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ज्योतिषीय समाधान: क्या कुत्ता पालने वाला नरक में जाता है ? जानें क्या कहते हैं सद्‌गुरु स्वामी आनंद जी

सद्‌गुरु स्वामी आनंद जी एक आधुनिक सन्यासी हैं, जो पाखंड के धुरविरोधी हैं और संपूर्ण विश्व में भारतीय आध्यात्म व दर्शन के तार्किक तथा वैज्ञानिक पक्ष को उजागर कर रहे हैं. सद्‌गुरुश्री के नाम से प्रख्यात कार्पोरेट सेक्टर से अध्यात्म में क़दम रखने वाले यह आध्यात्मिक गुरु नक्षत्रीय गणनाओं तथा गूढ़ विधाओं में पारंगत हैं […]

सद्‌गुरु स्वामी आनंद जी एक आधुनिक सन्यासी हैं, जो पाखंड के धुरविरोधी हैं और संपूर्ण विश्व में भारतीय आध्यात्म व दर्शन के तार्किक तथा वैज्ञानिक पक्ष को उजागर कर रहे हैं. सद्‌गुरुश्री के नाम से प्रख्यात कार्पोरेट सेक्टर से अध्यात्म में क़दम रखने वाले यह आध्यात्मिक गुरु नक्षत्रीय गणनाओं तथा गूढ़ विधाओं में पारंगत हैं तथा मनुष्य के आध्यात्मिक, सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक व्यवहार की गहरी पकड़ रखते हैं. आप भी इनसे अपनी समस्याओं को लेकर सवाल पूछ सकते हैं. इसके लिए आप इन समस्याओं के संबंध में लोगों के द्वारा किये गये सवाल के अंत में पता देख सकते हैं…

सवाल- किसी ने बताया कि कुत्ता पालने वाला नरकों में जाता है और उसका हर दान-पुण्य व्यर्थ हो जाता है. मेरे पास भी एक कुत्ता है. क्या वह मेरे दुर्भाग्य का कारण बनेगा? क्या मुझे कुत्ता निकाल देना चाहिए?
-प्रशान्त गौतम

जवाब- सदगुरुश्री कहते हैं कि मैं इस वक्तव्य से इत्तेफ़ाक नहीं रखता। ऐसा कोई भी संकेत न तो पवित्र ग्रंथों में मिलता है, ना ही अनुभव में आता है. मुझे यह अवधारणा असत्य और भ्रामक लगती है क्योंकि मानव का मूल स्वभाव ही प्रेम और दया है. किसी भी प्राणी को अपनी क्षमता के अनुसार आश्रय और सहायता मनुष्य का धर्म है, अब चाहे वो श्वान हो या कोई भी जीव। आपकी इस तथाकथित सुनी सुनाई अवधारणा के उलट लाल किताब काले श्वान के लालन-पालन की अनुशंसा शनि जनित कष्ट के निवारण के रूप में करती है और कुत्ता तो मनुष्य से भी ज़्यादा प्यार करने वाला वफ़ादार प्राणी है.

सवाल- जीवन में कुछ भी ठीक नहीं है. दांपत्य जीवन तनावपूर्ण है। क्या हमारा रिश्ता टूट जाएगा? करियर और आर्थिक स्थिति भी अच्छी नहीं है. क्या करूं.
जन्म तिथि- 03.04.1990, जन्म समय- 3.45 सुबह, जन्म स्थान- नैनवा (राजस्थान)
-हनुमान नागर

जवाब- सदगुरुश्री कहते हैं कि आपकी राशि मिथुन और लग्न मकर है. सप्तमेश चंद्रमा आपके षष्ठ भाव में कुंडली मारकर आपको जहां आपके स्वभाव को नाटकीय, उग्र और संवेदनशील बना रहा है वही वृहस्पति की युति आपको आपकी ग़लतियों और अकारण क्रोध के अहसास से वंचित रखे हुए है. सुखेश और लाभेश मंगल आपके लग्न में झंडा गाड़कर आपको मांगलिक बना रहा, वहीं साथ में शनि की युति इस योग को क्रूरता प्रदान कर रही है. अगर आपकी जीवनसाथी मांगलिक न हुई तो यह योग भी आपके दांपत्य जीवन में उलझन का कारक हो सकता है. इस समय आप बुध की महादशा में बुध की ही अंतर्दशा भोग रहे हैं. विधाता का संकेत है कि 10.03.2022 से आरंभ होने वाली शुक्र की अंतर्दशा आपके जीवन में आनंद और आर्थिक संबल का सूत्रपात करेगी. जीवनसाथी सहित दूसरों की भावनाओं का सम्मान, विनम्र आचरण, मीठीवाणी, किसी से उपहार न लेने, लाल मिर्च व रात में दूध का त्याग लाभ प्रदान करेगा, ऐसा मैं नहीं पारंपरिक मान्यतायें कहती हैं. दांपत्य जीवन के भविष्य के पूर्ण विश्लेषण के लिए आपके जीवनसाथी की कुंडली के अध्ययन की दरकार है.

