नवरात्र शुरू, पहले दिन माता शैलपुत्री की हुई पूजा, आज मां ब्रह्मचारिणी की होगी पूजा

पटना : रविवार से नवरात्र का त्योहार शुरू हो गया. नौ दिन तक चलने वाले पर्व में प्रत्येक दिन देवी के विशेष स्वरूप की उपासना होगी. नवरात्र के पहले दिन कलश स्थापना के साथ ही दुर्गासप्तशती एवं गीता का पाठ किया गया. पहले दिन माता के स्वरूप शैलपुत्री की विधि विधान से पूजा की गयी. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 30, 2019 5:50 AM
पटना : रविवार से नवरात्र का त्योहार शुरू हो गया. नौ दिन तक चलने वाले पर्व में प्रत्येक दिन देवी के विशेष स्वरूप की उपासना होगी. नवरात्र के पहले दिन कलश स्थापना के साथ ही दुर्गासप्तशती एवं गीता का पाठ किया गया. पहले दिन माता के स्वरूप शैलपुत्री की विधि विधान से पूजा की गयी. सभी लोगों ने देवी मां का आशीर्वाद प्राप्त किया.
शुभ मुहूर्त देखकर कन्या एवं धनु लग्न में अथवा अभिजिन्मुहूर्त में कलश स्थापना की गयी. दैवज्ञ डॉ श्रीपति त्रिपाठी ने कहा कि मां शैलपुत्री को पर्वतराज हिमालय की पुत्री माना जाता है. इनका वाहन वृषभ है. इसलिए इनको वृषारूढ़ा और उमा के नाम के भी जाना जाता है. देवी सती ने जब पुनर्जन्म ग्रहण किया तो इसी रूप प्रकट हुईं. इसीलिए देवी के पहले स्वरूप के तौर पर माता शैलपुत्री की पूजा होती है. मां शैलपुत्री की उत्पति शैल से हुई है और मां ने दाएं हाथ में त्रिशूल धारण कर रखा है.
दुर्गा सप्तशती का पाठ का विशेष महत्व है
नवरात्र में प्रतिदिन एक अथवा एक-एक वृद्धि से अथवा प्रतिदिन दोगुनी-तिगुनी के वृद्धिक्रम से अथवा प्रत्येक दिन नौ कुंवारी कन्याओं के पूजन का विधान है.
इस संबंध में कुलाचार के हिसाब से भी पूजन कर सकते हैं, कुलाचार के आधार पर षष्ठी से नवमी तक कुंवारी पूजन के दिन निर्धारित है. दुर्गा की उपासना में दुर्गा सप्तशती का पाठ का विशेष महत्व है. खासतौर पर नवरात्र में इसका पाठ करना शुभ फलदायी होता है. इसमें कुल 13 अध्याय हैं. छह अंगों सहित दुर्गासप्तशती के पाठ किया जाता है. कवच, अर्गला, कीलक और तीनों रहस्य ये सप्तशती के छह अंग माने जाते हैं. इसी क्रम में सामान्यत: पाठ किया जाता है.
श्रीमद्देवीभागवत पुराण के पाठ का भी प्रचलन है
नवरात्र में श्रीमद्देवीभागवत पुराण के पाठ का भी प्रचलन है. यह पुराण सभी पुराणों में अतिश्रेष्ठ माना जाता है, क्योंकि इसमें तीनों लोकों की जननी साक्षात भगवती की महिमा का गान किया जाता है. 12 स्कंधों के इस महापुराण का पाठ नवरात्र के नौ दिन के दौरान करना चाहिए.
नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा होती है. ब्रह्म का अर्थ है तपस्या व चारिणी का अर्थ है आचरण करने वाली देवी. मां के हाथों में अक्ष माला और कमंडल होता है. मां ब्रह्मचारिणी के पूजन से ज्ञान सदाचार लगन, एकाग्रता और संयम रखने की शक्ति प्राप्त होती है और व्यक्ति अपने कर्तव्य पथ से भटकता नहीं है. मां ब्रह्मचारिणी की भक्ति से लंबी आयु का वरदान प्राप्त होता है.
दैवज्ञ डॉ श्रीपति त्रिपाठी कहते हैं कि मां ब्रह्मचारिणी की पूजा में मां को फूल, अक्षत, रोली, चंदन आदि अर्पण करें. उन्हें दूध, दही, घृत, मधु व शर्करा से स्नान कराएं और इसके देवी को पिस्ते से बनी मिठाई का भोग लगाये. इसके बाद पान, सुपारी, लौंग अर्पित करें. कहा जाता है कि मां का पूजा करने वाले भक्त जीवन में सदा शांत चित्त और प्रसन्न रहते हैं. उन्हें किसी प्रकार का भय नहीं सताता.
मां ब्रह्मचारिणी का मंत्र:
या देवी सर्वभेतेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
दधाना कर मद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।
मनोकामना:
जो व्यक्ति भक्ति भाव एवं श्रद्धा से दुर्गा पूजा के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करते हैं उन्हें सुख, आरोग्य की प्राप्ति होती है और मन प्रसन्न रहता है. उसे किसी प्रकार का भय नहीं सताता है. सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है, तथा जीवन की अनेक समस्याओं एवं परेशानियों का नाश होता है.

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