सद्गुरु स्वामी आनंद जी एक आधुनिक सन्यासी हैं, जो पाखंड के धुरविरोधी हैं और संपूर्ण विश्व में भारतीय आध्यात्म व दर्शन के तार्किक तथा वैज्ञानिक पक्ष को उजागर कर रहे हैं. सद्गुरुश्री के नाम से प्रख्यात कार्पोरेट सेक्टर से अध्यात्म में क़दम रखने वाले यह आध्यात्मिक गुरु नक्षत्रीय गणनाओं तथा गूढ़ विधाओं में पारंगत हैं तथा मनुष्य के आध्यात्मिक, सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक व्यवहार की गहरी पकड़ रखते हैं. आप भी इनसे अपनी समस्याओं को लेकर सवाल पूछ सकते हैं. इसके लिए आप इन समस्याओं के संबंध में लोगों के द्वारा किये गये सवाल के अंत में पता देख सकते हैं…
सवाल- लक्ष्मी की पूजा के लिए क्या कोई विशेष समय है या कभी भी कर सकते हैं.
-मदन ठाकुर
जवाब- सदगुरुश्री कहते हैं कि सामान्यत: सबेरे की बेला प्रार्थना के लिए बेहतर मानी गयी है क्योंकि सुबह का समय शांत होता है और स्वच्छ वायु से ओतप्रोत भी. जिससे हम प्रार्थना में अपनी आत्मिक ऊर्जा से आसानी से जुड़ पाते हैं. पर आध्यात्मिक मान्यतायें यक्षिणी लक्ष्मी की उपासना का काल रात्रि में मानती हैं, जब लोग अपने व्यावसायिक कर्म से निवृत्त होकर वंदना को अधिक सार्थक बना सकते हैं. एक और मान्यता के अनुसार यक्ष और यक्षिणी जो हमारी भौतिक संपदा के स्वामी-स्वामिनी कहे जाते हैं, का उत्कर्ष काल रात्रि में माना जाता है. इसलिए लक्ष्मी उपासना रात्रि में श्रेष्ठ कही गयी है.
सवाल- बीज मंत्र क्या होता हैं. सबसे अच्छा बीज मंत्र कौन सा है.
-विकास दुबे
जवाब- सदगुरुश्री कहते हैं कि बीज मन्त्र दरअसल बीज और मंत्र इन दो शब्दों से निर्मित है. बीज यानी जिसमें जीवन, उत्पत्ति और विस्तार की संभावना हो और मन्त्र एक ऐसा ध्वनि निर्देश है, जो संयोजित स्वरों के द्वारा मन पर प्रभाव डाल कर रासायनिक क्रिया करते हैं. यानी शब्दों के द्वारा निर्माण, विस्तार और पुनर्निर्माण अर्थात विध्वंश के गुणों से ओतप्रोत ध्वनि निर्देश को बीज मंत्र कहते हैं. देवनागरी के समस्त शब्द मन्त्र है. इन्ही में जगत या माया अर्थात बिंदु प्रत्यरोपित करके मातृका न्यास की रचना हुई है, जो कर्म काण्ड और तंत्र का अनिवार्य कर्म है. प्रमुख बीजों की बात करें तो धन के लिए प्रभावी बीज श्रीं, ऐश्वर्य का बीज ह्रीं, आकर्षण का बीज क्लीं, ज्ञान का बीज ऐं, शक्ति का बीज सौ:, स्तंभन का बीज ग्लौं या ह्लरीं, उत्थान का बीज हुम, रक्षा का बीज जूं है. पर इनका प्रयोग बिना किसी विशेषज्ञ के मार्गदर्शन के हरगिज़ न करें.
सवाल- गजकेसरी योग क्या होता है? क्या ये देह में शक्ति प्रदान करता है?
