अध्यात्म से परवरिश

एक स्तर पर देखें तो प्रेम सभी नकरात्मक भावनाओं का जन्मदाता है. जिनको उत्तमता से प्रेम होता है वे शीघ्र क्रोधित हो जाते हैं. वे सब कुछ उत्तम चाहते हैं. उनमें पित्त अधिक होता है. वे हर चीज में पूर्णता ढूंढते हैं. ईष्र्या प्रेम के कारण होती है. आप किसी से प्रेम करते हो तो […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 26, 2014 4:58 AM
एक स्तर पर देखें तो प्रेम सभी नकरात्मक भावनाओं का जन्मदाता है. जिनको उत्तमता से प्रेम होता है वे शीघ्र क्रोधित हो जाते हैं. वे सब कुछ उत्तम चाहते हैं. उनमें पित्त अधिक होता है. वे हर चीज में पूर्णता ढूंढते हैं. ईष्र्या प्रेम के कारण होती है. आप किसी से प्रेम करते हो तो ईष्र्या भी आती है. लालच आता है, जब आप लोगों की बजाय वस्तुओं को अधिक चाहते हो.
जब आप अपने आप को बहुत ज्यादा प्रेम करते हो, तो अभिमान बन जाता है. अभिमान अपने आप को विकृत रूप से प्रेम करना है. इस ग्रह पर कोई एक भी ऐसा नहीं है, जो प्रेम नहीं चाहता हो. फिर भी हम प्रेम के साथ आनेवाले दुख को नहीं लेना चाहते. ऐसी अवस्था कैसे प्राप्त हो सकती है? अपने अस्तित्व और आत्मा को शुद्ध करके, जो आध्यात्म द्वारा ही संभव है. हम पदार्थ और आत्मा दोनों से बने हैं. हमारे शरीर को विटामिन की आवश्यकता होती है.
यदि शरीर में कोई पोषक तत्व नहीं हो, तो शरीर में इसकी कमी हो जाती है. इसी तरह हम आत्मा भी हैं. आत्मा सुंदर, सत्य, आनंद, सुख, प्रेम और शांति है. आध्यात्म वह है, जिससे ये सारे गुण बढ़ते हैं और सीमाएं खत्म हो जाती हैं. हम अपने बच्चों और युवाओं की इस आध्यात्मिक तरीके से परवरिश कर सकते हैं. हमें अपने आप को किसी सेवा परियोजना में व्यस्त रखने और आध्यात्मिक अभ्यास की जरूरत है, जिससे हमारे मन के नकारात्मक भाव खत्म होते हैं. इससे हमारा अस्तित्व शुद्ध होता है, भाव में खुशी आती है और सहज ज्ञान प्राप्त होता है.
श्रीश्री रविशंकर

Next Article

Exit mobile version