इस बार आठ दिनों का ही होगा नवरात्र
इस बार शारदीय नवरात्र आठ दिन का ही होगा. 25 सितंबर को नवरात्र की कलश स्थापना होगी और दोअक्टूबर को हवन के साथ नवरात्र के अनुष्ठान का विसर्जन होगा. विजयादशमी का त्योहार तीन अक्टूबर को मनाया जायेगा. ज्योतिषाचार्य पंडित श्रीकांत शर्मा बताते हैं कि इस वर्ष शारदीय नवरात्र की महाअष्टमी व महानवमी एक ही दिन […]
इस बार शारदीय नवरात्र आठ दिन का ही होगा. 25 सितंबर को नवरात्र की कलश स्थापना होगी और दोअक्टूबर को हवन के साथ नवरात्र के अनुष्ठान का विसर्जन होगा. विजयादशमी का त्योहार तीन अक्टूबर को मनाया जायेगा. ज्योतिषाचार्य पंडित श्रीकांत शर्मा बताते हैं कि इस वर्ष शारदीय नवरात्र की महाअष्टमी व महानवमी एक ही दिन है.
इस लिहाज से नवरात्र का अनुष्ठान आठ दिनों में ही संपन्न हो जायेगा. उन्होंने बताया कि 25 सितंबर गुरुवार की सुबह पांच बजे से दोपहर 12:19 तक हस्ता नक्षत्र कलश स्थापन के लिए शुभ मुहूर्त है. एक अक्टूबर बुधवार को महासप्तमी के दिन पूजा-पंडालों के पट खोलने का मुहूर्त है. पंडित श्रीकांत शर्मा बताते हैं कि इस वर्ष शारदीय नवरात्र में मां दुर्गा का आगमन डोली पर होगा.
मां दुर्गा नवरात्र के बाद डोली पर ही विदा होंगी. नवरात्र में मां दुर्गा के आगमन की सवारी हाथी, घोड़ा, डोली व नाव है. रविवार व मंगलवार को मां दुर्गा का आगमन व प्रस्थान हाथी पर होता है, जबकि शनिवार व सोमवार को घोड़ा पर, शुक्रवार को डोली पर तथा बुधवार को मां का आगमन और प्रस्थान का दिन गुरुवार है.
* कन्या पूजन का महत्व
नवरात्र के दौरान कन्या पूजन का परंपरा है. कुंवारी कन्याएं मां दुर्गा के समान ही पवित्र और पूजनीय होती हैं. दो वर्ष से लेकर दस वर्ष की कन्याएं साक्षात दुर्गा का स्वरूप मानी जाती हैं. यही कारण है कि इस उम्र की कन्याओं के पैरों का विधिवत पूजन कर उन्हें भोजन कराया जाता है. सम्मानपूर्वक कन्या पूजन से व्यक्ति के हृदय से भय दूर हो जाता है. साथ ही उसके मार्ग में आने वाली सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं.
* कैसे करें कन्या पूजन
नवरात्र में कन्या पूजन के लिए जिन कन्याओं का चयन करें, उसकी आयु दो वर्ष से कम न हो और दस वर्ष से ज्यादा न हो. एक वर्ष से छोटी कन्याओं का पूजन इसलिए भी नहीं करना चाहिए, क्योंकि वह प्रसाद नहीं खा सकती और उन्हें प्रसाद आदि के स्वाद का ज्ञान नहीं होता. शास्त्रों में दो से 10 वर्ष की कन्याओं का पूजन करना ही श्रेष्ठ माना गया है. पूजन के दिन कन्याओं पर जल छिड़क कर रोली और अक्षत से पूजन कर भोजन करायें. भोजन के बाद कन्याओं का पैर छूकर उन्हें दान देना चाहिए.
