गोवर्धन पूजा से अगले दिन यम द्वितीया पर्व मनाया जाता है, जिसे भाई दूज या गोधन के नाम से भी जानते हैं. बिहार, झारखंड तथा उत्तर प्रदेश में कुछ हिस्सों में मनाया जानेवाला यह एक प्रमुख त्योहार है. इसमें बहनें घर के मुख्य द्वार पर गोधन का चौका बनाती हैं. उस चौके के अंदर भाइयों के दुश्मनों के प्रतीक स्वरूप गोबर से यम, यामिन, दंड, मूसल, सांप, बिच्छू आदि बनाये जाते है. फिर उसमें नारियल, पान, सुपारी आदि रख कर उसे डंडे से कूटती हैं. उसके बाद भाइयों की लंबी आयु की कामना करते हुई रूई की मालाएं बनाती है. इस माला को बनाते वक्त मौन रहा जाता है और भाई के लिए मंगलकामना की जाती है.
उसके बाद उन मालाओं के सिरों को जोड़ा जाता है, जिसे ‘आह जोड़ना’ कहते हैं. इस दौरान पूजा में शामिल सभी महिलाएं एक-दूसरे से पूछती हैं कि वे क्या कर रही हैं और जिससे यह सवाल पूछा जाता है, वह कहती है कि फलां भाई की आयु जोड़ रही हूं. यही नहीं, पूजा के दौरान बहनें अपने भाइयों को श्राप भी देती हैं. फिर थोड़ी देर बाद पश्चाताप करने के लिए जीभ पर रेंगनी का कांटा चुभाती हैं और भाइयों के लंबी उम्र की दुआएं करती हैं. इस दौरान कई सारे लोकगीतों की झंकार भी सुनने को मिलती हैं. अंत में बहनें भाइयों को गोधन का प्रसाद खिलाती हैं. उसके बाद ही वे खुद कुछ खाती हैं.
प्रसाद में केराव मटर या चना होता है, जिसे भाई को बगैर चबाये निगलना होता है. रूई की माला को भाई की कलाई या गले में पहना दिया जाता है. परंपरानुसार इस दिन भाइयों को अपनी बहन के घर प्रसाद खाने जाना होता है. इस दिन घर में दलपूड़ी, खीर और पीठा आदि बनाया जाता है. भाई भी बहनों को पैसे या कोई उपहार देते है. इस तरह गोधन भाई-बहनों के रिश्ते में मौजूद स्नेह और विश्वास के प्रतीक के तौर पर मनाया जाता है.