संसार में रहो और न रहो
तुम किसी शांत दशा में घर में बैठे हो और अचानक लगे कि घर तुम्हारे भीतर नहीं है. तो तुम्हें विहार का स्वाद मिलेगा. पत्नी के पास बैठे हो और चौंक कर देखा कि कौन पत्नी! कौन मेरा, कौन तेरा! क्षण भर को एक अजनबी राह पर मिलन हो गया है, फिर बिछड़ जायेंगे. न […]

तुम किसी शांत दशा में घर में बैठे हो और अचानक लगे कि घर तुम्हारे भीतर नहीं है. तो तुम्हें विहार का स्वाद मिलेगा. पत्नी के पास बैठे हो और चौंक कर देखा कि कौन पत्नी! कौन मेरा, कौन तेरा! क्षण भर को एक अजनबी राह पर मिलन हो गया है, फिर बिछड़ जायेंगे. न पहले इसका कुछ पता था, न बाद में पता रह जायेगा.
यह संयोग मात्र है. पत्नी के पास बैठे-बैठे दोनों के बीच अनंत आकाश जितना फासला हो गया, तो विहार का अनुभव होगा. ये शब्द बड़े जीवंत हैं. ये शब्द ही नहीं हैं, चित्त की दशाएं हैं. भोजन करने बैठे हो और होश सध जाये क्षण भर भी, तो दिखेगा कि भोजन तो शरीर में जा रहा है. चैतन्य में भोजन कैसे जायेगा! भोजन देह की जरूरत है, तुम्हारी नहीं.
अगर भोजन करते समय ऐसी प्रतीति हो जाये, तो उसी क्षण बुद्धत्व के पास पहुंच गये. संसार में रहे और संसार में न रहे, कमलवत हो गये. विहार का स्वाद मिल गया. जिसको विहार का स्वाद मिल गया, वही भगवान हो गया. भगवान जेतवन में विहरते थे. उनकी देशना में निरंतर ध्यान के लिए आमंत्रण था. देशना का अर्थ है- कहना, समझना, फुसलाना, लेकिन आदेश न देना.
देशना का अर्थ है, तुम्हारी बात के प्रभाव में, तुम्हारी बात की गंध में कोई चल पड़े, तो ठीक, लेकिन किसी तरह का लोभ न देना, क्योंकि जो लोग लोभ के कारण चलते हैं, वे चलेंगे ही नहीं. तुम चोरी इसलिए नहीं करते कि नर्क का भय है. तो चोरी भले न की हो, फिर भी चोर हो, क्योंकि नर्क का भय न होता तो जरूर करते.
।। आचार्य रजनीश ओशो ।।