एस्ट्रो टिप्स 2020 : जानें रोगोपचार में रत्नों का प्रयोग
डॉ एनके बेरा ज्योतिषाचार्य, फोन : 8789253867 n.k.bera18@gmail.com ज्योतिषशास्त्र में नौं ग्रह है और रत्नों में भी प्रमुख नौं रंग बताये गये हैं. वैसे तो करीब 84 प्रकार के रंगों से रत्न प्रभावित होते हैं, पर प्रमुख नौ रंग हैं. शेष रंगों वाले उप-रत्न कहलाते हैं. जातक यदि जन्मकुंडली के अनुसार, अपनी राशि, लग्न तथा […]
डॉ एनके बेरा
ज्योतिषाचार्य, फोन : 8789253867
n.k.bera18@gmail.com
ज्योतिषशास्त्र में नौं ग्रह है और रत्नों में भी प्रमुख नौं रंग बताये गये हैं. वैसे तो करीब 84 प्रकार के रंगों से रत्न प्रभावित होते हैं, पर प्रमुख नौ रंग हैं. शेष रंगों वाले उप-रत्न कहलाते हैं. जातक यदि जन्मकुंडली के अनुसार, अपनी राशि, लग्न तथा ग्रहस्थिति पर विचार करवाकर या हस्त रेखा तथा सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार शरीर के विभिन्न लक्षण का विचार कर विधिपूर्वक रत्न धारण करे, तो उसका बिगड़ा भाग्य संवर सकता है और उसके रोगों का भी उपचार हो सकता है.
जिस प्रकार शारीरिक स्वस्थता के लिए यह आवश्यक है कि भोजन, जल, लवण, विटामिन का उचित अनुपात शरीर में हो, इसी प्रकार मानव की श्रेष्ठता, सफलता व निरोगी काया के लिए जरूरी है कि उसके जीवन पर समस्त ग्रहों का उचित प्रतिनिधित्व हो.
प्रत्येक ग्रह जीवन के किसी-न-किसी मुख्य आयाम का प्रतिनिधित्व करता है. एक उत्तम जीवन के लिए यह आवश्यक है कि उसका शरीर स्वस्थ हो, भाग्य प्रबल हो, संतान एवं पत्नी का पूर्ण सुख हो तथा आय के उचित साधन हों, जिससे वह सुख सुविधापूर्ण जीवन व्यतीत कर सके. इस प्रकार शारीरिक स्वास्थ, सुखपूर्ण जीवन, संतान सुख, भाग्योदय आदि के लिए अलग-अलग कारक ग्रह हैं और इन समस्त ग्रहों का उचित अनुपात ही मानव जीवन की श्रेष्ठता के लिए आवश्यक है. इसमें से जो भी ग्रह दुर्बल पड़ता है, उसी के कारण मनुष्य जीवन का वह भाग कमजोर हो जाता है.
ऐसी स्थिति में उस दुर्बल ग्रह को सशक्त बनाने के लिए उससे संबंधित धातु एवं रत्न पहने जाते हैं. वैज्ञानिक रूप से इसका तात्पर्य यह है कि एक विशिष्ट रत्न में एक विष्ट ग्रह की किरणों को सोखने की प्रबल शक्ति होती है और जिस प्रकार एक पदार्थ से दूसरे पदार्थ में विद्युत प्रवाहित की जा सकती है, उसी प्रकार वह रत्न उस विशेष किरणों को सोखकर मानव शरीर में प्रवाहित कर देता है.
इसी प्रकार विशिष्ट रत्नों के माध्यम से विशिष्ट किरणों को लेने से मानव जीवन का शारीरिक कष्ट दूर होकर जीवन सुखी और आनंदपूर्ण हो जाता है. यहां संबंधित धातु और रत्नों का विवरण दिया जा रहा है.
1. सूर्य ग्रह के लिए धातु सोना, रत्न-माणिक्य.
2. चंद्रमा के लिए धातु चांदी, रत्न-मोती.
3. मंगल के लिए धातु सोना, रत्न-लाल मूंगा.
4. बुध के लिए धातु सोना, कांसा, रत्न-पन्ना.
