खुद को समझने का अर्थ

खुद को समझने का अर्थ है-अपनी यादों को इकट्ठा करके उसे अनुभव का नाम देना. अगर हम खुद के विषय में केवल ज्ञान इकट्ठा करें, तो वही ज्ञान हमारे बोध में बाधक बनेगा, क्योंकि वह ज्ञान और अनुभव एक केंद्र बन जाता है. ऐसा केंद्र जिसके माध्यम से विचार घनीभूत होता है और उसी में […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 19, 2014 6:40 AM

खुद को समझने का अर्थ है-अपनी यादों को इकट्ठा करके उसे अनुभव का नाम देना. अगर हम खुद के विषय में केवल ज्ञान इकट्ठा करें, तो वही ज्ञान हमारे बोध में बाधक बनेगा, क्योंकि वह ज्ञान और अनुभव एक केंद्र बन जाता है.

ऐसा केंद्र जिसके माध्यम से विचार घनीभूत होता है और उसी में उसका अस्तित्व होता है. हममें से अधिकतर की कठिनाई यह है कि हम सीधे तौर पर खुद को नहीं जानते, और हम किसी ऐसी प्रणाली, ऐसी पद्धति, ऐसे तरीके को खोजते रहते हैं, जिसके जरिये तमाम मानवीय समस्याओं से निजात मिल जाये. अब क्या खुद को जानने का कोई उपाय, कोई तरीका है? कोई भी चतुर व्यक्ति या कोई भी दार्शनिक किसी विधि या पद्धति का आविष्कार कर सकता है, लेकिन यह भी तय है कि उस विधि के अनुसरण का परिणाम भी उसी विचार-प्रणाली के दायरे में होगा, है न! यदि मैं अपने आपको जानने की किसी विशेष पद्धति का अनुसरण करूं, तो मुझे वही परिणाम प्राप्त होगा, जो उस पद्धति में सन्निहित है; और स्पष्ट है कि वह परिणाम मेरा खुद को समझना नहीं है.

इसका अर्थ है कि अपने को समझने के लिए किसी पद्धति को अपना कर मैं एक प्रारूप के अनुसार अपनी सोच को, अपनी क्रियाओं को ढालता हूं, लेकिन किसी ढांचे को अपनाना, खुद को समझना नहीं है. अत: अपने आपको जानने की कोई पद्धति नहीं है. किसी पद्धति को खोजने का सिर्फ एक ही अर्थ है कि हम किसी परिणाम को हासिल करना चाहते हैं.
।। जे कृष्णमूर्ति ।।

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