लग्न मेष है. बुध लग्न में वीराज कर जहां आपको बुद्धिमान बना रहे हैं, वहीं शुक्र लग्न में बैठ कर आपकी एकग्रता भंग कर, विपरीत लिंगियों के प्रति अधिक आकर्षण पैदा कर रहे हैं और उससे बेमतलब की उलझन की रचना कर रहा हैं. पंचमेश सूर्य व्यय भाव में बैठ कर जहां आपके स्वभाव में अनावश्यक उग्रता व नाटकीयता पैदा कर रहा हैं वहीं साथ में चंद्रमा की युति आपको बेहद संवेदनशील बना रही है. ध्यान रहे कि दूसरों में कमी ढूँढने से बेहतर है कि स्वयं की योग्यता में इज़ाफ़ा कर लिया जाए. दूसरी लकीर को छोटा करने के लिए उसे काटने या मिटाने की जगह स्वयं की लकीर को बड़ा कर लें. मान्यतायें कहती हैं कि भोजन का प्रथम ग्रास अग्नि को अर्पित करने, चांदी के चम्मच का प्रयोग करने, दुग्ध की कुछ बूंद मिश्रित जल से स्नान करने व असहायों की सहायता करने से लाभ होगा.
सवाल- दांपत्य जीवन ख़राब हो गया है। पति मेरी कोई बात नहीं मानते. उनको वश में करने के लिए कोई उपाय बताइये.
जन्म तिथि- 21.07.1992, जन्म समय- 18.12, जन्म स्थान- मुंगेर.
– मंजू केडिया
जवाब- सदगुरु श्री कहते हैं कि आपकी राशि धनु और लग्न दोनों मकर है. आपके दाम्पत्य भाव में सूर्य बैठ कर आपके वैवाहिक जीवन के लिये उलझन का सूत्रपात कर रहा है. यही योग आपके स्वभाव में सम्वेदनशीलता और नाटकीयता भर कर आपके पारिवारिक जीवन में तनाव को जन्म दे रहा है. पर वहीं पति भाव का स्वामी शुक्र सप्तम भाव में ही बैठकर आपके दांपत्य जीवन के लिए कवच का काम भी कर रहा है. किसी पर नियंत्रण का भाव या प्रयास सदैव कष्ट ही देता है। दाम्पत्य जीवन किसी चाबुक से नहीं, प्यार और प्रेम पूर्ण आचरण से ही विकसित होता है. केवल वैवाहिक जीवन के लिए ही नहीं किसी भी साझेदारी की सफलता के लिये लचीला रवैया अनिवार्य शर्त है. 43 दिनों तक गुड़ का जल प्रवाह, रविवार को नमक का त्याग और हरी सब्ज़ियों का सेवन लाभकारी सिद्ध होगा, ऐसा मैं नहीं ज्योतिष की पारम्परिक मान्यतायें कहती हैं. सनद रहे, कि किसी से भी अपेक्षा अंत में कष्ट ही देती है.
सवाल- क्या राहु-केतु और शनि ख़राब ग्रह हैं? क्या इन ग्रहों की दशाएं अपार कष्ट देती हैं?
-रमेश कुमार
जवाब- सदगुरुश्री कहते हैं कि ख़राब ग्रह से आपका आशय स्पष्ट नहीं है. हर व्यक्ति का अच्छा और ख़राब अलग अलग होता है. आप जिसे कचरा समझ कर फेंक देते हैं, किसी के लिए वही कबाड़ माल के समान होती है. दुकान में आप जिन वस्तुओं को अस्वीकृत करके छोड़ आते हैं, कोई उन्हें खुशी खुशी लेकर जाता है. जगत में प्रत्येक व्यक्ति का अच्छा-बुरा पृथक है. कोई ग्रह बुरा या ख़राब होता है, यह विचार सत्य से परे है. अच्छा-ख़राब हमारे कर्म होते हैं, ग्रह नहीं. ज्योतिष में ग्रहों का या उनकी दशाओं का भला या बुरा असर उसकी स्थिति और उन पर पड़ने वाली दृष्टि पर निर्भर है. शुभ स्थिति होने पर कई बार यही पापी ग्रह अपनी दशा में भौतिक दृष्टि से ज्यादा सुख प्रदान करने की क्षमता रखते हैं. अशुभ स्थिति में शुभ ग्रह भी नकारात्मक असर डालकर जीवन का बंटाधार कर सकते हैं. यदि आपके अच्छे बुरे का पैमाना सिर्फ़ भौतिकता और आर्थिक समृद्धि है, तो सनद रहे कि राहु, केतु, शनि और शुक्र भौतिक समृद्धि के लिए उत्तम ग्रह माने जाते हैं.
सवाल- ज्योतिष के अनुसार किस दिशा में पढ़ाई करना शुभ रहेगा.
-प्रतीक सहाय
जवाब-सदगुरुश्री कहते हैं कि अध्ययन सम्बंधी दिशा का विचार ज्योतिष का विषय नहीं है. यह प्रश्न वास्तु के दायरे में आता है. वास्तु के नियमों के अनुसार ईशान्य कोण को अध्ययन के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है. ज्ञानार्जन के लिए इस कोण में पूर्वाभिमुख होकर, और सफलता के लिए उत्तर की ओर मुख करके अध्ययन करना चाहिए, ऐसा वास्तु के नियम कहते हैं.
(अगर आपके पास भी कोई ऐसी समस्या हो, जिसका आप तार्किक और वैज्ञानिक समाधान चाहते हों, तो कृपया प्रभात खबर के माध्यम से सद्गुरु स्वामी आनंद जी से सवाल पूछ सकते हैं. इसके लिए आपको बस इतना ही करना है कि आप अपने सवाल उन्हें सीधे saddgurushri@gmail.com पर भेज सकते हैं. चुनिंदा प्रश्नों के उत्तर प्रकाशित किये जायेंगे. मेल में Subject में प्रभात ख़बर अवश्य लिखें.)