सहज जीवन का सरल सूत्र दे गये संत रविदास, जयंती आज
रांची : आज संत रविदास की जयंती है़ रविदास जी का जन्म उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के मांडुर नामक गांव में हुआ था. संत रविदास को संत कबीर के समकालीन माना जाता है़ इनकी जयंती हर साल माघ पूर्णिमा को मनायी जाती है़ इनका जन्म रविवार को हुआ था, इसलिए उनका नाम रविदास रख […]
रांची : आज संत रविदास की जयंती है़ रविदास जी का जन्म उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के मांडुर नामक गांव में हुआ था. संत रविदास को संत कबीर के समकालीन माना जाता है़ इनकी जयंती हर साल माघ पूर्णिमा को मनायी जाती है़ इनका जन्म रविवार को हुआ था, इसलिए उनका नाम रविदास रख दिया गया़ हालांकि संत रविदास ने नाम के अनुसार कर्म किया और लोगों को सीख दी़ उन्होंने बताया कि कर्म प्रधान होता है, चाहे आप जो भी कर्म करें. वे अपने कर्म के बीच भक्ति का मार्ग निकालते थे और कहते थे कि मन चंगा तो कठौती में गंगा. इस तरह वे सहज जीवन के ढेरों सरल सूत्र दिये.
उनके बारे में एक कथा आज भी प्रचलित है कि जब वे काम में लीन थे, तो परिजनों ने उन्हें गंगा स्नान करने काे कहा था़ इस पर उन्होंने कहा कि यदि मैं वहां चला जाता हूं तो अपने ग्राहक को समय पर जूता नहीं दे पाऊंगा, जिससे मैं झूठा हो जाऊंगा. इसके बाद वे अपने काम में लग गये. वह जात-पात से इंसान को ऊपर मानते थे़ उनका कहना था कि सब इंसान एक ही माटी के बने हुए हैं. आदमी की पहचान उनके कर्म से होती है न कि उसकी जात से़संत रविदास के पिता का जूते बनाने का व्यवसाय था. रविदास पिता के कार्य में हाथ बंटाते थे़ हालांकि उनका साधु-संतों की तरफ बहुत झुकाव था़ इसी कारण वह जब भी किसी साधु-संत यह फकीर को नंगे पैर देखते तो अक्सर उन्हें नये जूते-चप्पल बिना पैसे लिए ही दे देते. इससे रविदासजी के पिता उनसे नाराज रहते थे. रविदास का पूजा-पाठ और साधुओं की संगत में बहुत मन लगता था. उनके संपर्क में आनेवाले लोग उनके व्यवहार के कारण उन्हें बहुत पसंद करते.
जब उनके पिता ने घर से निकाल दिया था
दुकान से लगातार मुफ्त में जूतें-चप्पल भेंट करने और अन्य सांसारिक गतिविधियों में अधिक लीन रहने के कारण रविदास जी के पिता ने एक दिन परेशान होकर उन्हें घर से निकाल दिया. पिता द्वारा घर से निकाले जाने के बाद रविदास ने अपने लिए कुटिया बनायी और जूते-चप्पलों की मरम्मत करने लगे. इनके मृदु व्यवहार और ज्ञान के कारण लोगों का इनके पास जमावड़ा लगा रहता. वह समाज में फैली बुराइयों, जाति प्रथा, छुआ-छूत पर दोहों, कविताओं और काव्य के जरिए प्रहार किया करते़
ऐसे समायी कठौती में गंगा
गंगा स्नान के एक पर्व पर पड़ोस के लोग गंगा स्नान के लिए जा रहे थे, उन्होंने रविदासजी से भी अपने साथ चलने के लिए कहा. इस पर रविदास जी ने उन्हें एक सुपारी देते हुए कहा कि आप मेरी तरफ से यह गंगा मां को अर्पित कर देना.
मैंने किसी से वादा किया है और मुझे उनके जूते तय समय पर बनाकर देना है़ जब रविदासजी के पड़ोसी ने उनके नाम से मां गंगा में सुपारी अर्पित की तो उन्हें एक कंगन मिला. इस पर पड़ोसी के मन में लालच आ गया और वह कंगन उन्होंने राजा को दिया और बदले में ईनाम ले लिया. राजा ने जब वह कंगन रानी को दिया तो रानी बहुत खुश हुईं और उन्होंने कहा कि मुझे इसके साथ का दूसरा कंगन भी चाहिए. राजा ने उस व्यक्ति को बुलाया और दूसरा कंगन लाने के लिए कहा. इस पर वह व्यक्ति परेशान हो गया और मदद के लिए रविदास के पास पहुंचा. उसने रविदास को पूरी घटना बतायी और अपने लालच के लिए माफी मांगी.