-सुनील सिंह
जवाब- सदगुरु श्री कहते हैं कि जातक परिजात के अनुसार
‘दृष्टे सितायेंन्दुसुतै: शशांके नीचास्तहीनैर्गजकेसरी स्यात्॥’
अर्थात बृहस्पति और चंद्रमा अगर परस्पर केंद्र में हों, बुध, बृहस्पति और शुक्र यदि अपनी नीच राशि में न हों और उनसे चंद्रमा दृष्टिगत हो, तो यह दोनों सामंजस्य गजकेसरी योग कहलाता है, जो जीवन में महासुख, यश, धन, वैभव और आनंद का कारक बनता है. इस योग के गज और केसरी शब्द से भ्रमित होकर इसे किसी शरीर सौष्ठव, शारीरिक बल या पहलवानी का योग न समझें. क्योंकि इस योग का कोई सीधा संबंध शारीरिक बल से नहीं है.
सवाल- राहू से मुक्ति कैसे मिलेगी?
जन्म तिथि- 08.11.1992, जन्म समय-11.20, जन्म स्थान- मुंगेर
– प्रीतम बनर्जी
जवाब- सदगुरुश्री कहते हैं कि राहू से मुक्ति से आपका आशय स्पष्ट नहीं है. आप राहू की बुरी स्थिति से भयभीत हैं, या उसकी महादशा से? क्योंकि कई बार अधूरा ज्ञान लाभ नहीं हानि का सबब बन जाता है. फलित ज्योतिष में जन्म के समय 27 नक्षत्रों से निर्मित 12 राशियों में 7 ग्रहों और 2 छाया ग्रहों, जिन्हें राहू और केतु के नाम से जाना जाता है, के मानव देह, मन और मस्तिष्क पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन किया जाता है. ज्योतिषिय नियमों के अनुसार ‘इन सभी नौ ग्रहों’ का असर हम पर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से पड़ता ही है. सदगुरुश्री कहते हैं कि आपकी राशि मीन और लग्न मकर है. राहू आपके लाभ भाव में आसीन हैं, जो राहू की उत्तम स्थितियों में से एक है. अतः राहू से मुक्ति के मार्ग के तलाश की कोई आवश्यकता मुझे तो नज़र नहीं आती. हां, इस समय आप केतु की महादशा भोग रहे हैं. जो बेहतर काल नहीं है. विधाता का संकेत है कि 21.09.2019 से आप शुक्र की महादशा में प्रविष्ट होंगे, जहां से आपके जीवन के उत्तम काल का आग़ाज़ होगा.
सवाल-सावन कब से आरंभ हो रहा है. क्योंकि पटना में कुछ और बताते हैं और हमारे गुजरात में एक भाई हैं वो कुछ अलग तारीख़ बता रहे हैं. सही कौन सा है.
-अभिषेक सिन्हा
जवाब- सदगुरुश्री कहते हैं कि हिन्दू पंचांग माह के 30 दिन को चन्द्र कला के आधार पर 15-15 दिन के 2 पक्षों में विभाजित करता है. जिसे शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष कहते हैं। पूर्णिमा के बाद का पक्ष कृष्ण पक्ष और अमावस्या के बाद का पखवाड़ा शुक्ल पक्ष कहलाता है. यानि शुक्ल पक्ष के अंतिम दिन को पूर्णिमा कहते हैं और कृष्ण पक्ष के अंतिम दिन को अमावस्या। पूर्व और उत्तर भारत के पंचांग कृष्ण पक्ष से माह का आरंभ मानते हैं. पर भारत के पश्चिमी भाग के पंचांग के साथ कुछ अन्य पंचांग की मान्यता शुक्ल पक्ष से महीने के शुरुआत की संस्तुती करती है. लिहाज़ा पटना, काशी और उज्जैन सहित उत्तर और पूर्व के भाग में 17 जुलाई से सावन आरंभ होगा. मुंबई और गुजरात सहित कुछ अन्य भाग में 1 अगस्त से श्रावण मास का आग़ाज़ होगा.
(अगर आपके पास भी कोई ऐसी समस्या हो, जिसका आप तार्किक और वैज्ञानिक समाधान चाहते हों, तो कृपया प्रभात खबर के माध्यम से सद्गुरु स्वामी आनंद जी से सवाल पूछ सकते हैं. इसके लिए आपको बस इतना ही करना है कि आप अपने सवाल उन्हें सीधे saddgurushri@gmail.com पर भेज सकते हैं. चुनिंदा प्रश्नों के उत्तर प्रकाशित किये जायेंगे. मेल में Subject में प्रभात ख़बर अवश्य लिखें.)