* आयु के अनुसार कन्या रूप
नवरात्र में सभी तिथियों को एक-एक और अष्टमी या नवमी को नौ कन्याओं की पूजा होती है. दो वर्ष की कन्या के पूजन से दुख और दरिद्रता दूर होती है. तीन वर्ष की कन्या के पूजन से धन-धान्य आता है और परिवार में समृद्धि आती है. चार वर्ष की कन्या के पूजन से परिवार का कल्याण होता है, पांच वर्ष की कन्या से व्यक्ति रोग मुक्त होते हैं. छह वर्ष की कन्या के पूजन से विद्या विजय, राजयोग की प्राप्ति होती है. सात वर्ष की कन्या के पूजन से ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है, आठ वर्ष की कन्या पूजन से वाद-विवाद में विजय प्राप्त होता है. नौ वर्ष की कन्या के पूजन से शत्रुओं का नाश होता है तथा असाध्य कार्य पूरे होते हैं, जबकि 10 वर्ष की कन्या से सारे मनोरथ पूर्ण होते हैं.
* जाग जाती है आध्यात्मिक शक्ति
घट और शंखनाद के बाद देवी दुर्गा के आवाहन के लिए परिवार के सारे सदस्य एकजुट होकर रेडियो-टीवी या कैसेट से चंडी पाठ शुरू किया जाता है, तो लोगों की आध्यात्मिक शक्ति जाग उठती है. उन्हें लगता है जैसे साक्षात देवी मां उनके सामने उपस्थित हो गयी हैं. महालया प्रात: चार से 5.30 बजे तक समाप्त हो जाता है. वर्षों पहले पश्चिम बंगाल के पंडित वीरेंद्र कृष्ण भद्र ने दुर्गा सप्तशती का पाठ किया गया, उन्हीं की आवाज में आज भी कैसेट व रेडियो से लोग महालया का आनंद लेते हैं. इसके अलावा कुछ लोग इस दिन दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित दिग्गज संगीतकार पंकज कुमार मल्लिक के महिषासुरमर्दिनी का भी श्रवण करते हैं.
महिषासुरमर्दिनी एक जाना-माना संगीत आधारित रेडियो कार्यक्रम है, जो हर वर्ष महालया के दिन रेडियो पर प्रसारित किया जाता था. इसका कैसेट भी बाजार में मिलता है. दुर्गा बाड़ी में भी प्रात: चार बजे महालया पर लोग रेडियो पर चंडी पाठ का श्रवण करेंगे. काली बाड़ी के संयुक्त सचिव तरुण घोष ने बताया कि यहां भी प्रात: चार बजे रेडियो पर प्रसारित माहालया का श्रवण करेंगे. इसी दिन शाम सात बजे काली बाड़ी प्रांगण में सांस्कृतिक कार्यक्रम होगा. महाशय ड्योढ़ी के पलटन घोष ने बताया कि महालया पर चंडी पाठ रेडियो पर सुनते हैं.
* महालया का अर्थ
ज्योतिषाचार्य डॉ सदानंद झा बताते हैं महालया का मूल अर्थ कुल देवी-देवता व पितरों का आवाहन किया जाता है. 15 दिनों तक पितृ पक्ष तिथि होती है और महालया के दिन सभी पितरों का विसर्जन होता है. अमावस्या के दिन पितर अपने पुत्रादि के द्वार पर पिंडदान एवं श्राद्ध की आशा से जाते हैं. यदि उन्हें वहां पर पिंडदान या तिलांजलि नहीं मिलती है तो वो शाप देकर चले जाते हैं.
इस प्रकार पितर पक्ष के श्राद्ध का परित्याग नहीं करना चाहिए. पितरों को पिंडदान और तिलांजलि अवश्य करना चाहिए. लोग इस लिए अमावस्या के दिन पितरों का तरपन व पारवन करते हैं और उनको दिया हुआ जल व पिंड पितरों को प्राप्त होता है. महालया के दिन ही स्वर्ग से देवता व पितर अपने-अपने घर में 15 दिनों पहले पितृ पक्ष से ही वास करते हैं. महालया के दिन फिर स्वर्ग जाते हैं. पुत्र व परिवार को सुख-शांति व समृद्धि का आशीर्वाद प्रदान करते हैं.