पड़ोसी की पीड़ा से रविदास जी का दिल पिघल गया और उन्होंने पूरे मनोयोग से मां गंगा की स्मृति की और अपनी कठौती (चमड़े को गीला करने के लिए पानी रखने की रबड़ की वस्तु) में हाथ डालकर दूसरा कंगन निकाल दिया. इस पर वह व्यक्ति खुशी से उछल पड़ा और रविदास को संत रविदास कहते हुए उनका वंदन करने लगा. फिर आश्चर्यचकित होते हुए उसने रविदास से पूछा- लेकिन ये कंगन इसमें आया कैसे? मैंने तो आपको वो कंगन दिखाया भी नहीं था. इस पर रविदास बोले, मन चंगा तो कठौती में गंगा़
इनकी नजर में महान कवि, दार्शनिक और समाज सुधारक थे रैदास
साहित्यकार मनीषा सहाय सुमन के अनुसार महान कवि, दार्शनिक, समाज सुधारक, भक्ति आंदोलन के नेतृत्वकर्ता के रूप में संत रविदास जी या रैदास जी का नाम हमेशा के लिए अमर हो गया. रैदास ने साधु संतों की संगति से पर्याप्त व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त किया था. मध्य युग मे निर्गुण संत परंपरा स्वामी रमानंद जी के महातम्य से प्रभावित हो रैदास जी निर्गुण भक्ति के उपासक बन गये. समाज में फैली विषमताओं के दोहन करने की प्रबल इच्छा ने उन्हें विशिष्ट स्थान प्रदान किया.
मूर्ति पूजा, धार्मिक अनुष्ठानों, बाह्य आडंबरों से ऊपर उठकर निर्गुण ब्रह्म की उपासना को बल दिया. उनके प्रयास से समाज में अस्पृश्यता, जाती भेद को मिटाकर समतामूलक समाज की स्थापना को बढ़ावा मिला. संत रविदास की गिनती सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि विश्व के महान संतों में की जाती है. उनकी वाणी के अनुवाद संसार की विभिन्न भाषाओं में पाये जाते हैं. संत रविदास जी किसी एक समुदाय या समाज के न होकर पूरी मानवता के गुरु थे. उन्होंने समाज में फैली कुरीतियों को समाप्त किया. गुरु रविदास जी का कार्य न्याय संगत और समतावादी समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत है.
संत रविदास से युवा लें प्रेरणा : स्वामी भावेशानंद
रामकृष्ण मिशन आश्रम मोरहाबादी के सचिव स्वामी भावेशानंद ने कहा कि संत रविदास ने जाति धर्म से ऊपर उठ कर अपने दोहों व पदों के माध्यम से समाज में जागरूकता लाने का प्रयास किया है़ समाज में फैली जातिगत ऊंच-नीच को दूर करने की कोशिश की है. उन्होंने एक ऐसे समाज की कल्पना भी की थी जहां किसी भी प्रकार का लोभ, लालच, दुख, दरिद्रता, भेदभाव न हो. सभी को एक समान बांधने का उनका प्रयास है़ युवा पीढ़ी को उनके विचारों से सीख लेनी चाहिए.
संत रविदास के उपदेशों का पालन करती संस्था
संत रविदास व उनके आदर्शों को पालन करते हुए राजधानी में संत रविदास महासभा झारखंड प्रदेश रांची चल रही है़ यह संस्था सामाजिक व नैतिक कार्य को बढ़ावा देने पर फोकस कर रही है़ संस्था की स्थापना 1981 में स्व रामरतन राम ने की़ वर्तमान में संस्था से करीब 10,000 से अधिक सदस्य जुड़े हुए है़ं अध्यक्ष दीपक कुमार रिव ने बताया कि हमारी wwसंस्था शिक्षा पर ज्यादा फोकस करती है़ चौक-चौराहों पर बेसहारा घूम रहे बच्चों को शिक्षित करने का प्रयास कर रही है़ं मौसीबाड़ी धुर्वा, गुदरी, कांटाटोली, नया टोली स्थित सामुदायिक भवन में बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा दी जा रही है़
जीवन की राह दिखानेवाले संत रविदास के दोहे
ब्राह्मण मत पूजिए जो होवे गुणहीन,
पूजिए चरण चंडाल के जो होने गुण प्रवीण
अर्थात : किसी व्यक्ति को सिर्फ इसलिए नहीं पूजना चाहिए क्योंकि वह किसी ऊंचे कुल में जन्मा है. यदि उस व्यक्ति में योग्य गुण नहीं हैं तो उसे नहीं पूजना चाहिए, उसकी जगह अगर कोई व्यक्ति गुणवान है तो उसका सम्मान करना चाहिए, भले ही वह कथित नीची जाति से हो.
