वासंतिक नवरात्र आठवां दिन : महागौरी दुर्गा का ध्यान

श्वेते वृषे समारूढ़ा श्वेताम्बरधरा शुचि:। महागौरी शुभं दद्दान्महादेव प्रमोददा।। जो श्वेत वृषभ पर आरूढ़ होती हैं, श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, सदा पवित्र रहती हैं तथा महादेवजी को आनंद प्रदान करती हैं, वे महागौरी दुर्गा मंगल प्रदान करें. जगत जननी महाशक्ति दुर्गा-8 देवताओं ने जगज्जननी दुर्गा के स्वरूप के संबंध में कहा है कि आप […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 27, 2015 6:08 AM
श्वेते वृषे समारूढ़ा श्वेताम्बरधरा शुचि:।
महागौरी शुभं दद्दान्महादेव प्रमोददा।।
जो श्वेत वृषभ पर आरूढ़ होती हैं, श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, सदा पवित्र रहती हैं तथा महादेवजी को आनंद प्रदान करती हैं, वे महागौरी दुर्गा मंगल प्रदान करें.
जगत जननी महाशक्ति दुर्गा-8
देवताओं ने जगज्जननी दुर्गा के स्वरूप के संबंध में कहा है कि आप ही सबकी आधारभूता हैं, यह समस्त जगत् आपका अंशभूत है, क्योंकि आप सबकी आदिभूता अव्याकृता परा प्रकृति हैं.
सर्वाश्रयाखिलमदं जगदंशभूत:
मव्याकृता हि परमा प्रकृतिस्त्वमाद्या।।
सृष्टि की आदि में देवी ही थीं : सैषा परा शक्ति:। इसी पराशक्ति भगवती से ब्रह्म, विष्णु, महेश तथा संपूर्ण स्थावर-जंगमात्मक सृष्टि उत्पन्न हुई. संसार में जो कुछ है, इसी में सन्निविष्ट है. भुवनेश्वरी, प्रत्यंगिरा, सीता, सावित्री, सरस्वती, ब्रह्मनन्दकला आदि अनेक नाम इसी पराशक्ति के हैं. देवी ने स्वयं कहा है : सर्व खिल्वदमेवाहं नान्यदिस्त सनातनम्। अर्थात् यह समस्त जगत् मैं ही हूं, मेरे सिवा अन्य कोई अविनाशी वस्तु नहीं है.
ये महाशक्ति दुर्गा ही सर्वकारणरूप प्रकृति की आधारभूता होने से महाकारण हैं, ये ही मायाधीश्वरी हैं, ये ही सृजन-पालन-संहारकारिणी आद्या नारायणी शक्ति हैं और ये ही प्रकृति के विस्तार के समय भर्ता, भोक्ता और महेश्वर होती है. ये ही आदि के तीन जोड़े उत्पन्न करनेवाली महालक्ष्मी हैं, इन्हीं की शक्ति से विष्णु और शिव प्रकट होकर विश्व का पालन और संहार करते हैं.
दया, क्षमा, निद्रा, स्मृति, क्षुधा, तृष्णा, तृप्ति, श्रद्धा, भक्ति, धृति, मति, तुष्टि, पुष्टि, शांति, कांति, लज्जा आदि इन्हीं महाशक्ति की शक्तियां हैं. ये ही गोलक में श्रीराधा, साकेत में श्रीसीता, क्षीरोदसागर में लक्ष्मी, दक्षकन्या सती, दुर्गतिनाशिनी मेनकापुत्री दुर्गा हैं. वास्तविक रूप में तो वह एक ही हैं : एकैवाहं जगत्यत्र द्वितीयाका ममापरा। देवी के अवतार का यही कारण है, जो स्वयं देवी ने देवी भागवतमें कहा है :
साधूनां रक्षणं कार्य हन्तव्या ये अप्यसाधव:।
वेदसंरक्षणं कार्यमवतारैरनेकश:।।
युगे युगे तानेवाहमवतारान विभर्मि च।।
साधुओं की रक्षा, दुष्टों का संहार, वेदों का संरक्षण करने के लिए ही देवी प्रत्येक युग में अवतार लेती हैं. देवी नित्या, सनातनी होकर भी साधुओं और देवों के परिमाण के लिए आविर्भूत होकर उत्पन्ना बतलायी जाती है तथा विभिन्न रूपों में लीला करती हैं.
देवानां कार्यसिद्धयर्थमाविर्भिवत सा यदा।
उत्पधोति तदा लोके सा नित्याप्यभिधीयते।।
इत्थं यदा यदा वाधा दानवोत्था भविष्यति।
तदा तदावतीर्याहं करिष्याम्यरिसंक्षयम।।
(क्रमश:) प्रस्तुति : डॉ एनके बेरा

Next Article

Exit mobile version