भगवद्भक्त के निमित्त

इस भौतिक संसार में भगवान के भक्तजनों द्वारा भगवान शब्द निश्चित रूप से किसी अत्यंत शक्तिशाली व्यक्ति या देवता के लिए ही प्रयुक्त होता है. और यहां पर भगवान शब्द निश्चित रूप से भगवान श्रीकृष्ण को एक महान पुरुष के रूप में सूचित करता है. किंतु साथ ही हमें यह जानना होगा कि भगवान श्रीकृष्ण […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 21, 2015 12:35 AM

इस भौतिक संसार में भगवान के भक्तजनों द्वारा भगवान शब्द निश्चित रूप से किसी अत्यंत शक्तिशाली व्यक्ति या देवता के लिए ही प्रयुक्त होता है. और यहां पर भगवान शब्द निश्चित रूप से भगवान श्रीकृष्ण को एक महान पुरुष के रूप में सूचित करता है. किंतु साथ ही हमें यह जानना होगा कि भगवान श्रीकृष्ण पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान हैं. जैसा कि शंकराचार्य, रामानुजाचार्य, मधवाचार्य, निम्बार्क स्वामी, चैतन्य महाप्रभु तथा भारत के वैदिक ज्ञान के अन्य विद्वान आचार्यो ने पुष्टि की है.

भगवान ने भी स्वयं भगवद्गीता में अपने को परम पुरुषोत्तम भगवान कहा है और ब्रह्म संहिता में तथा अन्य पुराणों में विशेष तौर पर श्रीमद्भागवतम् में जो भागवतपुराण के नाम से विख्यात है, वे इसी रूप में स्वीकार किये गये हैं. भगवद्गीता के चतुर्थ अध्याय में भगवान कहते हैं कि भगवद्गीता की योग पद्धति सर्वप्रथम सूर्यदेव को बतायी गयी, सूर्यदेव ने इसे मनु को बताया और मनु ने इक्ष्वाकु को बताया. इस प्रकार गुरु परंपरा से यह योग पद्धति एक वक्ता से दूसरे वक्ता तक पहुंचती रही. लेकिन कालांतर में यह छिन्न-भिन्न हो गयी.

फलस्वरूप भगवान को इसे फिर से बताना पड़ रहा है. इस बार अजरुन को कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में बताना पड़ रहा है. वे अजरुन से कहते हैं कि मैं तुम्हें यह परम रहस्य इसलिए प्रदान कर रहा हूं, क्योंकि तुम मेरे भक्त तथा मित्र हो. इसका तात्पर्य यह है कि भगवद्गीता ऐसा ग्रंथ है, जो विशेष रूप से भगवद्भक्त के लिए ही भगवद्भक्त के निमित्त है.

स्वामी प्रभुपाद

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