हिंदू संस्कृति की सार्वभौमिकता

हमारे देश की सनातन संस्कृति एक मात्र ऐसी संस्कृति है, जिसका अपना कोई धर्म नहीं है. अगर अब धर्म ने हमारे यहां अपनी जगह बना ली है, तो यह बाहरी प्रभावों की वजह से है. नहीं तो एक संस्कृति के तौर पर यहां कोई धर्म नहीं है. हमारे यहां अकसर सनातन धर्म की ही बात […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 12, 2014 8:13 AM

हमारे देश की सनातन संस्कृति एक मात्र ऐसी संस्कृति है, जिसका अपना कोई धर्म नहीं है. अगर अब धर्म ने हमारे यहां अपनी जगह बना ली है, तो यह बाहरी प्रभावों की वजह से है. नहीं तो एक संस्कृति के तौर पर यहां कोई धर्म नहीं है.

हमारे यहां अकसर सनातन धर्म की ही बात होती है, जिसका अर्थ है सार्वभौमिक धर्म. जब हम सार्वभौमिक धर्म की बात करते हैं, तो हम यह नहीं कहते, कि सभी लोगों के लिए एकही धर्म है. बल्कि हमारे कहने का मकसद यह होता है कि हममें से हरेक का अपना एक धर्म है. हिंदू एक भौगोलिक पहचान है. हिंदू होने का संबंध किसी धर्म विशेष से नहीं है. यहां हर कोई वह सब करने को आजाद है, जो वह चाहता है.

हमारे अलावा, ऐसी कोई भी संस्कृति नहीं है, जिसने अपने लोगों को ऐसी आजादी दी हो. बाकी की सभी संस्कृतियों में इस बात पर जोर था, कि लोगों को ऐसी किसी न किसी चीज में श्रद्धा रखनी ही चाहिए, जो उस संस्कृति में प्रभावशाली है. अगर कोई उसमें भरोसा नहीं करता था, तो उसे अपने आप ही उस सभ्यता का शत्रु मान लिया जाता था.
इस गुनाह के लिए या तो उसे सूली पर चढ़ा दिया जाता था, या फिर जला दिया जाता था. लेकिन अपने यहां कभी इस तरह के उत्पीड़न की परंपरा नहीं रही, क्योंकि किसी का कोई विशेष मत है ही नहीं. आप अपने घर के अंदर ही देख लीजिए. पति एक देवता की पूजा करता है, तो पत्नी किसी दूसरे की, और बच्चे किसी और देवता को मानते हैं. इसमें किसी को कोई समस्या नहीं है.
।। सद्गुरु जग्गी वासुदेव ।।

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