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सात्विक भोजन ग्रहण करें

साधक को चाहिए कि वह खाद्य आहार करे. खाने योग्य आहार की भी मात्र का अतिरेक नहीं करना चाहिए. मात्र का अतिरेक हमारी साधना में बाधा पैदा करता है. जो साधक अतिमात्र में आहार करता है, उसका ध्यान, स्वाध्याय आदि में मन कम लगता है. इसलिए परिमित आहार होना चाहिए. भोजन अगर सात्विक है, सीमित […]

साधक को चाहिए कि वह खाद्य आहार करे. खाने योग्य आहार की भी मात्र का अतिरेक नहीं करना चाहिए. मात्र का अतिरेक हमारी साधना में बाधा पैदा करता है. जो साधक अतिमात्र में आहार करता है, उसका ध्यान, स्वाध्याय आदि में मन कम लगता है. इसलिए परिमित आहार होना चाहिए. भोजन अगर सात्विक है, सीमित है, तो आदमी का शरीर भी अच्छा रहता है और मन भी प्रसन्न रहता है.
जिस भोजन में तले हुए पदार्थ ज्यादा हैं, मिठाइयां हैं, वह भोजन स्वास्थ्य के लिए कठिनाई पैदा करनेवाला भी बन सकता है. इसलिए आदमी अपने शरीर की प्रकृति पर ध्यान दे और उसके अनुसार अपने भोजन का निर्धारण करे. मनुष्यों में विभिन्न वृत्तियां होती हैं. सात्विक वृत्तिवाले पुरुष मिलते हैं, तो राजसिक और तामसिक वृत्तिवाले व्यक्ति भी मिल सकते हैं.
सज्जन व्यक्ति मिलते हैं, तो दुर्जन भी मिल सकते हैं. अपेक्षा इस बात की है कि दुर्जन लोगों को उपदेश देकर, समझा कर, कोई प्रयोग आदि करवा कर सज्जन बनाने का प्रयास करना चाहिए. अनेक संत-महात्मा अपने उपदेशों के माध्यम से, धर्मकथाओं के माध्यम से ऐसा प्रयास करते हैं कि आदमी सात्विक वृत्तिवाला बन जाये, उसका गुणात्मक विकास हो जाये. लोगों में साधु-महात्माओं के प्रति कुछ आस्था का भाव देखने को मिलता है. उस आस्था के आधार पर वे संतों की बात को सम्मान देते हैं. वे हर बात ग्रहण न भी कर सकें, फिर भी उनकी बात सुनते हैं. इसलिए मनुष्य को हरसंभव प्रयास करना चाहिए कि वह सात्विक भोजन ग्रहण करे.
आचार्य महाश्रमण

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