25.3 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

विकल्प-शून्यता का महत्व

इस मोह-मायारूपी संसार में जब तक अस्मिता और ममता का ग्रंथिभेद नहीं होता, तब तक सारे प्रयत्न करने पर भी हमें कोई सफलता नहीं मिल सकती. ध्यान के लिए निर्विकल्पता का विकास जरूरी है. अहंकार और ममकार से ही मनुष्य नित नये विकल्पों का सर्जन करता है. हमारे संस्कार के सारे संबंध अहंकार और ममकार […]

इस मोह-मायारूपी संसार में जब तक अस्मिता और ममता का ग्रंथिभेद नहीं होता, तब तक सारे प्रयत्न करने पर भी हमें कोई सफलता नहीं मिल सकती. ध्यान के लिए निर्विकल्पता का विकास जरूरी है. अहंकार और ममकार से ही मनुष्य नित नये विकल्पों का सर्जन करता है. हमारे संस्कार के सारे संबंध अहंकार और ममकार से ही जुड़े हुए हैं.
मानवीय वृत्तियों की कलुषता के निमित्त ये ही हैं. इसलिए ध्यान की पूर्वभूमिका का निर्माण करने की दृष्टि से अहंकार और ममकार पर विजय पाना बहुत जरूरी है. जिस क्षण ये दोनों तत्व नियंत्रित हो जाते हैं, ध्यान की हमारी भूमिका स्वयं प्रशस्त हो जाती है. कुछ लोगों का मानना है कि पूर्व भूमिका की प्रतीक्षा में समय लगाने की आवश्यकता नहीं. ध्यान प्रारंभ करो, उसका परिणाम स्वत: आ जायेगा. इससे असहमति जैसी कोई बात नहीं है.
फिर भी यह मानना होगा कि यह साधना का सुनियोजित क्रम नहीं है. जिस प्रकार खेती करने के लिए योजनाबद्ध पद्धति की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार ध्यान-साधना भी योजनाबद्ध ढंग से ही करनी चाहिए, तभी उसका परिणाम जल्दी आ सकता है. ध्यान का अर्थ है चित्त की एकाग्रता. एकाग्रता के लिए विकल्प-शून्यता नितांत अपेक्षित है. विकल्पों की परंपरा समाप्त करने के लिए चित्त का निर्मल होना जरूरी है. अब सोचना है कि चित्त निर्मल कैसे होगा. इसका भी उपाय है महाव्रत और अणुव्रत. चित्त पर जो मैल जमा हुआ है, महाव्रत और अणुव्रत से ही साफ किया जा सकता है.
आचार्य तुलसी

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें