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फलित ज्योतिष में क्या हैं युतियां एवं चुनौतियां

पीएन चौबे, ज्योतिषाचार्य लग्नशोधन, ग्रहबल,भावबल एवं षडबल- कुंडली के निर्धारण में क्रमबद्ध तरीकों से विवेचना अति महत्वपूर्ण है. यह जीवन मीठी कहानियों का संग्रह ही नहीं है, बल्कि कठिनाइयों का पहाड़ भी है. हर समय ग्रहों की अच्छी एवं खराब दशाएं आती रहती हैं, लेकिन सबसे बड़ी चुनौती समझ और विवेक की है. इसके बगैर […]

पीएन चौबे, ज्योतिषाचार्य
लग्नशोधन, ग्रहबल,भावबल एवं षडबल- कुंडली के निर्धारण में क्रमबद्ध तरीकों से विवेचना अति महत्वपूर्ण है. यह जीवन मीठी कहानियों का संग्रह ही नहीं है, बल्कि कठिनाइयों का पहाड़ भी है.
हर समय ग्रहों की अच्छी एवं खराब दशाएं आती रहती हैं, लेकिन सबसे बड़ी चुनौती समझ और विवेक की है. इसके बगैर इसे समझना नामुमकिन है. कुंडली में बारह राशियां, हर 30 अंशों का है. छह राशियां सूर्य प्रधान एवं छह शनि प्रधान हैं. ग्रह नौ हैं. सबकी अपनी उच्च, नीच एवं मूल त्रिकोण राशियां हैं. इन सबों में क्रमश: मित्रता, शत्रुता एवं समता है.
रात एवं दिन के हिसाब से 12 राशियां तीन भागों में क्रमश: सिरोदय, पुरोषोदय एवं उभयोदय में विभक्त हैं. अपने स्वभाव के अनुसार भी ये तीन क्रमश: पनपरास, एपोकिल्म, उपचय हैं. अंक के आधार पर ये क्रमश: चर स्थिर एवं द्विसवभाव राशियां हैं. ग्रहों के भी बल उनके स्वभाव के अनुसार अलग-अलग हैं. ये क्रमश: शुभ-अशुभ एवं चार तत्व जल, अग्नि, वायु एवं आकाश तत्व में विभक्त हैं.
इनके बल दिन-रात, दृष्टि, युति, उच्च एवं नीच के अभाव पर छह प्रकार के बल से मापे जाते हैं, जिसे खडबल कहते हैं. ग्रह आपस में युद्ध में भी रहते हैं एवं सूर्य के साथ रहने पर अलग-अलग अंशों पर अस्त भी हो जाते हैं. नौ ग्रहों के 27 नक्षत्र हैं एवं सबों के चार पद एवं प्रकृति अलग-अलग हैं. ग्रह समय अनुसार सूर्य और चंद्रमा को छोड़ मार्गी एवं वक्री होते हैं, जबकि राहू-केतु सदा वक्री हैं.
कुंडली की विवेचना : कोई भी योग्य ज्योतिषी सर्वप्रथम लग्न की विवेचना कर लग्नशोधन अवश्य करता है. इसके पश्चात वह सामान्यत: लग्न कुंडली, चंद्र कुंडली एवं सूर्य कुंडली के साथ ग्रहों के अंश युति दृष्टि, बल, अंश आदि की विवेचना कर अलग-अलग भाव का आकलन करता है.
यह भी जानना जरूरी है कि जातक के जीवन में कब लग्न कुंडली हावी और कब चंद्र कुंडली. अधिक से अधिक लोग अपने बच्चों की पढ़ाई, शादी एवं नौकरी से संबंधित प्रश्न पूछने जाते हैं.
जाहिर है ग्रहों एवं भावों के कारकत्व के आधार पर उनकी गणना की जाती है, जैसे- लग्न शरीर है, चंद्रमा मन है, गुरु ज्ञान है, बुध इच्छाशक्ति है, तो मंगल ऊर्जा है. इन सबों की स्थिति वर्ग कुंडलियों में देखी जाती है. पढ़ाई के लिए चतुरविशंश, शादी के लिए नौमांश एवं सप्तांश कुंडली देखते हैं. इसी प्रकार नौकरी के लिए कुंडली के दशम भाव के अतिरिक्त दसमांश कुंडली देखते हैं. ग्रहों की कमजोर अवस्था को देखते हुए जातक का उपचार यंत्र, तंत्र, मंत्र या रत्न द्वारा किया जाता है.
कुंडली की चुनौतियां
ज्योतिष का सर्वाधिक नुकसान तब होता है जब ज्ञान कम हो. अधिकतर लोगों का जन्म समय ज्ञात नहीं रहता है, फिर भी लोग रत्न पहनाकर जातक का अहित कर देते हैं अथवा इसे व्यवसाय का रूप दे देते हैं.
चाहे जो भी हो, चुनौतियां अनेक हैं, लेकिन सही मार्गदर्शन जीवन की गति संतुलित तो कर ही देता है. कोई भी ग्रह सुख एवं दुख नहीं देता, बल्कि सिर्फ कर्मों की गति की ओर इशारा करते हैं. मंत्रेश्वर प्रभावी उपचार के पहले चार चीज को जीवन में उतारने की बात करते हैं, जिसके बगैर रत्न और मंत्र फलदायी नहीं होते. वे क्रमश: शाकाहार, ईमानदारी से कमाया हुआ धन, ईश्वर के प्रति अनुराग एवं सबों के प्रति मैत्री भाव हैं. इसे अपना कर ही ईश्वर के इस शरीर रूपी अमानत को धन्य किया जा सकता है.
(संपर्क : 9934557894)

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