अमेरिका और इंग्लैंड में मैं बहुत बार केवल अपने वेशभूषा के कारण भीड़ द्वारा प्राय: आक्रांत किया गया हूं. पर भारत में मैंने ऐसी बात कभी नहीं देखी और नहीं सुनी कि भीड़ किसी व्यक्ति की वेशभूषा के कारण उसके पीछे पड़ गयी हो. अन्य सभी बातों में हमारी जनता यूरोप की जनता की अपेक्षा कहीं अधिक सभ्य है.
वैसे भी किसी की वेशभूषा पर उसे आक्रांत किया जाना किसी भी अच्छे समाज की सभ्यता के लिए बहुत ही निंदनीय है. पाश्चात्य देशों में स्त्री को पत्नी की दृष्टि से देखा जाता है. वहां स्त्री में पत्नीत्व की ही कल्पना की जाती है; परंतु इसके विपरीत, प्रत्येक भारतीय नारी में मातृत्व की कल्पना की जाती रही है. पाश्चात्य देशों में गृह की स्वामिनी और शासिका पत्नी है, जबकि भारतीय गृहों में घर की स्वामिनी और शासिका माता है. पाश्चात्य गृह में यदि माता हो भी तो उसे पत्नी के अधीन रहना पड़ता है,
क्योंकि गृह-स्वामिनी पत्नी है. हमारे घरों में माता ही सब कुछ है. पत्नी को उसकी आज्ञा का पालन करना ही चाहिए. आदर्श की भिन्नता से दोनों घरों के जीवन में कितना अंतर हो जाता है. इन संदर्भो में बहुतों को भारतीय विचार, भारतीय प्रथा, भारतीय आचार-व्यवहार, भारतीय दर्शन और साहित्य पहले-पहल कुछ अनोखे-से मालूम होते हैं; परंतु यदि वे धैर्यपूर्वक उक्त विषयों पर विवेचन करें- मन लगा कर अध्ययन करें और इन तत्वों में निहित महान सिद्धांतों का परिचय प्राप्त करें, तो फलस्वरूप 99 प्रतिशत लोग आकर्षित होकर उनसे विमुग्ध हो जायेंगे.
स्वामी विवेकानंद