कह रैदास तेरी भगति दूरि है, भाग बड़े सो पावै
तजि अभिमान मेटि आपा पर, पिपिलक हवै चुनि खावै
अर्थात : ईश्वर की भक्ति बड़े भाग्य से प्राप्त होती है. यदि आदमी में थोड़ा सा भी अभिमान नहीं है तो उसका जीवन सफल होना निश्चित है. ठीक वैसे ही जैसे एक विशाल शरीर वाला हाथी शक्कर के दानों को नहीं बीन सकता, लेकिन एक तुच्छ सी दिखने वाली चींटी शक्कर के दानों को आसानी से बीन सकती है.
जा देखे घिन उपजै, नरक कुंड में बास
प्रेम भगति सों ऊधरे, प्रगटत जन रैदास
अर्थात : जिस रविदास को देखने से लोगों को घृणा आती थी, जिनके रहने का स्थान नर्क-कुंड के समान था, ऐसे रविदास का ईश्वर की भक्ति में लीन हो जाना, ऐसा ही है जैसे मनुष्य के रूप में दोबारा से उत्पत्ति हुई हो.
मन चंगा तो कठौती में गंगा
अर्थात : जिस व्यक्ति का मन पवित्र होता है, उसके बुलाने पर मां गंगा भी एक कठौती (चमड़ा भिगोने के लिए पानी से भरे पात्र) में भी आ जाती हैं.
करम बंधन में बन्ध रहियो, फल की ना तज्जियो आस
कर्म मानुष का धर्म है, सत् भाखै रविदास
अर्थात : आदमी को हमेशा कर्म करते रहना चाहिए, कभी भी कर्म के बदले मिलने वाले फल की आशा नहीं छोड़नी चाहिए, क्योंकि कर्म करना मनुष्य का धर्म है तो फल पाना हमारा सौभाग्य.
मन ही पूजा मन ही धूप,
मन ही सेऊं सहज स्वरूप
अर्थात : निर्मल मन में ही ईश्वर वास करते हैं, यदि उस मन में किसी के प्रति बैर भाव नहीं है, कोई लालच या द्वेष नहीं है तो ऐसा मन ही भगवान का मंदिर है, दीपक है और धूप है. ऐसे मन में ही ईश्वर निवास करते हैं.
कृस्न, करीम, राम, हरि, राघव, जब लग एक न पेखा
वेद कतेब कुरान, पुरानन, सहज एक नहिं देखा
अर्थात : राम, कृष्ण, हरि, ईश्वर, करीम, राघव सब एक ही परमेश्वर के अलग-अलग नाम हैं. वेद, कुरान, पुराण आदि सभी ग्रंथों में एक ही ईश्वर की बात करते हैं, और सभी ईश्वर की भक्ति के लिए सदाचार का पाठ पढ़ाते हैं.
हरि-सा हीरा छांड कै, करै आन की आस
ते नर जमपुर जाहिंगे, सत भाषै रविदास
अर्थात : हीरे से बहुमूल्य हैं हरि. यानी जो लोग ईश्वर को छोड़कर अन्य चीजों की आशा करते हैं उन्हें नर्क जाना ही पड़ता है.
रविदास जन्म के कारनै, होत न कोउ नीच
नकर कूं नीच करि डारी है, ओछे करम की कीच
अर्थात : कोई भी व्यक्ति किसी जाति में जन्म के कारण नीचा या छोटा नहीं होता है, आदमी अपने कर्मों के कारण नीचा होता है.
जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात,
रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात
अर्थात : जिस प्रकार केले के तने को छीला तो पत्ते के नीचे पत्ता, फिर पत्ते के नीचे पत्ता और अंत में कुछ नही निकलता, लेकिन पूरा पेड़ खत्म हो जाता है. ठीक उसी तरह इंसानों को भी जातियों में बांट दिया गया है, जातियों के विभाजन से इंसान तो अलग-अलग बंट ही जाते हैं, अंत में इंसान खत्म भी हो जाते हैं, लेकिन यह जाति खत्म नही होती.