शरद पूर्णिमा : आज आकाश से होगी अमृत की वर्षा, जानें कैसे पूजा करने से होगी शुभ फल की प्राप्ति

पं. श्रीपति त्रिपाठी,ज्योतिषाचार्य (आचार्यद्वय), पीएचडी रिसर्च फेलोधार्मिक मान्यताओं के अनुसार शरद पूर्णिमा वह अवसर होता है जब चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण होकर अमृत की वर्षा करता है. आयुर्वेद के मुताबिक इस दिन चंद्रमा न केवल सोलह कलाओं के साथ चमकता है बल्कि इसकी किरणों में कुछ ऐसे गुण होते हैं जो शरीर को […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 13, 2019 10:34 AM

पं. श्रीपति त्रिपाठी,ज्योतिषाचार्य (आचार्यद्वय), पीएचडी रिसर्च फेलो
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शरद पूर्णिमा वह अवसर होता है जब चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण होकर अमृत की वर्षा करता है. आयुर्वेद के मुताबिक इस दिन चंद्रमा न केवल सोलह कलाओं के साथ चमकता है बल्कि इसकी किरणों में कुछ ऐसे गुण होते हैं जो शरीर को पोषकता प्रदान करते हैं. इसलिए शरद पूर्णिमा का लाभ उठाने के लिए चावल का खीर खाने की परंपरा है. शरद पूर्णिमा पर खीर खाने से पहले इसे बनाकर चांदनी रात में खुले आसमान के नीचे छोड़ दिया जाता है. कुछ समय तक चांदनी रात में रखने के बाद इस खीर का सेवन किया जाता है. पूर्णिमा रात में 01:41 तक है.

पौराणिक मान्यता के अनुसार शरद पूर्णिमा के दिन श्रीकृष्ण ने गोपियों से साथ रास रचाया था. इसलिए शरद पूर्णिमा की कथा श्रीकृष्ण और गोपियों से जुड़ी हुई है. शरद पूर्णिमा पर पूजन में प्रसाद के लिए चावल के खीर का प्रयोग करना अच्छा माना गया है. इसलिए लक्ष्मी जी को प्रसाद स्वरूप खीर का भोग लगाएं.

शरद पूर्णिमा पर इस बार आश्विन पूर्णिमा यानि 13 अक्टूबर को यानि आज मनाई जा रही है.

कैसे करें शरद पूर्णिमा पर पूजा?
शरद पूर्णिमा के दिन उपवास श्रद्धा पूर्वक करना चाहिए. पूर्णिमा वाले दिन सुबह सवेरे उठकर स्नान आदि से निवृत होकर तांबे या मिट्टी के कलश की स्थापना करें. कलश की स्थापना करने के बाद उसे लाल कपड़े से ढकें. इसके बाद लक्ष्मी की प्रातिमा को स्थापित करें. अपने सामर्थ्य के मुताबिक कलश में द्रव्य (पैसे) डालें. शाम के समय चांद के उगने पर अपनी क्षमता के मुताबिक सोने, चांदी या मिट्टी से बने दिये जलाएं. यहां ध्यान रखना है कि दीपों की संख्या 108 बेहतर मानी गयी है.

शरद पूर्णिमा पर पूजन में प्रसाद के लिए चावल के खीर का प्रयोग करना अच्छा माना गया है. इसलिए लक्ष्मी जी को प्रसाद स्वरूप खीर का भोग लगाएं. पूजन के बाद सबसे पहले किसी ब्राह्मण या जरूरतमंद को अथवा घर के बड़े सदस्यों को प्रसाद के तौर पर खीर खिलाएं. शरद पूर्णिमा पर रात में जगने के विधान है. इसलिए रात्रि में जागरण कर भजन कीर्तन करना चाहिए. रात्रि जागरण के बाद सुबह सूरज उगने पर कलश और प्रतिमा का विसर्जन करना चाहिए.

शरद पूर्णिमा कथा-
पौराणिक मान्यता के अनुसार शरद पूर्णिमा के दिन श्रीकृष्ण ने गोपियों से साथ रास रचाया था. इसलिए शरद पूर्णिमा की कथा श्रीकृष्ण और गोपियों से जुड़ी हुई है. कथा के मुताबिक किसी नगर में एक साहुकार रहता था जिसकी दो बेटियां थी. दोनों बेटी पूर्णिमा का उपवास रखती थी. परंतु, छोटी बेटी व्रत को पूरा नहीं करती थी. वहीं बड़ी बेटी हमेशा पूरी निष्ठा के साथ व्रत का पालन करती थी. कुछ समय बाद दोनों की शादी हुई. शादी के बाद साहुकार की बड़ी बेटी ने एक सुंदर पुत्र को जन्म दिया. वहीं दूसरी ओर छोटी बेटी जो व्रत का पालन ठीक प्रकार से नहीं करती उसे संतान होते ही खत्म हो जाता था. इस बात को लेकर वह बहुत अधिक परेशान रहने लगी. यह सब देखकर साहुकार ने पंडित से इस बारे में बात की और इसका कारण जानना चाहा.

तब साहुकार की बेटी ने विधिपूर्वक शरद पूर्णिमा का व्रत रखा. परंतु इस बार उसका संतान जन्म के पश्चात कुछ दिनों तक जीवित रहा. जब फिर से उसका संतान मर गया तो उसने उसे लकड़ी के पीढ़ा पर सुताकर उस पर कपड़ा रख दिया और उसके बाद अपनी बड़ी बहन को बुलाकर ले आयी और उसे बैठने के लिए वही पीढ़ा दे दिया. जैसे ही बड़ी बहन उद पीढ़े पर बैठना चाही और उसे देखकर आश्चर्य हुआ और अपनी बहन से बोली- “तू अपनी संतान के मरने का दोष मेरे ऊपर लगाना चाहती है?” इस पर छोटी बहन ने कहा- “यह तो पहले से मारा हुआ है और आपके छूने से यह जीवित हो उठा.”इस प्रकार शरद पूर्णिमा व्रत के महत्व को जानकार छोटी बहन भी विधिपूर्वक व्रत करने लगी.

मंत्र: ‘ॐ ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद महालक्ष्मये नमः’

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