।। डॉ एनके बेरा ।।
ऊंकारमाघं प्रवदंति संतो वाच: श्रुतीनामपि यं गृणन्ति।
गजाननं देवगणानताङ्फघ्निं भजेअहम धर्मेन्दुकृतावंत सम्।।
संत-महात्मा जिन्हें आदि ऊंकार बताते हैं, श्रुतियों की वाणियां भी जिनका स्तवन करती है, समस्त देव समुदाय जिनके चरणारविंदों में प्रणत होता है तथा अर्धचंद्र जिनके भालदेश का आभूषण है, उस भगवान गजानन का मैं भजन करता हूं.
शास्त्रों के अनुसार कलौ चंडीविनायकौ, कलि में चंडी और विनायक शीघ्र फलप्रद देवता माने गये हैं. सभी शुभ मांगलिक कार्यों के आरंभ में विनायक की पूजा होती है. इसको गणेश पूजन कहते हैं. विनायक शब्द के विशिष्ट नायक, विगत है नायक -नियंता, जिसका अथवा विशेष रूप से लिये जानेवाला अर्थ होता है. इस देवता के अनेक नाम हैं. उनमें विनायक शब्द एक विलक्षण अर्थ का द्योतक है.
विनायक वरद चतुर्थी का व्रत या उत्सव सिंहस्थ सूर्य, भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी और हस्त-नक्षत्र के योग में होता है.यह योग विनायक शब्द से मिलता है. संख्या शास्त्र के अनुसार वि-4, ना.य-1, क -1, इन संख्याओं का योग छह होता है. यह वक्रतुंड षडश्ररी मूलतंत्र का परिचायक है. अङ्कानां वामतो गति: इस शास्त्रीय नियम से 1104 संख्या प्राप्त होती है. यह संख्या सिंहस्थ सूर्य, भाद्रपद मास, शुक्ल पक्ष, चतुर्थी तिथि और हस्न-नक्षत्र का परिचय कराती है.
चांद्रमान के अनुसार भाद्रपद छठा मास है. इन संख्याओं का योग छह है. संख्या चार और एक के योग से पांच संख्या निकलती है. यह सिंहस्थ सूर्य का घोतक है. सिंह पांचवीं राशि है. बची हुई. संख्या शुक्ल पक्ष का परिचायक है. क्योंकि शुक्ल पहला और कृष्ण दूसरा पक्ष है. प्रथम दो संख्या 11 है. यह ग्यारहवें नक्षत्र हस्त का परिचायक है. चार संख्या चतुर्थी तिथि का परिचायक है.
इसी कारण से हमारे पूर्वज शिव शक्त्यभिन्न गणपति को किसी भी शुभ कार्य के आरंभ में पूजते हैं. जो मनुष्य भाद्रपद कृष्ण पक्ष वैनायकी वरद् श्रीगणेश चतुर्थी को मंगलमूर्ति गणेशजी का श्रद्धा भक्ति से स्मरण, पूजन और गणपति मंत्र का जाप करता है, उसके यहां स्मस्त प्रकार की ऋद्धि-सिद्धि का भंडार भरा रहता है. अत: आइये हम सब मिल कर इस गणेश चतुर्थी के शुभ अवसर पर ऊंकार रूपी भगवान श्री गणेश की स्तुति करें.
परं धाम परं ब्रह्म परेशं परमीश्वरम्।
विघ्ननिघ्नकरं शान्तं पुष्टं कान्तमनन्तकेम्।।
सुरासुरेन्द्रै: सिद्धेन्द्रै: स्तुतं स्तौमि परात्परम्।
सुरपद्यनिदेशं च गणेशं मङगलायनम्।।