अधिचेतना की अवस्था

मदिरा और नशीली दवाएं हमारी आत्मा के विवेक और वास्तविक आनंद को नष्ट करती हैं. मदिरा अथवा नशीली दवाओं में एक बार की लिप्तता भी स्थायी आदत का आरंभ कर सकती है, क्योंकि ऐसा हो सकता है कि पिछले जन्मों से आपके अवचेतन मन में ऐसी प्रवृत्ति पहले से ही स्थापित हो. इसलिए बुराई को […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 25, 2014 2:21 PM

मदिरा और नशीली दवाएं हमारी आत्मा के विवेक और वास्तविक आनंद को नष्ट करती हैं. मदिरा अथवा नशीली दवाओं में एक बार की लिप्तता भी स्थायी आदत का आरंभ कर सकती है, क्योंकि ऐसा हो सकता है कि पिछले जन्मों से आपके अवचेतन मन में ऐसी प्रवृत्ति पहले से ही स्थापित हो. इसलिए बुराई को सदा बुराई ही समझ कर उससे बचना चाहिए.

एक बार आपने आध्यात्मिक समाधि की मदिरा का स्वाद चख लिया, तो आप पायेंगे कि कोई भी अन्य अनुभव इसकी बराबरी नहीं कर सकता. सदा अपने बच्चों को ध्यान करने की शिक्षा देकर उनमें दिव्य चेतना स्थापित करने का प्रयत्न करें, ताकि वे माया के नकली आनंद की अग्नि के साथ खेलने के लिए प्रलोभित न हों. मदिरा और नशीली दवाओं से प्राप्त आनंद शीघ्र ही समाप्त हो जाता है और अंत में दुख ही लाता है.

प्रत्येक रात्रि निद्रा में आप शांति और आनंद का स्वाद चखते हैं. जब आप गहरी निद्रा में होते हैं, तो ईश्वर आपको शांत अधिचेतनावस्था में रखते हैं, जिससे आप इस जीवन के समस्त भय और चिंताएं भूल जाते हैं. ध्यान के द्वारा आप जागृतावस्था को अनुभव कर सकते हैं और आरोग्यदायक शांति में निरंतर लीन रह सकते हैं.
जब दिव्य आनंद आता है तो मेरी सांस तुरंत शांत हो जाती है और मैं ब्रह्ममय हो जाता हूं. मैं हजारों निद्राओं का आनंद एक में ही अनुभव करता हूं और फिर भी मैं अपने सामान्य बोध को नहीं खोता. यह सर्वजनीन अनुभव उन लोगों को होता है, जो अधिचेतना अवस्था में गहरे जाते हैं.
।। परमहंस योगानंद ।।

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