ईश्वर चुंबक है और हम लोहा
जब हम ईश्वर को तत्त्वत: उसके निर्माण, पूर्ण स्वरूप में सोचने का प्रयत्न करते हैं, तो हम अनिवार्य रूप से उसमें बुरी तरह से असफल हो जाते हैं; क्योंकि जब तक हम मनुष्य हैं, तब तक मनुष्य से उच्चतर रूप में हम उसकी कल्पना ही नहीं कर सकते हैं. एक समय ऐसा आयेगा, जब हम […]
जब हम ईश्वर को तत्त्वत: उसके निर्माण, पूर्ण स्वरूप में सोचने का प्रयत्न करते हैं, तो हम अनिवार्य रूप से उसमें बुरी तरह से असफल हो जाते हैं; क्योंकि जब तक हम मनुष्य हैं, तब तक मनुष्य से उच्चतर रूप में हम उसकी कल्पना ही नहीं कर सकते हैं.
एक समय ऐसा आयेगा, जब हम अपनी मानवी प्रकृति के परे चले जायेंगे और तब हम उसके वास्तविक स्वरूप में देख सकेंगे. पर जब तक हम मनुष्य हैं, तब तक हमें उसकी उपासना मनुष्य में और मनुष्य के रूप में ही करनी होगी. जो मनुष्यों के विनाश के दुर्भाग्य को बदल सके, वह भगवान है. कोई भी साधु, चाहे वह कितना भी पहुंचा हुआ क्यों न हो, इस अनुपम पद के लिए दावा नहीं कर सकता. मुझे कोई ऐसा व्यक्ति नहीं दिखायी पड़ता, जो राम-कृष्ण को भगवान समझता हो.
हमें कभी-कभी इसकी धुंधली प्रतीति मात्र हो जाती है, बस! उन्हें भगवान के रूप में जान लेने और साथ ही संसार से आसक्ति रखने में कोई संगति नहीं है. भगवान मानो एक बड़े चुंबक हैं और हम सब लोहे के समान हैं. हम लोग उनके द्वारा सतत खींचे जा रहे हैं. हम सभी उन्हें प्राप्त करने का प्रयत्न कर रहे हैं.
संसार में हम जो नानाविध प्रयत्न करते हैं, वे सब केवल स्वार्थ के लिए नहीं हो सकते. अज्ञानी लोग जानते नहीं कि उनके जीवन का उद्देश्य क्या है. वास्तव में वे लगातार परमात्मा रूप उस बड़े चुंबक की ओर ही अग्रसर हो रहे हैं. हमारे इस अविराम, कठोर जीवन-संग्राम का लक्ष्य है- अंत में उनके निकट पहुंच कर उनके साथ एकीभूत हो जाना.
।। स्वामी विवेकानंद ।।