इस संसार की सभी चीजें परिवर्तनशील हैं. परिवर्तन का मतलब है -उलटना-पलटना, अदल-बदल, विनिमय. एक स्थिति रूप आदि से दूसरी स्थिति रूप आदि को प्राप्त होना. किसी काल या युग का अंत. यदि इतिहास को देखा जाये तो आश्चर्यजनक परिवर्तन नजर आयेगा. जिस रावण के पदाघात से सूर रमणी का गर्भपात हो जाया करता था.
तथा देव, दानव, नर-किन्नर, यक्ष-गंधर्व आदि वीर भयभीत रहते थे. लेकिन जब परिवर्तन का चक्र शुरू हुआ तो वही रावण सोने का महल छोड़ गया. दुर्याेधन के पास एशिया महादेश का राजसुख प्राप्त था. वे सोचते थे कि मेरे जीवन का सूर्य कभी अस्त नहीं होगा, लेकिन इतना परिवर्तन हुआ कि भागते-भागते कूड़ा वाला स्थान भी नसीब नहीं हुआ. सिकंदर के पास अकूत वैभव था, लेकिन वह भी संसार से धन छोड़ कर चला गया. ऐसे चक्रवर्ती राजाओं को भी दुख का मुख देखना पड़ा, तो हम किस खेत की मूली हैं.
वस्तुत: संसार का नाम ही परिवर्तनानंद है. यहां की सारी वस्तुएं बदलती नजर आती हैं. अभी सुख है, तो कुछ क्षण में ही दुख भी हो जाता है. अभी भोजन किये, तत्क्षण भूख का आभास होने लगता है. व्यापार में आमदनी हुई तो मन प्रसन्न हुआ. जैसे ही घाटा लगा कि मन दुखी हो गया. पहाड़ है, एक दिन पठार मैदान में बदल जाता है. एक समान सुख किसी का रह नहीं सकता. एक समान तो सिर्फ परमात्मा रहते हैं. वे ही अपरिवर्तनशील हैं. प्रकृति है जो किसी को सुखमय या दुखमय सतत् रहने नहीं देती है.
स्वामी विद्यानंद दास