एक योगी को एकांतवासी होना चाहिए, क्योंकि विभिन्न प्रकार के लोगों के संसर्ग से उसके मन में अस्थिरता उत्पन्न होगी. उसे कम बोलना और कम काम करना चाहिए, क्योंकि बहुत बोलने से मन चंचल होता है. ऊपर की बातों का ध्यान रखनेवाला ही योगी होता है. योग एक ऐसी शक्ति है कि थोड़ा सा भी करने पर बहुत लाभ मिलता है.
सबसे पहले तोवह मानसिक अशांति को दूर कर स्थिरता लायेगा और हम संसार को और उज्ज्वल आंखों से देख सकेंगे. मन और शरीर दोनों ही स्वस्थ रहेंगे. अच्छा स्वास्थ्य और मीठा कंठ-स्वर योग के प्रथम चिह्न् हैं. कंठ के सभी दोष दूर हो जायेंगे. योग का जो कठिन अभ्यास करेंगे, उन्हें और शुभ चिह्न् दिखायी देंगे. कभी कुछ शब्द सुनाई देगा; जैसे दूर पर घंटों का मधुर स्वर एक ही में मिल कर एक अटूट धारा में कानों में आ गिरेगा.
कभी कुछ दिखाई देगा, प्रकाश के छोटे-छोटे टुकड़े हवा में तैरते हुए और धीरे-धीरे बढ़ते हुए. जब यह चिह्न् दिखायी दें, तो जानो कि तुम खूब उन्नति कर रहे हो. जो कठोर अभ्यास कर योगी बनना चाहें, उन्हें अपने खानपान को ठीक रखना होगा.
जो अपने प्रतिदिन के काम-काज के साथ थोड़ा-सा ही अभ्यास करना चाहें, उन्हें ज्यादा नहीं खाना चाहिए. जो शीघ्र उन्नति करना चाहते हैं और खूब अभ्यास करना चाहते हैं, उनके लिए अपने खानपान को नियमित करना अनिवार्य है. कुछ महीनों तक केवल दूध और अनाज पर रहना उनको लाभकारी होगा. इस तरह शरीर पवित्र होता जायेगा और फिर वश में हो जायेगा.
– स्वामी विवेकानंद