सभी मुहूर्तों की है खास उपयोगिता, जानें क्या हैं मैत्र’ मुहूर्त
मार्कण्डेय शारदेय, ज्योतिषाचार्य ज्योतिष समय का व्याख्याता है. इसका एक-एक अंग आकाशीय पिंडों की गति पर ही निर्भर है. जहां सिद्धांत गणनाओं की सूक्ष्मता उजागर करता है, वहीं फलित समय का परिणाम सूचित करता है. हमारे यहां काल के सूक्ष्मतम से बृहत्तम तक रूपों का विश्लेषण और विवेचन है. उन्हीं में एक है मुहूर्त. सामान्यतः […]
मार्कण्डेय शारदेय, ज्योतिषाचार्य
ज्योतिष समय का व्याख्याता है. इसका एक-एक अंग आकाशीय पिंडों की गति पर ही निर्भर है. जहां सिद्धांत गणनाओं की सूक्ष्मता उजागर करता है, वहीं फलित समय का परिणाम सूचित करता है. हमारे यहां काल के सूक्ष्मतम से बृहत्तम तक रूपों का विश्लेषण और विवेचन है. उन्हीं में एक है मुहूर्त.
सामान्यतः मुहूर्त का अर्थ विवाह, यात्रा आदि का शुभ समय होता है-‘कालः शुभक्रिया-योग्यो मुहूर्त इति कथ्यते’(मुहूर्त-दर्शन, विद्या-माधवीय-1.20). यह लगभग 48 मिनट का होता है. इसकी कुल संख्या पंद्रह है. इन्हीं के आधार पर सूर्योदय से सूर्यास्त तक के काल को पंद्रह भागों में बांटा गया है. पुनः दुबारा सूर्यास्त से सूर्योदय तक के समय को भी पंद्रह भागों में. इस तरह 24 घंटे में(एक दिन-रात में) 30 मुहूर्त होते हैं.
ऋग्वेद भी कहता है-‘त्रिंशद् धाम वि राजति वाक्पतंगाय धीयते’; यानी सूर्य की किरणों से तीस धाम प्रकाशित होते हैं (10.189.3). ये तीस दिन के 15 मुहूर्त और रात के 15 मुहूर्त के ही सूचक हैं. चूंकि 12 घंटे का दिन और 12 घंटे की रात बहुत कम होता है, इसलिए 48 मिनट का मुहूर्त भी कम ही होता है. इसका आकलन दिनमान एवं रात्रिमान से ही शुद्ध होता है. वैसे समाचारपत्रों में दैनिक स्थानीय सूर्योदय-सूर्यास्त प्रायः दिये रहते हैं. इससे विभाग करना आसान होता है.
अब जानना आवश्यक है कि हमारे लिए इनका महत्त्व क्या है? तो पहले हम जानें कि ज्योतिष का प्रारंभ ही समय-शुद्धि के लिए हुआ. यानी जो कार्य जिस समय हम करने जा रहे हैं, उसके अनुकूल निर्धारित समय है कि नहीं? सफलता प्राप्त होगी कि नहीं? कार्य की सिद्धि ही हर क्रिया का मुख्य उद्देश्य होता है, इसलिए असफलताओं से आहत हमारे पूर्वजों ने कार्यविशेष से प्रत्येक दिन के लिए मूल्यवान अंश को अपनाकर ऊंची उड़ान भरी.
यों तो कहीं-कहीं मुहूर्त-नामों में कुछ भिन्नता है, परंतु वेदांग-ज्योतिष ने इनके नाम इस प्रकार बताये हैं- 1. रौद्र, 2. श्वेत, 3. मैत्र, 4. सारभट, 5. सावित्र, 6. वैराज, 7. विश्ववसु, 8. अभिजित, 9. रोहिण, 10. बल, 11. विजय, 12. नैर्ऋत, 13. वारुण, 14. सौम्य तथा 15.भग.
‘मैत्र’ मुहूर्त को ऐसे समझें
अब मान लीजिए कि किसी व्यक्ति या कंपनी के साथ साझीदारी करने जा रहे हैं या दो देशों में संधिवार्ता हो रही हो, तो प्रश्न होगा कि इसे कब करना ठीक रहेगा? ऐसे में ‘मैत्र’ मुहूर्त सर्वोत्तम रहेगा, क्योंकि यह मुख्यतः मित्रता की बात करता है.
चूंकि यह तीसरा मुहूर्त है, अतः सूर्योदय से 1.36 से 2.24 घंटे तक रहेगा. इसी तरह शाम को सूर्यास्त से 1.36 से 2.24 घंटे तक. अतः इस दौरान संधिपत्र पर हस्ताक्षर करना, एजेंसी लेना, कोई नया करार करना शुभ रहेगा. इसी तरह सभी मुहूर्तों की खास उपयोगिता और विशेषता है, जो व्यवहारोपयोगी हैं.