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अहंकार को खोजिए!

हमारे मनीषियों का कहना है कि अहंकार मनुष्य को गिराता है. उसे उद्दंड और परपीड़क बनाता है. ऐसे लोग आमतौर से कृतघ्न होते हैं. उनमें नम्रता, विनयशीलता का अभाव होता चला जाता है. इस कारण ऐसे व्यक्ति दूसरों की नजर में निरंतर गिरते जाते हैं. आत्म-सम्मान की रक्षा करनी हो, तो अहंकार से बचना चाहिए. […]

हमारे मनीषियों का कहना है कि अहंकार मनुष्य को गिराता है. उसे उद्दंड और परपीड़क बनाता है. ऐसे लोग आमतौर से कृतघ्न होते हैं. उनमें नम्रता, विनयशीलता का अभाव होता चला जाता है. इस कारण ऐसे व्यक्ति दूसरों की नजर में निरंतर गिरते जाते हैं. आत्म-सम्मान की रक्षा करनी हो, तो अहंकार से बचना चाहिए.

तत्त्ववेत्ता मनीषियों का कहना है कि प्राय: घर द्वार छोड़ने और वैराग्य की चादर ओढ़ लेने पर भी अहंकार नहीं छूटता. ऐसा व्यक्ति सोचता है कि मैंने बहुत बड़ा त्याग किया है. इसी तरह धन छोड़ देने या दान कर देने की भी अहम वृत्ति बनी रहती है.

अध्यात्मवेत्ताओं के अनुसार अहंकार से बचने का केवल एक ही उपाय है कि उसे खोजा जाये कि वह अंतर की किन गहराइयों में डेरा डाले पड़ा है. उन्होंने अहं को गलाने और स्वाभिमान को जगाने का सर्वोत्तम उपाय लोक आराधना बताया है. पूजा-उपासना से जो प्रगति मनुष्य के व्यक्तित्व में होनी चाहिए, वह सच्चे लोकसेवी में भी विकसित हो सकती है. तब वह मात्र विमानव के कल्याण की बातें सोचता और ईर्ष्‍या, द्वेष, ऊंच-नीच के भेदभाव से रहित जीवन जीता है.

धीरे-धीरे वह प्राणी की सेवा के लिए अपने को समर्पित करता जाता है. कालांतर में ऐसे व्यक्ति का व्यवहार मधुर एवं संतुलित हो जाता है. उदात्त चिंतन से परिचालित एवं परहित कामना से कर्मरत व्यक्ति का अहंभाव क्रमश: विनष्ट होता चला जाता है और वह विराट सत्ता से संबद्ध हो जाता है. तब विराट परमात्म सत्ता ही उसका मार्गदशर्न करने लगती है.

पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य

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