भीतर छुपा हुआ ज्ञान

अगर तुमने ज्ञान को पाने की यात्रा बनाया, तो तुम पंडित होकर समाप्त हो जाओगे. लेकिन अगर ज्ञान को खोने की खोज बनाया, तो प्रज्ञा का जन्म होगा. क्योंकि पांडित्य तो बोझ है, जिससे तुम मुक्त नहीं हो पाओगे. वह तुम्हें और बांधेगा. तुम उसके कारण अंधे हो जाओगे.जिसे भी यह भ्रम पैदा हो जाता […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 10, 2014 8:19 AM

अगर तुमने ज्ञान को पाने की यात्रा बनाया, तो तुम पंडित होकर समाप्त हो जाओगे. लेकिन अगर ज्ञान को खोने की खोज बनाया, तो प्रज्ञा का जन्म होगा. क्योंकि पांडित्य तो बोझ है, जिससे तुम मुक्त नहीं हो पाओगे. वह तुम्हें और बांधेगा. तुम उसके कारण अंधे हो जाओगे.जिसे भी यह भ्रम पैदा हो जाता है कि शब्दों को जान कर उसने जान लिया, उसका अज्ञान पत्थर की तरह मजबूत हो जाता है.

तुम उस ज्ञान की तलाश करना जो शब्दों से नहीं मिलता, नि:शब्द से मिलता हैं. जो सोचने और विचार करने से नहीं मिलता, निर्विचार होने से मिलता है. तुम उस ज्ञान को खोजना, जो शास्त्रों में नहीं, स्वयं में है. वही ज्ञान तुम्हें मुक्त करेगा, वही ज्ञान एक नये नर्तन से भर देगा, तुम्हें जीवित करेगा. और उससे ही अंतत: परमात्मा का प्रकाश प्रकट होगा. एक ज्ञान है, जो भर तो देता है मन को जानकारी से, लेकिन हृदय को शून्य नहीं करता. एक ज्ञान है, जो मन भरता नहीं, खाली करता है.
हृदय को शून्य का मंदिर बनाता है. शून्य हो जाना पूर्ण को पाने का मार्ग है. मैं रायपुर में जिस मकान में रहता था, उसी के पड़ोस में एक बूढ़ा दांत का मंजन बेचता था. मैंने पूछा, दांत तुम्हारे एक भी नहीं. तुमसे मंजन कौन खरीदता होगा? बूढ़े ने कहा, इससे क्या फर्क पड़ता है? कई लोग पुरुष होते हुए साडि़यां बेचते हैं, चूडि़यां बेचते हैं. मैं उससे राजी हुआ, तो उसने इतनी बात और जोड़ी कि फिर लोग तो अपने दांतों में उत्सुक हैं. हम सिर्फ जानकारी के लिए उत्सुक हैं, अपने भीतर छुपे ज्ञान के लिए नहीं.
।। आचार्य रजनीश ओशो ।।

Next Article

Exit mobile version