ताकि मरुभूमि न बने देश
आज देश में जितनी भी अंगरेजी दवाइयां बन रही हैं, प्रत्येक दवा हमारी प्राकृतिक संपदाओं से ही बन रही है. पपीते के वृक्ष से चेचक की दवा बनती है. अर्जुन वृक्ष की छाल से हृदय रोग की दवा बनती है. यहां तक कि धतूरा, कनैल जैसे पौधों के फलों से अंगरेजी दवाएं बन रही हैं. […]
आज देश में जितनी भी अंगरेजी दवाइयां बन रही हैं, प्रत्येक दवा हमारी प्राकृतिक संपदाओं से ही बन रही है. पपीते के वृक्ष से चेचक की दवा बनती है. अर्जुन वृक्ष की छाल से हृदय रोग की दवा बनती है. यहां तक कि धतूरा, कनैल जैसे पौधों के फलों से अंगरेजी दवाएं बन रही हैं. अगर इन प्राकृतिक संपदाओं का नाश होता रहा तो एक दिन अंगरेजी दवाओं की कंपनियां बंद हो जायेंगी और तब दवा के अभाव में मनुष्य चौक-चौराहों पर तड़प-तड़प कर मरता दिखेगा. इसलिए आज पूरी दुनिया में लोग प्राकृतिक संपदाओं के तेजी से हो रहे नाश से उत्पन्न भय से कांप रहे हैं.
आयुर्वेद के वैद्य बताते हैं कि इस दुनिया में जितने भी पेड़-पौधे वनस्पति हैं, वे सभी मानव-जीवन के रक्षक हैं. उन्हें हम बेरहमी से काट कर वहां सड़कें बना रहे हैं. आश्चर्य है कि जब मनुष्य ही नहीं रहेगा, तो ये सड़कें किस काम आयेंगी! हजरत लुकमान जैसे यूनानी वैद्य कहते थे कि प्रकृति में उपजे सभी पेड़-पौधे हमारे जीवन के रक्षक हैं, इसीलिए भारत इन वृक्षों की पूजा करता है.
आज पूरे देश में वृक्षों, नदियों, झरनों, पहाड़ों और वनस्पतियों की रक्षा का संकल्प लेने की जरूरत है, तभी मनुष्य जाति को बचाया जा सकता है. पूरे देश के लोगों को आज इस बात का संकल्प लेने की जरूरत है कि देश में अधिक-से-अधिक वृक्ष लगाये जायें, ताकि प्रगति के मुख से निकले प्रदूषण से लोगों की रक्षा की जा सके. अगर ऐसा नहीं हुआ तो देखते-ही-देखते यह सारा देश मरुभूमि बन जायेगा.
।। आचार्य सुदर्शन ।।