।। डॉ राकेश कुमार सिन्हा ‘रवि’ ।।
पुराणं गरुड़ं पुण्यं पवित्रं पापनाशनम्
शृवतां कामनापुरं श्रोतव्यं सर्वदैव हि
गरुड़ महापुराण बड़ा ही पवित्र व पुण्यदायक है. यह सभी पापों का विनाशक व सुननेवालों की समस्त कामनाओं का पूरक है. इसका सदैव स्मरण करना चाहिए. अठारहों पुराण में गरुड़ पुराण अलग है, तभी तो मृतक के घर में ब्रह्म भोज तक इसका नित्य पाठ होता है.
स्वयं इसमें अंकित भी है कि जो मनुष्य इस महापुराण को सुनता या पाठ करता है, वह यमराज की भयंकर यातनाओं को तोड़ निष्पाप होकर स्वर्ग को प्राप्त करता है. यह महापुराण भगवान विष्णु को समर्पित वैष्णव ग्रंथों में अति विशिष्ट है, जो पूर्व खंड (आचार कांड), उत्तर खंड (धर्म कांड) व ब्रह्मकांड नामक तीन खंडों में विभक्त है. इसमें उत्तर खंड में प्रेतकाल का विवेचन अत्यधिक महत्वपूर्ण है. गरुड़ पुराण के इन तीनों खंड में श्राद्ध, पिंडदान, पितर, मृतक के निमित्त कार्य व गया तीर्थ महात्म्य की चर्चा विशेषकर है. सच कहें, तो गया तीर्थ व गया तीर्थ का प्रधान अनुष्ठान को जानने व समझने के लिए गरुड़ पुराण एक झलकता आईना है.
गरुड़ पुराण में गया महात्म्य तथा गया क्षेत्र के तीर्थों में श्राद्धादि करने का फल, गया के तीर्थों का महात्म्य व गया शीर्ष में पिंडदान की महिमा में विशाल की कथा, गया तीर्थ में पिंडदान की महिमा, गया के तीर्थों की महिमा तथा आदि गदाधर का महात्म्य आदि विषय पर अलग पृष्ठ में सामग्री उपलब्ध है. इसी में अध्याय 86 का वह पंक्ति उल्लेखनीय है.
पृथिव्यां सर्वतीर्थेभ्यो यथा श्रेष्ठा गयापुरी
तथा शिलादिरुपश्च श्रेष्ठश्चैव गदाधर:
पृथ्वी पर अवस्थित सभी तीर्थों की अपेक्षा जिस प्रकार गयापुरी श्रेष्ठ है, उसी प्रकार शिला के रूप में विराजमान गदाधर श्रेष्ठ हैं.