सवाल- मेरे बॉय फ़्रेंड ने किसी और से शादी कर ली है. इसलिए मैं अब किसी और से विवाह नही करना चाहती. यह मेरा संकल्प है. पर घरवालों का शादी को लेकर बहुत दबाव है. मेरी स्थिति पर सदगुरु का और ज्योतिष का क्या मार्गदर्शन है.
जन्म तिथि- 06.06.1995, जन्म समय- 19.13, जन्म स्थान-दरभंगा.
-मान्या तिवारी

जवाब- सदगुरु श्री कहते हैं आपकी राशि सिंह और लग्न धनु है. प्रेम भाव का स्वामी मंगल भाग्य भाव में मित्र चन्द्रमा के साथ और पति भाव का मालिक बुध षष्ठ भाव में मित्र सूर्य के साथ आसीन हैं. किसी भी विचार विमर्श का औचित्य फ़ैसले के पहले होता है. जब आपने कोई निर्णय या संकल्प ले लिया तब किसी भी परामर्श का अर्थ क्या है? सामाजिक व पारिवारिक दबाव ज्योतिषिय परिधि से परे है। सदगुरु और ज्योतिष आपके निर्णय का सम्मान करके मौन हैं. पर एक रोचक बात है कि आपकी कुंडली में मुझे विवाह ना करने के सूत्र दृष्टिगोचर हो नही रहे हैं.

सवाल- विवाह ढाई महीने हो चुके हैं. मेरे पति जब भी मेरे नज़दीक आते हैं तो मुझे बहुत बुरा लगता है. मुझे ये सब गंदा काम लगता है. बहुत घुट रही हूं. राह दिखाइए.
जन्मतिथि- 07.06.1996, जन्म समय-18.08, जन्म स्थान- मुंगेर.
-आरुषि यादव

जवाब- आपकी राशि धनु और लग्न मकर है. सदगुरुश्री कहते हैं कि आपके सप्तम भाव में सूर्य बैठ कर जहां आपके दांपत्य जीवन पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहे हैं, वहीं पंचम भाव यानि प्रेम भाव में शनि विराज कर आपकी यौनाकांक्षाओं को कम कर रहा हैं. मन का स्वामी चंद्रमा की व्यय भाव में उपस्थिति आपको मानसिक रूप से व्याकुल और बेहद संवेदनशील बना रही है. शायद इसी वजह से आपका मन दांपत्य संबंधों की ग़लत व्याख्या करके उसे बुरा काम समझने की भूल कर रहा है. पूर्णिमा को श्वेत वस्तु, रविवार को गुड व गेहूं के दान तथा शनिवार को किसी विकलांग व्यक्ति को भोजन अर्पित करने से लाभ होगा ऐसा मैं नही, ज्योतिष की पारंपरिक मान्यतायें कहती है. आप दोनों को समझना होगा कि ये पारिवारिक या सामाजिक मसला नहीं है. यह पति पत्नी के बीच कि मामला है. पति के मनोभाव को समझने तथा उनसे खुलकर बात करने से संबंध सुधारने में सहायता मिलेगी.

सवाल- मैं अच्छा ख़ासा कमा लेता हूं पर कुछ भी बचा नहीं पाता. किसी ने अर्थनष्ट कालसर्प से ग्रसित हूं. मुक्ति का क्या उपाय है?
जन्म तिथि-13.031982, जन्म समय-1.33 सुबह, जन्म स्थान- बेगूसराय.
– मानस राय

जवाब- सदगुरुश्री कहते हैं कि धन और लक्ष्मी को चंचला माना गया है. गतिशील रहना ही इनकी प्रकृति भी है और प्रवृत्ति भी. गति के विरुद्ध जाने से इसका गुण नष्ट हो जाता है. जब तक धन प्रवाह में है तब तक ही वह अपना विस्तार कर सकता है. टिका, रुका, थमा या गढ़ा धन कालांतर में खुद को नष्ट कर लेता है. रही बात अर्थनष्ट कालसर्प की तो यह अवधारणा स्वयं में अनूठी और काल्पनिक है. इस नाम में किसी योग का कोई विवरण ज्योतिष के किसी भी ग्रंथ में नहीं मिलता. आपकी राशि तुला और लग्न धनु है. एक रोचक बात ये है कि आपकी कुंडली में अर्थनष्ट तो छोड़िए, काल सर्प योग ही नहीं है.

क्योंकि आपकी कुंडली में राहु और केतु के मध्य शनिदेव विराजमान हैं. अतः आपको किसी भी शांति के लिए धन ख़र्च करने की ज़रूरत नहीं है. मेरे विचार से आपकी समस्या के मूल में धन का ग़लत प्रबंधन है. नित्य कुछ बूंद दुग्ध मिश्रित जल से स्नान, शनिवार को तेल से बने भोजन का दान और नेत्रहीन व्यक्तियों की सेवा से लाभ होगा, ऐसा पारंपरिक मान्यतायें कहती हैं.

(अगर आपके पास भी कोई ऐसी समस्या हो, जिसका आप तार्किक और वैज्ञानिक समाधान चाहते हों, तो कृपया प्रभात खबर के माध्यम से सद्‌गुरु स्वामी आनंद जी से सवाल पूछ सकते हैं. इसके लिए आपको बस इतना ही करना है कि आप अपने सवाल उन्हें सीधे saddgurushri@gmail.com पर भेज सकते हैं. चुनिंदा प्रश्नों के उत्तर प्रकाशित किये जायेंगे. मेल में Subject में प्रभात ख़बर अवश्य लिखें.)

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