गया श्राद्ध के आठवें दिन सोमवार को श्राद्ध में विष्णुपद मंदिर परिसर में अवस्थित सोलह वेदी नामक तीर्थ का विशेष महत्व है. यहां अगस्त्य पद, क्रोंच पद, मतंग पद, चंद्र पद, सूर्य पद व कार्तिक पद में पितरों के लिए पिंडदान करने का विधान है. कहा गया है कि श्राद्ध करनेवाले श्रद्धालु को पहले फल्गु में स्नान कर शुद्ध हृदय से विष्णुपद मंदिर परिसर में प्रवेश करना चाहिए.
यह भी कहा गया है कि यदि आप बीमार हैं, तो उपवास न रह कर फल, गन्ने का रस, दूध से बने सामान आदि खाकर श्राद्ध कर्म कर सकते हैं. इस दिन गया श्राद्ध में तिल, जौ, चावल, दूध, दही व मधु आदि सामग्री का उपयोग किया जाता है.
आठवें दिन के अनुष्ठान से सात गोत्र व 101 कुल का तत्क्षण उद्धार हो जाता है. ये सात गोत्र व 101 कुल इस प्रकार हैं-पिता का गोत्र सहित माता, पत्नी, बहन, बेटी, बुआ व मासी का गोत्र. इन सात गोत्र के अलावा पिता के 24, माता के 20, पत्नी के 16, बहन के 12, बेटी के पति के 11, बुआ के 10 व मासी के आठ हैं. इस प्रकार 101 कुल हो जाता है. कुल संबंधियों के सभी प्राणियों के उद्धार के लिए यह विधान रखा गया है. शास्त्र के अनुसार-
उद्धरेत सप्त गोत्राणि कुलमेकोत्तरं शतम
पिता-माता च भार्या च भगिनी दुहित: पति:
पितृष्वसा मातृष्वसा सप्त गोत्राणि तारयेत
चतुर्विशश्च विंशश्च षोडश द्वादशैव च
रूद्रादश वसुश्चैव कुलमेकोत्तम शतम
आठवें दिन के श्राद्ध के बाद कर्ता के परिवार को असीम शांति मिलती है.