पूर्वार्जित कर्मो से सुख-दुख

पूर्वजन्म में एक आदमी जैसे कर्म करता है, उन कर्मो के अनुसार ही उसे फल मिलता है. एक कहावत भी है ना-जैसी करनी वैसी भरनी. इसलिए हमें चाहिए कि हम किसी को अपनी ओर से तकलीफ न दें, किसी के साथ दुश्मनी का भाव न रखें, ताकि हमें उसके कटु परिणाम न भोगना पड़े. यदि […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 6, 2015 12:11 AM
पूर्वजन्म में एक आदमी जैसे कर्म करता है, उन कर्मो के अनुसार ही उसे फल मिलता है. एक कहावत भी है ना-जैसी करनी वैसी भरनी. इसलिए हमें चाहिए कि हम किसी को अपनी ओर से तकलीफ न दें, किसी के साथ दुश्मनी का भाव न रखें, ताकि हमें उसके कटु परिणाम न भोगना पड़े.
यदि हमारा यह जीवन अच्छा होगा, हमारा व्यवहार अच्छा होगा, लोगों के प्रति हमारे भाव अच्छे होंगे, तो हमें अगले जन्मों में भी शांति मिल सकेगी, सुख मिल सकेगा. पता नहीं किस जन्म का बंधा हुआ कर्म किस जन्म में उदय में आता है और आदमी को तकलीफ हो जाती है. अल्पायु महिला को पति वियोग का दुख देखना पड़ता है या मां-बाप का जवान बेटा चला जाता है, तो मानना चाहिए कि कोई ऐसा कर्म किया होगा, जिसकी बदौलत उन्हें पति वियोग या पुत्र वियोग का दुख देखना पड़ा है.
यदि शरीर में कोई बीमारी हो जाये या तकलीफ हो जाये, तो अनुमान लगा लेना चाहिए कि पिछले जन्म में किसी को दुख दिया होगा, इसलिए आज कष्ट भोगना पड़ रहा है. हम दूसरों का कल्याण करेंगे, दूसरों को तारने का प्रयास करेंगे, दूसरों को चित्तसमाधि पहुंचायेंगे, धर्म का कार्य करेंगे, तो हमें भी आगे सुख-शांति मिलेगी.
हम गलत काम करेंगे, तो गलत परिणाम भोगना पड़ेगा. आदमी जैसा कर्म करता है, वैसा फल उसे आगे मिलता है. हमें जीवन में सुख-दुख मिलता है, उसका संबंध हमारे पूर्वार्जित कर्मो के साथ जुड़ा हुआ होता है. यह कर्मवाद का सिद्धांत बहुत व्यापक है.
आचार्य महाश्रमण

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