मानव व्यक्तित्व के दो पहलू

भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है कि तमोगुण की प्रवृत्ति वाले व्यक्ति को पता नहीं चलता कि कब दोनों में से किस रास्ते पर चलना है. उसमें विवेक नहीं होता. जब काम कर रहा होता है, तो वह सोचता है कि सब ठीक चल रहा है. वह कार्य नहीं करता औरउदासीनता का मनोभाव […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 8, 2015 4:07 AM

भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है कि तमोगुण की प्रवृत्ति वाले व्यक्ति को पता नहीं चलता कि कब दोनों में से किस रास्ते पर चलना है. उसमें विवेक नहीं होता. जब काम कर रहा होता है, तो वह सोचता है कि सब ठीक चल रहा है. वह कार्य नहीं करता औरउदासीनता का मनोभाव रखता है. वह सोचता है कि उसे काम करके क्या लेना है.

लेकिन सारी रात वह सोचता है और परेशान रहता है. सिर्फ सोचने से कोई कार्य पूरा नहीं हो सकता. जब दोनों रुख साथ साथ चलें, तब आप निपुणता, सफलता और बिना तनाव के कार्य पूरा कर लेते हो. गीता में यह कहा गया है कि बुद्धिमान व्यक्ति जानता है कि निवृत्ति के लिए कौन सा मनोभाव ठीक है. जब आप अंतध्र्यान होना चाहते हैं, तब मन स्थिर होता है, आपको पूरा आराम मिलता है और आप गहरे ध्यान में डूब जाते हो. एक बार जब ध्यान से बाहर आते हो तो आप और भी स्पष्ट व चौकस हो जाते हो, तथा छोटे से छोटे दोष को भी पकड़ लेते हो. तब आपमें बहुत छोटी सी गलती को देख कर, उसमें सुधार ला सकने की कुशलता आती है.

आप कभी भी सारा समय ध्यान में नहीं रह सकते. आपको कार्य और निष्क्रियता में बदलाव करना पड़ता है. कार्य और आराम मानव व्यक्तित्व के दो पहलू हैं और मानव विकास के लिए दोनों जरूरी हैं. दोनों में संतुलन बनाये रखना एक कला है. पूरा जीवन आप को इस पर चलना है, इसलिए इन दोनों के बीच संतुलन को हमेशा बनाये रखें और निरंतर आगे बढ़ने की कोशिश करते रहें.

श्री रविशंकर

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