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ज्योतिषीय समाधान: क्या उत्तर दिशा में सिर रखकर सोना अशुभ है? जानें क्या कहते हैं सद्‌गुरु स्वामी आनंद जी

सद्‌गुरु स्वामी आनंद जी एक आधुनिक सन्यासी हैं, जो पाखंड के धुरविरोधी हैं और संपूर्ण विश्व में भारतीय आध्यात्म व दर्शन के तार्किक तथा वैज्ञानिक पक्ष को उजागर कर रहे हैं. सद्‌गुरुश्री के नाम से प्रख्यात कार्पोरेट सेक्टर से अध्यात्म में क़दम रखने वाले यह आध्यात्मिक गुरु नक्षत्रीय गणनाओं तथा गूढ़ विधाओं में पारंगत हैं […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 16, 2019 7:31 AM

सद्‌गुरु स्वामी आनंद जी एक आधुनिक सन्यासी हैं, जो पाखंड के धुरविरोधी हैं और संपूर्ण विश्व में भारतीय आध्यात्म व दर्शन के तार्किक तथा वैज्ञानिक पक्ष को उजागर कर रहे हैं. सद्‌गुरुश्री के नाम से प्रख्यात कार्पोरेट सेक्टर से अध्यात्म में क़दम रखने वाले यह आध्यात्मिक गुरु नक्षत्रीय गणनाओं तथा गूढ़ विधाओं में पारंगत हैं तथा मनुष्य के आध्यात्मिक, सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक व्यवहार की गहरी पकड़ रखते हैं. आप भी इनसे अपनी समस्याओं को लेकर सवाल पूछ सकते हैं. इसके लिए आप इन समस्याओं के संबंध में लोगों के द्वारा किये गये सवाल के अंत में पता देख सकते हैं…

सवाल- मैं संगीतकार बनना चाहता हूं, पर ज़िन्दगी ने मेरा ही बाजा बजा दिया। कामयाबी का कोई नुस्ख़ा बतायें.जन्म तिथि- 16.07.1990, जन्म समय- 7.32 प्रातः, जन्म स्थान- पटना
– मानव अग्रवाल

जवाब- सदगुरुश्री कहते हैं कि आपकी राशि मेष और लग्न कर्क है. शुक्र के लाभेश और सुखेश होने के कारण आप कला और संगीत में अपार प्रतिभा तो रखते हैं, पर शुक्र के व्यय भाव में बैठ जाने से आपको उसका अपेक्षित प्रतिसाद नहीं मिल सका. चिन्ता न करें. आप में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है, बस, उसे सँवारने और निखारने का प्रयास करते रहें. आपका वक़्त अवश्य आएगा. 16.04.2020 के बाद आप बेहतर काल में प्रविष्ट होंगे. गुड़ -गेंहूं और केले का दान, शुक्रवार को छोटी कन्याओं को मिठाइयों का उपहार, सफ़ेद रंग का कम प्रयोग, और नित्य सूर्य को अर्ध्य देने से लाभ होगा, ऐसा मान्यतायें कहती हैं.

सवाल- मेरा शनि भारी है. बहुत परेशान हूं. क्या करूं. इसके लिए कोई उपाय बताइए.

जन्म तिथि – 10.09.1994, जन्म समय-20.01, जन्म स्थान- हाजीपुर
-रोहित कुमार

जवाब- शनि के भारी होने से आपका आशय स्पष्ट नहीं है. गुज़ारिश है कि सूर्य शनि, सोम, मंगल को आप ज्योतिष के चिन्तकों के लिए छोड़ दें. यदि आप की इस विषय में रुचि है तो फिर उसका पूरी तरह अध्ययन करें. क्योंकि अपूर्ण ज्ञान बेहद ख़तरनाक हो सकता है. सदगुरुश्री कहते हैं कि आपकी राशि मीन और लग्न मेष है. शनि आपके कर्म भाव व लाभ भाव का स्वामी होकर आपकी कुंडली के एकादश भाव में मज़े से बैठा हुआ है. ये शनि की श्रेष्ठ स्थितियों में से एक है. हां, इस वक़्त आप केतु की महादशा के अधीन ज़रूर हैं. जो मिला जुला काल है. शायद इसी वजह से आप जीवन में मामूली दबाव महसूस कर रहे होंगे. विधाता का संकेत है कि 28.10.2024 से आप बेहतर कालखण्ड में प्रविष्ट होंगे.

सवाल- मेरे पति की मुझमे कोई रुचि नहीं है. कई बार किसी अन्य संबंध में जाने का मन करता है. कोई ऐसा उपाय बताइये, जिससे सब ठीक हो जाए.
तिथि- 14.07.1992, जन्म समय-21.34, जन्म स्थान- भागलपुर
– प्रीति भूषण

जवाब- आपकी राशि धनु और लग्न कुंभ है. सदगुरु श्री कहते हैं कि आपके षष्ठ भाव में शुक्र बैठकर जहां आपकी आकांक्षाओं को पंख लगा रहा है, वहीं आपके पंचम भाव में सूर्य बैठ कर आपके प्रेम और अनुभूतियों को कसैला बना रहा है. बची खुची कसर सप्तम भाव का वृहस्पति निकाल रहा है, जो दांपत्य जीवन पर उलटा असर डाल रहा है. विस्तृत विश्लेषण के लिए आपके पति की कुंडली की भी दरकार है. आपको रविवार को नमक का त्याग, दही का उबटन लगाने और पति को केसर मिश्रित दुग्ध के से लाभ होगा, ऐसा मैं नहीं पारंपरिक मान्यतायें कहती हैं.

सवाल- क्या उत्तर दिशा में सिर रखकर सोना अशुभ है? इससे क्या होता है? सोनें की सही स्थिति क्या है.
-नीता शर्मा

जवाब- सदगुरु श्री कहते हैं कि सोते समय यदि सर दक्षिण की ओर हो तो यह स्थिति सर्वश्रेष्ठ है. इसके अलावा पूर्व दिशा में भी सर रख कर सोया जा सकता है. पर उत्तर और पश्चिम की ओर सर रखकर सोने को वास्तु के सिद्धांत घातक मानते हैं. ऐसा शायद इसलिए होगा कि चुंबकीय तरंगें दक्षिण से उत्तर की ओर गतिशील होती हैं. दक्षिण और उत्तर की तरफ़ सर रखने से चुंबकीय दबाव के कारण पाचन तंत्र उत्तम रहता है वहीं उत्तर और पश्चिम में सर रखने से चुंबकीय दबाव उलटी दिशा में पड़ता है, जिससे पाचनतंत्र प्रभावित होकर क़ब्ज़ के साथ नाना प्रकार के विकारों को जन्म देता है. जिससे मन, स्वास्थ्य और प्रगति के साथ पूरा जीवन प्रभावित होता है.

सवाल- मंगल दोष क्या होता है. ये योग कितने साल तक रहता है. क्या पूजा-पाठ से इसकी शांति संभव है?
– सपना त्रिपाठी

जवाब- सदगुरु श्री कहते हैं कि जन्म कुंडली में बारह खाने होते हैं जिन्हें द्वादश भाव या बारह घर कहा जाता है. लग्न,(अर्थात् प्रथम भाव), चतुर्थ, सप्तम, अष्टम या द्वादश भाव में मंगल की मौजूदगी ही मंगल दोष कहलाती है. इससे प्रभावित व्यक्ति को मांगलिक कहा जाता है. यह योग परिवर्तनशील नहीं है. यानि कुंडली में यदि मंगलदोष है, तो वो जीवन पर्यन्त रहेगा. ‘मंगल की शांति’ से तो उसका आशय ही स्पष्ट नहीं है. क्योंकि यह अशांति की स्थिति है ही नहीं. बल्कि ये तो एक भिन्न परिस्थिति है. आंतरिक संकल्प तो ठीक है पर कोई धार्मिक अनुष्ठान या बाह्य क्रिया कलाप इस योग को बदल देगा, यह अपरिपक्व अवधारणा है. मांगलिक लोगों में ऊर्जा की अधिकता होती है. अतः यदि इनका संयोग मांगलिक लोगों से हो तो इनका जीवन आनंद से लबरेज़ होता है. नियमित योगाभ्यास या वर्ज़िश से इन्हें लाभ होता है.

(अगर आपके पास भी कोई ऐसी समस्या हो, जिसका आप तार्किक और वैज्ञानिक समाधान चाहते हों, तो कृपया प्रभात खबर के माध्यम से सद्‌गुरु स्वामी आनंद जी से सवाल पूछ सकते हैं. इसके लिए आपको बस इतना ही करना है कि आप अपने सवाल उन्हें सीधे saddgurushri@gmail.com पर भेज सकते हैं. चुनिंदा प्रश्नों के उत्तर प्रकाशित किये जायेंगे. मेल में Subject में प्रभात ख़बर अवश्य लिखें.)

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