गोविंद की कृपा

मनुष्य के भौतिक जीवन का एक सामान्य लेखा-जोखा होता है. किंतु आध्यात्मिक जीवन इससे सर्वथा भिन्न होता है. चूंकि भक्त भगवान की इच्छाओं की पूर्ति करना चाहता है, अत: भगवद्इच्छा होने पर वह भगवान की सेवा के लिए सारे ऐश्वर्य स्वीकार कर सकता है, किंतु यदि भगवद्इच्छा न हो, तो वह एक पैसा भी ग्रहण […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 13, 2015 5:40 AM
मनुष्य के भौतिक जीवन का एक सामान्य लेखा-जोखा होता है. किंतु आध्यात्मिक जीवन इससे सर्वथा भिन्न होता है. चूंकि भक्त भगवान की इच्छाओं की पूर्ति करना चाहता है, अत: भगवद्इच्छा होने पर वह भगवान की सेवा के लिए सारे ऐश्वर्य स्वीकार कर सकता है, किंतु यदि भगवद्इच्छा न हो, तो वह एक पैसा भी ग्रहण नहीं करता.
भगवान का असली भक्त होने के कारण अजरुन अपने अत्याचारी बंधु-बांधवों से प्रतिशोध नहीं लेना चाहता था, किंतु यह तो भगवान की योजना थी कि सबका वध हो. भगवद्भक्त दुष्टों से प्रतिशोध नहीं लेना चाहते, किंतु भगवान दुष्टों द्वारा भक्त के उत्पीड़न को सहन नहीं कर पाते. भगवान किसी व्यक्ति को अपनी इच्छा से क्षमा कर सकते हैं, किंतु यदि कोई उनके भक्तों को हानि पहुंचाता है, तो वे उसे क्षमा नहीं करते. इसीलिए भगवान दुराचारियों का वध करने के लिए उद्यत थे यद्यपि अजरुन उन्हें क्षमा करना चाहता था.
प्रत्येक व्यक्ति अपनी इंद्रियों को तुष्ट करना चाहता है और चाहता है कि ईश्वर उसके आज्ञापालक की तरह काम करें. किंतु ईश्वर उनकी तृप्ति वहीं तक करते हैं, जितने के वे पात्र होते हैं. किंतु जब कोई इसके विपरीत मार्ग ग्रहण करता है, तो गोविंद की कृपा से उस जीव की सारी इच्छाएं पूर्ण हो जाती हैं. हर व्यक्ति अपने वैभव का प्रदर्शन अपने मित्रों तथा परिजनों के समक्ष करना चाहता है, किंतु अजरुन को भय है कि उसके सारे मित्र तथा परिजन युद्ध में मारे जायेंगे और वह उनके साथ अपने वैभव का उपयोग नहीं कर सकेगा.
स्वामी प्रभुपाद

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