#Navratri: दुर्गादुर्गतिनाशिनी अर्थात दुख दूर करनेवाली

पं. श्रीपति त्रिपाठीज्योतिषाचार्य (आचार्यद्वय)नवरात्र एक हिंदू पर्व है. नवरात्रि एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ होता है ‘नौ रातें’. इन नौ रातों और दस दिनों के दौरान, शक्ति/देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है. दसवां दिन दशहरा के नाम से प्रसिद्ध है. नवरात्रि के नौ रातों में तीन देवियों महालक्ष्मी,महासरस्वती या सरस्वती और […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 29, 2019 12:24 PM

पं. श्रीपति त्रिपाठी
ज्योतिषाचार्य (आचार्यद्वय)

नवरात्र एक हिंदू पर्व है. नवरात्रि एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ होता है ‘नौ रातें’. इन नौ रातों और दस दिनों के दौरान, शक्ति/देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है. दसवां दिन दशहरा के नाम से प्रसिद्ध है. नवरात्रि के नौ रातों में तीन देवियों महालक्ष्मी,महासरस्वती या सरस्वती और दुर्गा के नौ स्वरुपों की पूजा होती है जिन्हें नवदुर्गा कहते हैं. इन नौ रातों और दस दिनों के दौरान,शक्ति/देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है. दुर्गादुर्गतिनाशिनी अर्थात दुख दूर करनेवाली.

शारदीय नवरात्रि आज से आरम्भ हो चुका है. नवरात्रि में दुर्गा माता की नौ दिनों में 9 स्वरूपों की पूजा-अर्चना की जाती है. माता की नौ स्वरूप है- क्रमशः शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री।प्राचीन मान्यता के अनुसार नवरात्रि में माता दुर्गा के 9 स्वरूपों की आराधना करने से जीवन में ऋद्धि-सिद्धि ,सुख- शांति, मान-सम्मान, यश और समृद्धि की प्राप्ति शीघ्र ही होती है.

माता दुर्गा हिन्दू धर्म में आद्यशक्ति के रूप में सुप्रतिष्ठित है तथा माता शीघ्र फल प्रदान करनेवाली देवी के रूप में लोक में प्रसिद्ध है. देवीभागवत पुराण के अनुसार आश्विन मास में माता की पूजा-अर्चना वा नवरात्र व्रत करने से मनुष्य पर देवी दुर्गा की कृपा सम्पूर्ण वर्ष बनी रहती है और मनुष्य का कल्याण होता है. नवरात्र के प्रथम दिन भगवती का आगमन और दशमी को गमन दिनों के अनुसार वर्ष का शुभ और अशुभ का ज्ञान करते हैं यथा-भगवती का … अर्थात् दुर्गा जी का आगमन हाथी पर आने से अच्छी वर्षा होती है…. शनि भौमदिने यदि सा विजया चरणायुध यानि करी विकला… माता का गमन मंगल को चरणायुध होगा अर्थात पैदल जाएंगी.. जिससे विकलता की वृद्धि होगी।। शक्ति की उपासना का पर्व शारदीय नवरात्र प्रतिपदा से नवमी तक निश्चित नौ तिथि, नौ नक्षत्र, नौ शक्तियों की नवधा भक्ति के साथ सनातन काल से मनाया जा रहा है.