5. गुरु के लिए धातु सोना, रत्न-पीला पुखराज.
6. शुक्र ग्रह के लिए धातु प्लेटिनम या चांदी.
7. शनि के लिए लोहा, शीशा, रत्न-नीलम.
8. राहु के लिए पंचधातु, रत्न-गोमेदक.
9. केतु के लिए पंचधातु, रत्न-वैदूर्य (लहसुनिया).
मंगल का रत्न-लाल मूंगा : मंगल ग्रह के अशुभ प्रभाव के फलस्वरूप यकृत व तिल्ली रोग, गैस, बवासीर, जोड़ों के दर्द, रक्त-पित्त, हृदय रोग, खून की कमी, सिर दर्द आदि रोग होते हैं. प्राचीनकाल से ही ज्योतिषीय परामर्श से मंगल के अशुभ प्रभाव को दूर करने में प्रवाल अर्थात् मूंगा रत्न का प्रयोग होता रहा है. इसे विधिपूर्वक धारण करने से उक्त रोगों में लाभ होता है.
बुध का रत्न-पन्ना : आयुर्वेद प्रकाश के अध्याय-5, श्लोक-106 में लिखा है कि यह विष नाशक, शीतल, रस का मीठा अम्ल-पित्त तथा भूत बाधा दूर करता है. रस रत्न समुच्चय में लिखा है-पन्ना, ज्वॉर, वमन, विष, दमा, सन्निपात, अपन, बवासीर, पाण्डु, तपेदिक, वाकदोष, रोगों को नष्ट कर बल एवं सौंदर्य बढ़ाता है. हरे रंग के कारण पन्ना दृष्टि के लिए उत्तम है.
बृहस्पति का रत्न-पुखराज : आयुर्वेद प्रकाश में वर्णन है कि पुखराज दीपन, पालन और हल्का होता है और शीत वर्षीय, अनुलोमन, रसायन तथा विष के प्रभाव को दूर करता है. कुंडली में गुरु की अशुभ स्थिति से कणठ विकार, टाइफाइड, अनिद्रा, गलगण्ड यकृत विकार, अतिसार (डायरिया) आदि रोगों में पुखराज सोने में जड़वाकर गुरुवार को पहनें.
सूर्य का रत्न माणिक्य : आयुर्वेद शास्त्रों में कहा गया है- ‘माणिक्य दीपनं वृष्यं कफवातक्षयार्तिनुत्’ अर्थात् चिकित्सार्थ रत्नों के प्रयोग में वैद्यजन माणिक्य की अनुशंसा करते हैं, जो वात-पित्तनाशक तथा उदर रोगों में लाभकारी है. चून्नी भस्म दीर्घ आयुष्य प्रदान करती है. क्षयरोग, पांडुरोग, नेत्र रोग, हृदय रोग, श्वेताणु वृद्धि (ज्वर), मस्तिष्क दुर्बलता, चर्म रोग आदि सूर्य के अशुभ प्रभाव से उत्पन्न रोगों में माणिक्य धारण करें. सूर्य रत्न सदैव दाहिणी अनामिका में धारण करें. उपरत्न गारनेट, रंगसितारा, स्पाइनल या रेड मूनस्टोन में से एक सोने की अगुंठी में रविवार को पहनें.
चंद्रमा का रत्न मोती : जन्मांग चक्र में चंद्रमा की अलग-अलग स्थितियां जातक पर भिन्न-भिन्न प्रभाव डालती हैं. फलस्वरूप जातक को सर्दी-जुकाम, खांसी, मानसिक अवसाद, मासिक धर्म संबंधी रोग, पेशाब की जलन, पित्ताशय की पथरी, दंत रोग, पायरिया आदि रोग होते हैं.
प्राचीन काल से इन रोगों से छुटकारा पाने में मोती रत्न का प्रयोग होता आ रहा है. मोती प्राणिज अपार दर्शक रत्न होता है. मोती की उत्पत्ति घोंघा के पेट में ऐन्द्रियक पदार्थों के मिलन से होती है. इससे मोती चिकित्सा के लिए बहुत लाभकारी है. इसे चांदी में मढ़ाकर सोमवार को धारण करें.
