पूर्वजन्म और पुनर्जन्म

दान और त्याग के संस्कारों की परंपरा चलती है. यदि एक आदमी किसी को दान देता है, सहयोग करता है, तो हो सकता है अगले जन्म में वह भी उसका सहयोग करे. आचार्य भिक्षु ने कहा कि रागभाव और वैरभाव के संस्कारों की परंपरा चलती है. अगर किसी के साथ मित्रता का संबंध है, तो […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 22, 2015 6:24 AM
दान और त्याग के संस्कारों की परंपरा चलती है. यदि एक आदमी किसी को दान देता है, सहयोग करता है, तो हो सकता है अगले जन्म में वह भी उसका सहयोग करे. आचार्य भिक्षु ने कहा कि रागभाव और वैरभाव के संस्कारों की परंपरा चलती है. अगर किसी के साथ मित्रता का संबंध है, तो मरने के बाद भी अगली गति में उसके साथ मित्रता का संबंध रह सकता है.
किसी के साथ दुश्मनी का संबंध है, तो मरने के बाद भी अगली गति में आपस में वैरभाव पैदा हो सकता है. संस्कारों की परंपरा चलती रहती है, यह एक सिद्धांत माना गया है. एक जन्म के संस्कार अनेक जन्मों तक बने रह सकते हैं. दो भाइयों में यदि बड़ा प्रेम है, तो संभव है अगले जन्मों में निकट संबंधी बनने का मौका मिल सकता है.
अनेक जन्मों तक संबंधों की परंपरा चलती रहती है. हमें पता चले या न चले, पर सिद्धांत के अनुसार पूर्वजन्म होता है और पुनर्जन्म भी होता है. प्रेक्षाध्यान के शिविरों में भी पूर्वजन्म की अनुभूति के प्रयोग कराये जाते हैं. शिविरार्थियों को कुछ अनुभूतियां भी होती हैं. हो सकता है कभी-कभी भीतर के कोई संस्कार जाग जायें और वास्तव में व्यक्ति अपने पिछले जन्म को देख ले. सभी को पिछले जन्म का ज्ञान हो जाये, यह मुझे संभव नहीं लगता.
अत: आदमी इस सिद्धांत को मान कर चले कि जैसे पूर्वजन्म होता है, वैसे ही पुनर्जन्म भी होता है. मैं यहां जैसा कर्म करूंगा, वैसा फल मुझे आगे मिलनेवाला है, इसलिए मैं गलत कार्य न करूं. यह कर्मवाद का सिद्धांत पूर्वजन्म के साथ जुड़ा हुआ है.
आचार्य महाश्रमण

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