29 सितम्बर से 08 अक्टूबर-

प्रथमा तिथि घटस्थापना,चन्द्रदर्शन,शैलपुत्री,29 सितम्बर 2019 रविवार

द्वितीया तिथि ब्रह्मचारिणी पूजा 30 सितम्बर 2019 सोमवार

तृतीया तिथि सिन्दूर चंद्रघंटा 1 अक्टूबर 2019 मंगलवार

चतुर्थी तिथि कुष्मांडा 2 अक्टूबर 2019 बुधवार

पंचमी तिथि स्कंदमाता 3 अक्टूबर 2019 वृहस्पतिवार

षष्ठी तिथि सरस्वती आवाहन,कात्यायनी 4 अक्टूबर 2019 शुक्रवार

सप्तमी तिथि सरस्वती पूजा, कालरात्रि 5 अक्टूबर 2019 शनिवार

अष्टमी तिथि महागौरी 6 अक्टूबर 2019 रविवार

नवमी तिथि सिद्धिदात्री 7 अक्टूबर 2019 सोमवार

दशमी तिथि विजयदशमी 8 अक्टूबर 2019 मंगलवार

“अष्टमी” के दिन माता महागौरी की पूजा की जाती है तथा उस दिन उपवास व्रत के साथ-साथ कन्या पूजन का भी विधान है. कन्या पूजन नवमी के दिन भी किया जाता है. यदि कोई व्यक्ति नौ दिनों तक पूजा करने में समर्थ नहीं है और वह माता के नौ दिनों के व्रत का फल लेना चाहता है तो उसे प्रथम नवरात्र तथा अष्टमी का व्रत करना चाहिए माता उसे मनोवांछित फल प्रदान करती है.

कथा- लंका-युद्ध में ब्रह्माजी ने श्रीराम से रावण वध के लिए चंडी देवी का पूजन कर देवी को प्रसन्न करने को कहा और बताए अनुसार चंडी पूजन और हवन हेतु दुर्लभ एक सौ आठ नीलकमल की व्यवस्था की गई. वहीं दूसरी ओर रावण ने भी अमरता के लोभ में विजय कामना से चंडी पाठ प्रारंभ किया. यह बात इंद्र देव ने पवन देव के माध्यम से श्रीराम के पास पहुंचाई और परामर्श दिया कि चंडी पाठ यथासभंव पूर्ण होने दिया जाए. इधर हवन सामग्री में पूजा स्थल से एक नीलकमल रावण की मायावी शक्ति से गायब हो गया और राम का संकल्प टूटता-सा नजर आने लगा।भय इस बात का था कि देवी मां रुष्ट न हो जाएं.

दुर्लभ नीलकमल की व्यवस्था तत्काल असंभव थी, तब भगवान राम को सहज ही स्मरण हुआ कि मुझे लोग ‘कमलनयन नवकंच लोचन’ कहते हैं, तो क्यों न संकल्प पूर्ति हेतु एक नेत्र अर्पित कर दिया जाए और प्रभु राम जैसे ही तूणीर से एक बाण निकालकर अपना नेत्र निकालने के लिए तैयार हुए,तब देवी ने प्रकट हो, हाथ पकड़कर कहा- राम मैं प्रसन्न हूं और विजयश्री का आशीर्वाद दिया. इस पर्व से जुड़ी एक अन्य कथा अनुसार देवी दुर्गा ने एक भैंस रूपी असुर अर्थात महिषासुर का वध किया था. पौराणिक कथाओं के अनुसार महिषासुर के एकाग्र ध्यान से बाध्य होकर देवताओं ने उसे अजय होने का वरदान दे दिया. उसको वरदान देने के बाद देवताओं को चिंता हुई कि वह अब अपनी शक्ति का गलत प्रयोग करेगा और प्रत्याशित प्रतिफल स्वरूप महिषासुर ने नरक का विस्तार स्वर्ग के द्वार तक कर दिया और उसके इस कृत्य को देख देवता विस्मय की स्थिति में आ गये.

महिषासुर ने सूर्य, इन्द्र, अग्नि, वायु, चन्द्रमा, यम, वरुण और अन्य देवताओं के सभी अधिकार छीन लिए हैं और स्वयं स्वर्गलोक का मालिक बन बैठा।देवताओं को महिषासुर के प्रकोप से पृथ्वी पर विचरण करना पड़ रहा है. तब महिषासुर के इस दुस्साहस से क्रोधित होकर देवताओं ने देवी दुर्गा की रचना की. ऐसा माना जाता है कि देवी दुर्गा के निर्माण में सारे देवताओं का एक समान बल लगाया गया था।महिषासुर का नाश करने के लिए सभी देवताओं ने अपने अपने अस्त्र देवी दुर्गा को दिए थे और कहा जाता है कि इन देवताओं के सम्मिलित प्रयास से देवी दुर्गा और बलवान हो गईं थी. इन नौ दिन देवी-महिषासुर संग्राम हुआ और अन्ततः महिषासुर-वध कर महिषासुर मर्दिनी कहलायीं.

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