व्यवसाय में तरक्की के लिए करें ये उपाय
फेंगशुई टिप्स
अगर आपका व्यवसाय ठीक न चल रहा हो, लगातार नुकसान झेलना पड़ रहा हो, तो फेंगशुई के कुछ उपायों को अपनाकर अपने लिए समृद्धि के रास्ते खोल सकते हैं.
चीनी लोगों की यह मान्यता है कि धनदेवता की तस्वीर दुकान में होनी चाहिए. व्यवसाय स्थल का कोई भी दरवाजा तिरछा नहीं होना चाहिए. कोई दरवाजा तिरझा होने की स्थिति में विंड चाइम (मेटल की खोखली पाइप का झुमर) या घंटियां लगाएं.
दुकान में फ्लॉवर पॉट में बेल लगाना व्यवसाय में वृद्धि के लिए उपयुक्त माना गया है. दुकान में प्राकृतिक दृश्य, पहाड़, बड़े-बड़े वृक्षों की पेंटिंग ग्राहकों को आकर्षित करते हैं और दुकान मालिक की आर्थिक उन्नति होती है. इसे मालिक के बैठने के स्थान के पीछे लगाना चाहिए.
विशेष उपाय
फेंगशुई के अनुसार, सोने के सिक्कों से भरा समुद्री जहाज व्यवसाय में सफलता का प्रतीक माना जाता है. व्यवसाय स्थल पर रखने के लिए ऐसे जहाज बाजार में मिल जायेंगे.
आप चाहें तो खुद ही सोने के सिक्कों से भरा जहाज बना सकते हैं. बाजार से एक छोटा पानी जहाज खरीदकर ले आएं. इसमें कुछ नकली सुनहरे सिक्के, तो कुछ असली सिक्के व रुपये भर दें. इस जहाज को व्यवसाय स्थल या ऑफिस में ऐसी जगह पर रखें, जहां लगे कि जहाज बाहर से अंदर की तरफ आ रहा है, न कि बाहर की तरफ जा रहा है.
शुक्र रत्न हीरा
शुक्र ग्रह को काल पुरुष का ‘काम’ माना गया है. यह ग्रह वीर्य, हावभाव, त्वचा का रंग, मैथुनिक रोग, स्त्री-संसर्गजन्य रोग, जैसे-एड्स, मूत्राशय संबंधी रोग तथा मनुष्य शरीर के गुप्तांग का प्रतिनिधित्व करता है.
जन्मकुंडली में शुक्र निर्बल, अस्त अथवा वक्री हो, तो जातक प्रमेह रोगी, चर्म रोगी, दंत रोगी, स्वप्नदोष, मधुमेह(डायबिटीज), धनुर्वात (टिटनेस), उन्माद और अनिद्रा आदि रोगों से पीड़ित होता है. शुक्र के अशुभ प्रभाव जनित रोगों से छुटकारा पाने के लिए हीरा संभव न हो तो, हीरे के बदले सफेद जिरकान, सफेद पुखराज, सफेद तुरमली, ओपल आदि धारण कर सकते हैं.
शनि का रत्न नीलम
शनि ग्रह को लोहा, भैंस, तेल, तिल, नमक, उड़द, नीलम, श्मशान तथा काले रंग की अधिपति माना गया है. जन्म कुंडली में शनि ग्रह बली अथवा उच्च राशिस्थ होकर शुभ भाव में विद्यमान है, तो लोकप्रियता तथा समृद्धि बढ़ाता है. अशुभ शनि दुःख एवं मानसिक संत्रास उत्पन्न करता है.
शनि निर्बल अथवा नीच राशिस्थ है, तो दारिद्र, चोर-भय, लकवा, उदर-व्याधि, नेत्र रोग, चोट आदि से अंग-भंग, फोड़ा फुंसी, कुष्ठ रोग, लकवा, शरीर के गुप्त स्थानों में रोग, कमर दर्द (साइटिका) आदि रोग उत्पन्न करता है. शनि के दुष्प्रभाव जनित रोगों से मुक्ति पाने के लिए अपनी जन्मकुंडली या हस्तरेखा पर विचार कर नीलम रत्न विधिपूर्वक धारण करें.