समय आधारित अस्तित्व

हमारा जीवन अधिकांशत: समय में ही व्यतीत होता है. यहां समय कालक्रम के, मिनट, घंटे, दिन अथवा वर्ष के क्रम के अर्थ में नहीं, बल्कि मनोवैज्ञानिक स्मृति के अर्थ में है. हम समय के गणित में जीते हैं, हम समय के ही परिणाम हैं. हमारा मन अनेक विगत दिवसों का फल है और वर्तमान केवल […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 11, 2015 5:34 AM

हमारा जीवन अधिकांशत: समय में ही व्यतीत होता है. यहां समय कालक्रम के, मिनट, घंटे, दिन अथवा वर्ष के क्रम के अर्थ में नहीं, बल्कि मनोवैज्ञानिक स्मृति के अर्थ में है.

हम समय के गणित में जीते हैं, हम समय के ही परिणाम हैं. हमारा मन अनेक विगत दिवसों का फल है और वर्तमान केवल अतीत से भविष्य की ओर जाने का मार्ग है. हमारा मन, हमारी क्रियाएं, हमारा अस्तित्व समय पर आधारित है. समय के बिना हम विचार नहीं कर सकते, क्योंकि विचार समय का ही परिणाम है; विचार अनेक बीते दिनों का परिणाम है और वह स्मृति के अभाव में संभव नहीं है.

स्मृति समय है, क्योंकि समय दो प्रकार का होता है, क्रमिक एवं मनोवैज्ञानिक. एक समय तो बीते हुए कल के रूप में घड़ी के अनुसार होता है और दूसरा स्मृति के अनुसार. क्रमिक समय से इनकार करना तो बेतुकी बात होगी, तब तो आपकी गाड़ी ही छूट जायेगी. परंतु क्रमिक समय के अतिरिक्त क्या वस्तुत: कोई दूसरा समय होता है? बेशक बीते हुए कल के रूप में समय मौजूद है, परंतु क्या ऐसा कोई समय है जैसा कि मन कल्पना करता है? इसमें कोई शक नहीं कि समय, मनोवैज्ञानिक समय, मन की ही उत्पत्ति है.

विचार की बुनियाद के बिना समय का वजूद नहीं होता; समय वर्तमान के संदर्भ में बीते हुए कल की स्मृति मात्र है, जो आनेवाले कल को आकार देती है. बीते हुए कल के अनुभव की स्मृति वर्तमान की प्रतिक्रिया के रूप में भविष्य को निर्मित करती है. यह विचार की प्रक्रिया है, मन की राह है.

जे कृष्णमूर्ति

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