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ज्योतिष में राज सत्ता योग बनानेवाले अहम घटक

पीएन चौबे, ज्योतिषाचार्य अजन्म और मृत्यु का ग्रह शनि सब कुछ देता है, ऐसा नहीं है. वह जनता की सेवा की अपेक्षा भी रखता है. इससे पहले यह जान लेना होगा कि राज सत्ता या कुछ अहम पद पाने के उत्तरदायी घटक कौन-कौन से हैं. ज्योतिष में शनि राजनीति के चंद्रमा को जनता से मिलाने […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 12, 2019 6:02 AM
पीएन चौबे, ज्योतिषाचार्य
अजन्म और मृत्यु का ग्रह शनि सब कुछ देता है, ऐसा नहीं है. वह जनता की सेवा की अपेक्षा भी रखता है. इससे पहले यह जान लेना होगा कि राज सत्ता या कुछ अहम पद पाने के उत्तरदायी घटक कौन-कौन से हैं.
ज्योतिष में शनि राजनीति के चंद्रमा को जनता से मिलाने का कारक ग्रह है. सूर्य राजकीय ग्रह है तथा सिंह एवं धनु राशि राजकीय राशि हैं. मंगल शक्ति प्रदाता है, तो गुरु ज्ञान से लबालब भरे हैं. कुंडली में लग्न कुंडली, चंद्र कुंडली एवं सूर्य कुंडली मजबूत स्थिति में हैं. कुंडली में लग्न नवम, दशम एवं एकादश भाव शुभ स्थिति में हो एवं निम्नलिखित राजयोगों में अधिक-से-अधिक मौजूद हों, जिनमें महापुरुष राजयोग, निचभंग, अधियोग बसुमती योग, केंद्र त्रिकोण योग. इनमें अधिकाधिक योग सफल राजनेताओं के कुंडली में पाये जाते हैं. यहां राजभंग योग पर विषय केंद्रित है.
राजभंग योग : बराहमिहिर अपनी पुस्तक वृहद्जातक में सत्ता गंवाने के बाद की स्थिति की विवेचना करते हुए लिखते हैं- यदि कुंडली में कालसर्प या केमद्रुम योग हो, दशम भाव का स्वामी पापकृति योग में हो या पाप प्रभाव में हो, तीसरा, छठा एवं आठवें भाव का संबंध लग्न दशम भाव या इनके स्वामियों से हो, तो इनकी दशा या अंतर्दशा में सत्ता समाप्त हो जाती है. आपके किये गये कर्म कुंडली के भाव स्पष्ट कर देते हैं. यदि गुरु और चंद्रमा की दृष्टियुति हो, वह आदमी सादगी से भरा एवं ज्ञानी होगा.
चौथे भाव का संबंध गुरु, शनि एवं चंद्रमा से होने पर वह जनता का सच्चा सेवक होगा. लेकिन मंगल एवं शनि का संबंध लग्न से हो तो सहन शक्ति का अभाव होगा तथा वह निष्ठुर होगा. आवेग के भाव पंचम पर यदि गुरु, मंगल एवं शनि की दृष्टि हो, तो वह महान देशभक्त होगा. लेकिन उसके जीवन में उदासी भी होगी.
हालांकि मंगल और शनि का संबंध सातवें से दशवें भाव तक कहीं भी हो, तो वह समाजवादी प्रवृत्ति का होगा. यदि लग्न या उसके स्वामी का संबंध मंगल, मेष या धनु राशि से हो, तो वह भावुक एवं कमजोर दिल वाला होगा.
यदि गुरु और शुक्र छठे या आठवें भाव में हो, तो असुर योग बनाता है, जो उसे झूठा और तानाशाह बनाता है. वह नीच काम करेगा और सत्ता जाते ही वाह कारावास में होगा. लग्न और उसके स्वामी और छठे भाव के स्वामी केंद्र या त्रिकोण में शनि के साथ हो, तो उसे भी कारावास होगी. इसकी प्रकृति क्या होगी, राशि के अनुसार पता चलता है.
यदि लग्न में मेष, वृष या धनु हो, तो वह रस्सी से बांधा जायेगा. यदि वृश्चिक राशि में हो, तो उसे भूमिगत कमरा में रखा जायेगा. यदि लग्न में मीन, कर्क या मकर राशि हो, तो उसे सुरक्षित भवन में कारावास के दौरान रखा जायेगा. जाहिर है राजसत्ता, जनसेवा एवं ईमानदारी की अपेक्षा करती है, अन्यथा पथ भ्रष्ट भी करती है.
बचाव के उपाय : सूर्य को अनुकूल बनाने के लिए शाकाहार रहें. चंद्रमा के लिए जनता की सेवा करें. मंगल के लिए सबको अपना मानें. शुक्र के लिए स्त्री को सम्मान दें. शनि के लिए ईमानदार रहें. बुध के लिए हरितक्रान्ति को बढ़ावा दें,गुरु के लिए फलदार वृक्ष लगाये एवं गरीब बच्चों की पढ़ाई की समुचित व्यवस्था करें. कुंडली के अनुसार नीलम, पुखराज, मोती एवं हीरा धारण करें.

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