बोध कथा : संत की मान्यता से उलट चित्रगुप्त का आकलन

एक संत मरने के बाद परलोक पहुंचे. चित्रगुप्त ने उनसे कर्मों का लेखा-जोखा पूछा. संत ने बताया कि तीन-चौथाई जीवन तो घर-गृहस्थी के काम-धाम में ही बीत गया. किसी तरह एक-चौथाई जीवन भजन-पूजन में लग पाया. लेकिन संत तब आश्चर्य में पड़ गये जब चित्रगुप्त ने घर-गृहस्थी में लगे समय को परमार्थ माना और उसी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 1, 2020 7:49 AM
एक संत मरने के बाद परलोक पहुंचे. चित्रगुप्त ने उनसे कर्मों का लेखा-जोखा पूछा. संत ने बताया कि तीन-चौथाई जीवन तो घर-गृहस्थी के काम-धाम में ही बीत गया. किसी तरह एक-चौथाई जीवन भजन-पूजन में लग पाया. लेकिन संत तब आश्चर्य में पड़ गये जब चित्रगुप्त ने घर-गृहस्थी में लगे समय को परमार्थ माना और उसी के अनुपात में संत को खूब पुण्य मिला.
जबकि, भजन-पूजन वाले दिनों को चित्रगुप्त ने अपने निज के लाभ के लिए किया गया काम माना और उन दिनों को परमार्थरहित होने के कारण सामान्य दिनों की श्रेणी में गिना. दरअसल, संत की मान्यता से चित्रगुप्त का निष्कर्ष ठीक उलटा रहा. वह जिस श्रम-साधना के समय को जीवन प्रपंच में फंसा रहना मानते थे, उसे चित्रगुप्त ने परमार्थ में गिना क्योंकि वही समय अनेक लोगों को सुविधा पहुंचाने और जीवन-ऋण चुकाने में खर्च हुआ.
– पं श्रीराम शर्मा आचार्य

Next Article

Exit mobile version