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आज महालया, जागो तुमि जागो जागो दुर्गा, जागो दश पहरणधारिणी

।। डॉ एन के बेरा ।। महालया वह पावन अवसर है, जो दुर्गा पूजा के सात दिन पहले महिषासुरमर्दिनी, जगत जननी मां दुर्गा के आगमन की सूचना है. जागो तुमि जागो एक प्रकार का आह्वान है, मां दुर्गा को धरती पर बुलाने का. इस अवसर पर विशेष प्रकार के बांग्ला भक्तिमय संगीत आगमनी के द्वारा […]

।। डॉ एन के बेरा ।।

महालया वह पावन अवसर है, जो दुर्गा पूजा के सात दिन पहले महिषासुरमर्दिनी, जगत जननी मां दुर्गा के आगमन की सूचना है. जागो तुमि जागो एक प्रकार का आह्वान है, मां दुर्गा को धरती पर बुलाने का. इस अवसर पर विशेष प्रकार के बांग्ला भक्तिमय संगीत आगमनी के द्वारा मां दुर्गा की स्तुति की जाती है. सर्व शक्ति स्वरूपिणी भगवती दुर्गा बंगाली संप्रदाय के पास घर की बेटी, इसलिए बंगाली शाक्त पदावली के कवियों ने मां दुर्गा के ऐश्वर्यमयी महाशक्ति रूप से भी ज्यादा कन्या रूप में मानविक सुर के पद की रचना की है.
बंगाल के लोगों ने मां दुर्गा को लेकर जो लौकिक कहानी गढ़ी है, उसमें दुर्गा का परिचय गौरी या उमा के रूप में दिया गया है. पर्वतराज हिमालय और मेनका की बेटी बताया गया है. उमा को लेकर मां मेनका सदैव चिंतित रहती हैं, क्योंकि जिसके साथ उमा का विवाह हुआ है, वह सदाशिव श्मशान-मसान में घूमते हैं. गांजा-भांग खाकर जहां-तहां पड़े रहते हैं. ऐसे व्यक्ति के साथ बेटी कैसे रहेगी? यही सोच कर मां मेनका महालया की रात दु:स्वप्न देखती हैं. वह हिमालय से कहती हैं :
कुस्वप्न देखेछि गिरि, उमा आमार श्मशानवासी!
त्वराय कैलाशे चल, आन उमा सुधाराशि!!
इसके बाद गिरिराज अपनी बेटी उमा को लाने कैलास जाते हैं, वहां जाकर उमा से बोलते हैं :
चल माँ चल माँ गौरी गिरिपुरी शून्यागार
माँ होये जानोतो उमा ममता पिता मातार।
तब गौरी अपने पति शिव की अनुमति से अपने सभी पुत्र-पुत्रियों के साथ तीन दिन के लिए मायके आती हैं. कन्या के आगमन पर गिरिपुर में आनंद-उत्सव मनता है. इसी लौकिक परंपरा के आधार पर बंगाल में पांच दिन तक दुर्गापूजा होती है.
महालया के दिन प्रसारित होनेवाले महिषासुरमर्दिनी भारतीय संस्कृति में एक अतुलनीय रचना है. इसका कथानक काफी प्रभावी है. राक्षसराज महिषासुर का जुल्म देवताओं के विरुद्ध बढ़ता ही जा रहा था. उसके जुल्मों से त्रस्त देवता विष्णु के पास जाकर त्राहिमाम करने लगे. तब ब्रह्मा, विष्णु और महेश की त्रिशक्ति ने अपनी सम्मिलित शक्ति से दस भुजाओंवाली शक्ति का निर्माण किया, जिसे जगत जननी मां दुर्गा कहा गया. उनमें विश्व की सारी शक्तियां निहित थीं.
फिर अन्य देवताओं ने उन्हें अपनी शक्तियों और अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित किया. किसी योद्धा की तरह सुसज्जित होकर मां सिंह पर सवार होकर महिषासुर से संग्राम करने चलीं. घमसान युद्ध के बाद मां ने त्रिशूल से महिषासुर का वध कर दिया. स्वर्ग और पृथ्वी लोक को महिषासुर के आतंक से मुक्ति मिली. शक्ति के समक्ष समस्त जगत नतमस्तक हुआ और मां का मंत्रोच्चार करने लगे.
ह्यया देवी सर्वभुतेषु, शक्तिरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै,नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नम:।
महालया के दिन प्रसारित होनेवाले महिषासुर मर्दिनी रेडियो कार्यक्रम की पृष्ठभूमि पौराणिक है. इसकी रचना वाणी कुमार ने की, जिसे वीरेंद्र कृष्ण भद्र ने अपनी आवाज दी. इसे संगीत दिया अमर संगीतज्ञ पंकज मल्लिक ने. प्रख्यात गायक हेमंत कुमार और आरती मुखर्जी ने इसे गाया. महालया के दिन जैसे ही कार्यक्रम का प्रसारण होता है, वातावरण शंख की ध्वनि और जागो तुमि जागो, जागो दुर्गा, जागो दश, पहरणधारिणी से गुंजायमान हो जाता है. सभी मां का आवाहन करते हैं :
ऊँ नतेभ्य: सर्वदा भक्त्या चंडिके दुरितापहे।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विशो जेहि।।
ऊँ पुत्रान देहि धनं देहि सर्व कामाश्च देहि मे।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विशो जेहि।।

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